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तन्हा

>> Wednesday, December 23, 2009


मन में

ना जाने कितनी

गिरह लगी हैं

एक - एक खोलूं

तो

सदियों लग जाएँ

और होता है

अक्सर यूँ

कि -

खोलने की कोशिश में

नयी गाँठ

पड़ जाती है ,

सोचती हूँ कि

जिस दिन

खुल गयीं

सारी गांठें

तो ज़िन्दगी में

जलजला ही आ जायेगा

ना तो

कोई राह सूझेगी

और ना ही कोई

खेवनहार आएगा ।

और रह जाउंगी

मैं केवल

तन्हा तन्हा तन्हा !

24 comments:

संगीता पुरी 12/23/2009 11:45 AM  

बिल्‍कुल सही भाव के साथ सुंदर रचना !!

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) 12/23/2009 11:49 AM  

अक्सर यूँ
कि -
खोलने की कोशिश में
नयी गाँठ
पड़ जाती है ,
सोचती हूँ कि
जिस दिन
खुल गयीं
सारी गांठें
तो ज़िन्दगी में
जलजला ही आ जायेगा


बहुत सुंदर पंक्तियों के साथ .... बहुत सुंदर कविता.....

रंजू भाटिया 12/23/2009 12:44 PM  

तो ज़िन्दगी में
जलजला ही आ जायेगा
ना तो
कोई राह सूझेगी
और ना ही कोई
खेवनहार आएगा ।
और रह जाउंगी
मैं केवल
तन्हा तन्हा तन्हा !

बहुत ही बेहतरीन लगी आपकी लिखी यह पंक्तियाँ शुक्रिया

निर्मला कपिला 12/23/2009 12:49 PM  

खोलने की कोशिश में
नयी गाँठ
पड़ जाती है ,
बिलकुल सही कहा आपने । भावनायों से जितनी जिरह करो और उलझने बढती हैं सुन्दर रचना के लिये धन्यवाद्

अजय कुमार 12/23/2009 12:53 PM  

यही कह सकता हूं कि- कितने गमों की भीड़ है एक आदमी के साथ

Mithilesh dubey 12/23/2009 1:10 PM  

उम्दा व लाजवाब रचना , बधाई ।

रश्मि प्रभा... 12/23/2009 1:52 PM  

एक गांठ खोलने में दूसरी गांठ .......यही जीवन का सत्य , जो असमंजस में डालता है,
जाने कितने विचारों की झंझावात में छोड़ जाता है

संजय भास्‍कर 12/23/2009 1:52 PM  

कोई राह सूझेगी
और ना ही कोई
खेवनहार आएगा ।
और रह जाउंगी
मैं केवल
तन्हा तन्हा तन्हा !


इन पंक्तियों ने दिल छू लिया... बहुत सुंदर ....रचना....

परमजीत सिहँ बाली 12/23/2009 1:54 PM  

अपने मनोभावों को बहुत सुन्दर शब्द दिए हैं।बधाई।

निर्झर'नीर 12/23/2009 2:42 PM  

hamesha ki tarah ..

exceelent

aapki rachnaon ki gahraai sagar si hoti hai..

aarya 12/23/2009 2:45 PM  

सादर वन्दे
सोच की गहराई गांठों पर आकर रुक जाती है, कि क्या यह आखिरी है कि अभी शुरुआत हुयी है गांठो की
रत्नेश त्रिपाठी

vandana gupta 12/23/2009 3:56 PM  

waah..........kya baat kah di.........bahut sundar bhav.

Sadhana Vaid 12/23/2009 5:20 PM  

शायद यही उधेड़बुन हम सबके जीवन का सार है । गाँठें खुल जायें तो परेशानी और ना खुलें तो और भी गहरी दुविधा! सुन्दर भावों के साथ बहुत खूबसूरत रचना । बधाई !

Apanatva 12/23/2009 5:49 PM  

Bahut khoob !ati sunder !

M VERMA 12/23/2009 6:17 PM  

खोलने की कोशिश में
नयी गाँठ
पड़ जाती है ,
जीवन की गाँठे ऐसी ही होती हैं

दिगम्बर नासवा 12/23/2009 7:05 PM  

सत्य की अभिव्यक्ति है ये रचना .. जीवन अनंत गाँठों का सिलसिला है ........ बहुत अच्छा लिखा .........

अनामिका की सदायें ...... 12/23/2009 7:22 PM  

kuch gaanthe man ke bheetar hi daba kar band kar di jaye to behtar hai...kyuki kayi baar ya to halaat bigadne ka khatra ya fir kabhi apni baat ki ahmiyat kho dene ka vichar hame rok leta hai un gaantho ko kholne se aur ant me hamari jholi me aati hai to sirf tanhayi, tanhayi aur tanhayi.
ek aisi hi sthiti bayaan karti aapki ye rachna dil ko chhu gayi.

वाणी गीत 12/24/2009 8:51 AM  

गिरह गाँठ खोलते कब जिदगी बिखर जाती है ...यही जीवन है ...
सुन्दर भावाभिव्यक्ति ....!!

yashoda Agrawal 3/01/2021 10:39 AM  

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" मंगलवार 02 मार्च 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

Kamini Sinha 3/02/2021 1:19 PM  

कोई राह सूझेगी

और ना ही कोई

खेवनहार आएगा ।

और रह जाउंगी

मैं केवल

तन्हा तन्हा तन्हा !

जब तक गांठे ना खुले वही अच्छा है।
दिल तक गहरे उतरती बेहद मार्मिक सृजन संगीता जी,यशोदा दी का आभार इस रचना को साझा करने के लिए
सादर नमन आपको

संगीता स्वरुप ( गीत ) 3/02/2021 2:48 PM  

यशोदा और कामिनी आप दोनों का ही शुक्रिया।

Shantanu Sanyal शांतनु सान्याल 3/03/2021 7:23 AM  

ह्रदय तल से लिखी कविता - - साफ़ दिल सृजन - - नमन सह।

रेणु 10/08/2022 11:51 PM  

ना तो
कोई राह सूझेगी
और ना ही कोई
खेवनहार आएगा ।
और रह जाउंगी
मैं केवल तन्हा-तन्हा ///
व्यथित मन की गहन मर्म कथा 👌👌👌🙏😞

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