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पूर्वनिश्चित

>> Monday, May 25, 2009


समय

जो स्वयं चलता है

ना कोई ले सकता है

और ना ही

कोई दे सकता है ।


शायद

वक्त हमसे

वही करवाता है

जो होना है

सब

पूर्वनिश्चित सा ।


फिर भी हम

अक्सर सोचते हैं

कि -

काश उस समय

ऐसा किया होता

नही तो

वैसा किया होता

और कर देते हैं

यूँ आने वाले

वक्त की बर्बादी ।


ये बर्बादी करना भी

शायद

पूर्वनिश्चित ही था .

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किनारे

>> Thursday, May 21, 2009

समंदर के किनारे

देख भी नही पाते

एक दूसरे को

बस एहसास होता है

उनको एक दूसरे का

समंदर के पानी से ।

पानी ही ज़रिया है

उनके बीच मिलन का

और वो खुश रहते हैं

दूर - दूर रह कर भी ।


दरिया के किनारे

देख पाते हैं

एक दूसरे को

सहज साथ देते हैं ।

पर दरिया का पानी

कभी कभी

व्यग्र हो उठता है

और उनको

मिलाने के प्रयास में

किनारे तोड़

विध्वंस कर जाता है ।

फिर आता है

स्वयं की सीमा में

और किनारे फिर

बाँध देते हैं दरिया को

एक सीमा रेखा में।


लेकिन-

बहुत मुश्किल होता है

बांधना समुद्र के पानी को

उसकी सीमाओं में ।

जब वो लांघता है

अपने किनारों को तो

हो जाती है विनाशलीला

और आ जाती है

सुनामी जैसी विध्वंसता

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अनुनाद


मन में


न जाने


कैसा ये शोर है


वो चाहता कुछ और


और कहता


कुछ और है ।



जानता ये नही


कि--


चाह मन



घोर अनुनाद कर रही


कुछ छिपाना चाहता


पर दिखाता


कुछ और है ।



ज़रा सुनो


तुम ध्यान से


उसकी प्रतिध्वनि


शब्द कुछ और


कह रहे


पर अर्थ


कुछ और है ।



कुछ पहेली सी है


आज ये मन की बात


पूछ कुछ और रहा


पर उत्तर कुछ और है

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कसक

>> Saturday, May 2, 2009


ज्यूँ आसमान से

तारा टूटता हो

एक सझर से

फूल गिरता हो

यूँ ही ज़िन्दगी में

कभी कभी

टूट जाते हैं रिश्ते ।

तारा टूट

विलीन हो जाता है

ब्रह्माण्ड में

फूल गिर

मिल जाता है

धूल में

पर आसमां औ पेड़

दोनों का ही वजूद

रहता है बना

अपनी - अपनी जगह ।

सोचती हूँ कि -

क्या इन दोनों को

रिश्ते टूटने का

दर्द नही होता ?

पर जब इंसानी रिश्ते

टूटते हैं तो

बिखर जाता है

दोनों का ही वजूद

और रह जाती है

बस एक कसक .

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हमारी वाणी

www.hamarivani.com

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