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घृणा

>> Wednesday, September 10, 2008

एक दिन
उसने मुझसे कहा कि
मुझे तुमसे
बहुत घृणा है ।
यह सुन मैं
स्तंभित रह गई
ऐसी कटु अभिव्यक्ति
हमारे बीच कब आ गई ?

मैं सोचती रही
रात औ दिन
सुबह- शाम
आठों पहर
चलता रहा
मन में मंथन
पर कोई
हल नही निकला
न तो कोई रत्न मिला
और न ही विष ।

वक्त गुज़रता रहा
अचानक यूँ ही
एक दिन
मन और मस्तिष्क के
कपाट खुल गए
और मेरे सारे प्रश्नों के
सब हल मिल गए ।
तब मैं यह जान गई कि -
जहाँ अधिक घनिष्ठता होती है
वहीँ घृणा जन्म लेती है
तब से मैं
घनिष्ठता से डरती हूँ
क्यों कि मैं कभी भी
किसी की घृणा नही सह सकती हूँ .

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