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पद्मश्री

>> Wednesday, April 22, 2009

पद्मश्री की देखिये , है कैसी भरमार

मिला जिसे वो खुश , बाकी हैं लाचार

बाकी हैं लाचार , खिलाड़ियों के करतब देखो

विज्ञापन की बॉल , ज़रा उनकी ओर फेंको

कह "गीत " कवयित्री  , हुए हम हक्के - बक्के

उडा रहे विज्ञापन के वो , चौक्के - छक्के .

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जूते की महिमा

चुनाव - उत्सव में , हो गया बड़ा धमाल

जरनैल के जूते ने , कर दिया बड़ा कमाल ।

कर दिया बड़ा कमाल , जगदीश का पत्ता कट गया

सज्जन भी दुर्जन बन, सूली पर चढ़ गया

कह "गीत" कवयित्री  , देखो जूते की महिमा

जिसको शोहरत पानी हो , चलवा लो ख़ुद पर जूता अपना .

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आह्वान

आह्वान मत करो

नए साल में खुशियों का

क्यों की खुशियाँ तो

महज़ धोखा हैं ।

आह्वान करना है तो करो -

ख़ुद से ख़ुद को मिलने का

नए संकल्प करने का

ये वक्त मदमस्त हो

गंवाने का नही है

वक्त है

आंकलन करने का की-

गए वर्ष में हमने

क्या खोया

क्या पाया है ।


ख़ुद में विश्वास जगाना है

वो सब पाने का

जो हम सोचते हैं की

खो चुके हैं ।

आज करना है तो

अपने आत्मविश्वास का

आवाहन करो

नए वक्त को

अपने अनुरूप बनाओ

न कि वक्त के साथ

ढल जाओ ।

अपने लिए नही

दूसरों के लिए जियो

अपनो के लिए नही

देश के लिए मरो...

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हिंसा

गाँधी -
नाम नही है
एक व्यक्ति का ,
है पूरी की पूरी
विचार धारा
जिसने दिया
सत्य - अहिंसा का नारा ।

आज शायद हम
मात्र नारा याद करते हैं
लेकिन
भूल गए हैं
इस बात का सत्व
आतंकवाद और
मार - काट को ही
हिंसा समझ रहे हैं।

गाँधी के विचार से -
किसी का मन दुखाना
हिंसा ही है...

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मुस्कराहट की चाहत

>> Saturday, April 18, 2009

लोग कहते कि

समाज बदल रहा है

शिक्षा का

प्रसार हो रहा है

लड़कियां लड़कों के साथ

कंधे से कन्धा मिला कर

आगे बढ़ रही हैं

और बेटियाँ बेटों की

जगह ले रही हैं ।

पर सोच है कि-

वहीँ की वहीँ खड़ी
है
भारतीय परिवेश में


आज भी लड़की का

कोई स्वतंत्र आस्तित्व

नज़र नहीं आता है

कहने को लोग

पढ़े - लिखे हैं

पर पुरातनपंथी ही बने रहना

उनको भाता है ।


आज भी कन्या को

जायदाद समझा जाता है

विवाह पर

उन्हें दान किया जाता है ।

कहने को बेटियाँ

आज अर्थ भी कमाती हैं

पर क्या सही अर्थों में

अपने मन की कर पाती हैं?

आज भी

जात - बिरादरी की जंजीरें

उनके पांवों की

बेडियाँ बनी हुई हैं

माँ -बाप की ख़ुशी के

आगे उनकी इच्छा

दांव पर लगी हुई है

कहाँ कुछ बदला है?


बदला है तो

बस इतना ही कि-

लड़कियों को

सोचने की ताकत तो दी है

पर सोचने की आज़ादी नही

धन कमाने की

चाहत तो दी है

पर उपभोग की इजाज़त नही

आज कहने को आजाद भी हैं

पर बंधनों से आज़ादी नहीं ।


गर सच में

आज़ादी पानी है

तो पहले अपनी सोच को

बुलंद करना होगा

ख़ुद की सोच के बंधनों से

ख़ुद को आजाद करना होगा

तभी मिलेगा वो मुकम्मल आसमां

जिसको पाने की चाहत की है

तभी खिलेगी मुस्कराहट चेहरे पर

जिसको पाने की तमन्ना की है।

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जूता काण्ड

>> Wednesday, April 15, 2009

जूता चला जरनैल का

नही इससे किसी को सरोकार

निंदनीय कार्य कह कर

सब नेताओं ने कर डाला उपकार

जनता के आक्रोश को

समझ ना पाए पैरोकार

आम आदमी भी समझ ना पाए

कि कैसे माँगे अपना अधिकार?


