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सूना आँगन

>> Sunday, June 21, 2009


मैंने


अरमानों के आसमां में

ख़्वाबों के तारे
टांग दिए थे

जिनको

सूरज की रोशनी से

चमक मिलती थी

आज लग गया है

ग्रहण और

खो गयी है चमक ।

चाँद भी आज

निकला नहीं है ।

आँगन भी मेरा

सूना हो गया है

उन तारों के साथ ,

और रह गया है बस

मेरा खाली हाथ..

1 comments:

अनामिका की सदायें ...... 7/06/2009 12:03 PM  

अरमानों के आसमां में
ख़्वाबों के तारे
टांग दिए थे
जिनको
सूरज की रोशनी से
चमक मिलती थी
आज
लग गया है ग्रहण
और
खो गयी है चमक .
चाँद भी आज
निकला नहीं है .
आँगन भी मेरा
सूना हो गया है
उन तारों के साथ ,
और रह गया है
बस मेरा
खाली हाथ..

Sangeeta ji aapki rachna bahut gambheerta aur nirasha se bhari hui hai...jo tasveer ka ek rukh bayaan karti hai... kyu na tasveer ka dusra rukh bhi dekha jaaye...jis se is gambheerta aur nirasha ke badal thode chhat jaye..aur ye hona bhi chaahiye kyuki kali ghatao ke chhatne ke baad hi man-mohak indre-dhanush dikhayi deta hai..to aap hi ki rachna k jawab roop me iska dusra part ....

मगर यू सोच कर खुद को
उम्मीद देती हू की..
कभी तो मेरे अरमानो के
आसमान पर भी
पूर्णिमा का चाँद निकलेगा..!!
कभी तो सितारे
फिर से अपनी चमक ले कर लौटेंगे..!!
तब ना रहेंगे खाली हाथ...
तब ना छितक के गिरेगा फिर कोई
तारा अंधेरो की पनाहो मे.

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