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चेहरा भीड़ का

>> Wednesday, March 18, 2009


जंगलात के ठेकेदार हैं कि
जंगल काट रहे हैं
और शहर है कि
इंसानों का जंगल बन गया है ।
अनजानी राहों पर
अजनबी चेहरे
हर शख्स के लिए
अकेलेपन का
सबब बन गया है ।
भीड़ में भी रह कर
क्यूँ तनहा है आदमी
हर शहर है कि
भीड़ का
जलजला बन गया है ।
गाँव की धरोहरें
जैसे बिखर सी गयीं हैं
पलायन ही ज़िन्दगी का
सफर बन गया है ।
दो रोटी की चाह में
घर से बेघर हो
आम आदमी
भीड़ का
चेहरा बन गया है ।

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जय हो

>> Sunday, March 8, 2009


एक बड़ी खबर आई है कि

स्लमडॉग मिलेनियर को

ऑस्कर अवॉर्ड से नवाज़ा गया है

सारा देश इस खबर से

झूम सा गया है ।

सरकार इसका सारा श्रेय

खुद को दे रही है

कि हमारी वजह से ही

ये स्लॅम हैं

इसीलिए स्लमडॉग जैसी

पिक्चर बन रही है ।

गर स्लॅम ना होते तो

विदेशी आ कर

इसपर पिक्चर कैसे बनाते

और अल्लाह रक्खा को

इसके गाने कैसे मिल पाते ।

तो भाई -

ये हमारी सरकार की ही

सारी कारगुज़ारी है

ऐसी बस्तियाँ उनको बहुत प्यारी हैं।

यहाँ का बच्चा

अपने अनुभवों से

करोड़पति बन जाता है और

मल के तालाब में डुबकी लगा

अमिताभ बच्चन का

ओटोग्राफ भी ले आता है

ग़ज़ब की सोच है विदेशियों की

और देशवासियों की जय- जयकार है

और रहमान के जय हो के पीछे

आज की सरकार है .


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चक्रव्यूह

>> Monday, March 2, 2009


सागर के किनारे
गीली रेत पर बैठ
अक्सर मैंने सोचा है
कि-
शांत समुद्र की लहरें
उच्छ्वास लेती हुई
आती हैं और जाती हैं ।
कभी - कभी उन्माद में
मेरा तन - मन भिगो जाती हैं ।

पर जब उठता है उद्वेग
तब ज्वार - भाटे का रूप ले
चक्रव्यूह सा रचा जाती हैं
फिर लहरों का चक्रव्यूह
तूफ़ान लिए आता है
शांत होने से पहले
न जाने कितनी
आहुति ले जाता है ।

इंसान के मन में
सोच की लहरें भी
ऐसा ही
चक्रव्यूह बनाती हैं
ये तूफानी लहरें
न जाने कितने ख़्वाबों की
आहुति ले जाती हैं ।

चक्रव्यूह -
लहर का हो या हो मन का
धीरे - धीरे भेद लिया जाता है
और चक्रव्यूह भेदते ही
धीरे -धीरे हो जाता है शांत
मन भी और समुद्र भी .

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हमारी वाणी

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