पश्चिमी संस्कृति का

कितना असर होता है

अपने देश में इसका

साक्षात उदाहरण आया

जूते के वेश में ।

सोच रही हूँ आज बैठ कर

रोज़गार के नये द्वार खुल गये

जूता फेंको काम के लिए

विशेष प्रशिक्षण केंद्र खुल गये ।

जैसे हर दल आज अपने

जासूसों को रख रहा

कल जूता फेंकने के लिए

विशेषज्ञों को चुन रहा।

सोचो ज़रा फिर

देश का क्या नज़ारा होगा

मारे गये जूते को तो फिर

वारा - न्यारा होगा ।

जरनैल का जूता लाने वाले को

सवा पाँच लाख मिल जायेंगे

जूते को पाने के लिए ना जाने -

कितनी खून की नदियाँ बहाएँगे।

इस सारी बात का बस एक ही निचोड़ है कि---

आज इस जूता कांड के लिए

कोई कुछनही कर रहा

हर नेता बस जूते पर अपनी रोटी सेक रहा ।

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चुनाव - प्रचार

आज हमारे देश के नेता

आस्कर पाई स्लॅमडॉग पर

इतना इतरा रहे हैं कि

चुनाव - प्रचार के लिए

इसमें काम करने वाले बच्चों को

उतार रहे हैं।

खुश हैं इस बात से कि

ये बच्चे कीचड़ में खिले फूल हैं

बाकी जनता तो नेताजी के पावं की धूल है।

नेताजी का कहना है कि

हम अब इन फूलों की महक को

सब तक पहुँचाना चाहते हैं

ख़ुद में तो इतना दम है नही

पर इनकी बदौलत

स्लॅम के सारे वोट पाना चाहते हैं।

बस एक वादा पक्का है कि-

जब तक हम रहेंगे

कीचड़ को कभी सूखने नही देंगे

और इस तरह हम

कीचड़ में खिले

फूल मुरझाने नही देंगे।

तो, जय हो देश के नेता की

और जय जयकार हो जनता की ।

आज का नारा--

स्लॅमडॉग्स का साथ है

तो कॉंग्रेस का हाथ है.

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चुनावी दंगल

>> Monday, April 6, 2009


राजनीति में
नीति नही
बस राज है
पक्ष - विपक्ष
बाहर से अलग
लेकिन अन्दर से
हमराज़ है ।
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किसी दल का नेता
चुनाव जीत जाए
ये उसकी लाचारी है
क्यों कि -
निर्दलीय नेता
उन सब पर
भारी है ।
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चुनाव -
सर चढ़ कर बोल रहा
हर दल -
अपना घोषणा पत्र पढ़ रहा
जनता को -
रिश्वत मिल रही
वादों की -
डुगडुगी पिट रही ।
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चुनाव के दौरान
दावा है कि मशीनी चुनाव होगा
न किसी के साथ बेईमानी
न किसी के साथ धोखा होगा
पर आवश्यकता आविष्कार की जननी है
तो भईया -
कहीं भी बटन दबाओ
एक ही नाम पर ठप्पा लगा होगा .

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धुरी ज़िंदगी की

>> Wednesday, April 1, 2009

ज़िंदगी -

एक धुरी पर टिकी है

और उस धुरी पर ही

घूमती रहती है

नियमित , निरंतर

गर ज़रा सा भी

हो जाए धुरी में परिवर्तन

तो ज़िंदगी

बिखर जाती है

और आ जाते हैं

भूकंप और जलजले से

ज़िंदगी में।

और फिर ज़िंदगी को

धुरी पर लाना

नामुमकिन नही तो

मुश्किल ज़रूर होता है

और इस तरह हर इंसान

अपनी ज़िंदगी में

न जाने कब

क्या और कितना खोता है

यूँ तो हिसाब से भी

नही चलती ज़िंदगी

सब कुछ बेहिसाब होता है

पाना हो या खोना

किसी का हिसाब नही मिलता

फिर ज़िंदगी

पकड़ती है एक धुरी

और बस

यूँ ही चलती रहती है

ज़िंदगी एक निश्चित धुरी पर.

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हमारी वाणी

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