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दीपावली मनाएंगे

>> Sunday, October 18, 2009


लौटे थे राम

वनवास से

इसलिए हम

दीपावली मनाएंगे

और अपने

अंतस के राम को

वनवास दे आयेंगे ।


बिजली से चमकते

अपने घर में

और दिए जलाएंगे

पर किसी गरीब की

अँधेरी कोठरी में

एक दिया भी

नहीं रख पायेंगे ।


जिनके भरे हों

पेट पहले से

उन्हें और

मिष्टान्न खिलाएंगे

लेकिन भूखे पेट

किसी को हम

भोजन नहीं कराएँगे


पटाखे चलाएंगे

फुलझडी छुटायेंगे

और इसी तरह से

हर साल दीपावली मनाएंगे ।

7 comments:

रश्मि प्रभा... 10/18/2009 8:38 PM  

और अंतस के राम को वनवास....क्या बात कही है आपने ,बहुत सही !
जिनके पेट पहले से तृप्त हों,उनको ही और खिलाएंगे

अनामिका की सदायें ...... 10/19/2009 3:05 PM  

बहुत जागरूकता पैदा करने वाली रचना..सच में हम अपने से ही ये शुरुआत करे तो क्या हालात बदल न जायेंगे...और कुछ न होगा तो कम से कम हम अपने जमीर को तो संतुष्ट कर पाएंगे की हमने तो इस नेक काम में एक कदम आगे बढाया..

ओम आर्य 10/19/2009 6:00 PM  

EK KHUBSOORAT KHYAALOWALI RACHANA.......JISAME MANWIYA SAMWEDANA KO JAGANE KI PRENA DI GAYI HAI !

दिगम्बर नासवा 10/19/2009 6:59 PM  

वाह कमाल का लिखा है ........... सच में मन में बनवास है सब के और सब राम को उसके आदर्शों को भूल रहे हैं ...........

Mumukshh Ki Rachanain 10/20/2009 3:15 PM  

अत्यंत जागरूकता पैदा करने वाली कविता.
प्रयास बढ़िया.

हार्दिक बधाई.

चन्द्र मोहन गुप्त
जयपुर
www.cmgupta.blogspot.com

shikha varshney 10/20/2009 4:18 PM  

दी ! शुरू की कुछ पंक्तियों में कमाल किया है आपने बहुत ही गहरी बात कह दी.पर मॉफ कीजियेगा इन पंक्तियों के मुकाबले नीचे की पंक्तियाँ थोडी कमजोर पड़ गईं.....पर बहुत ही सच्ची और अच्छी बात कही है आपने.

संगीता स्वरुप ( गीत ) 10/20/2009 4:30 PM  

आप सबका आभार ,

शिखा ,

तुमने सही कहा है...बाकी की रचना थोडी कमज़ोर है..पर ये भी तो थोडा कटाक्ष ही है.
सही टिप्पणी के लिए शुक्रिया

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