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ज़िंदगी, मात्र कल्पना नही होती है.

>> Saturday, January 30, 2010


ज़िंदगी, मात्र कल्पना नही होती है.



मानती हूँ कि-


कल्पना की ज़िंदगी से बेहतर


कोई ज़िंदगी नही होती है,


जहाँ हर पल


अपने ख्वाबों के अनुसार


ढाल लिया जाता है


हर सवाल,


जी लेते हैं हर पल


अपने ही ढंग से


मन में नही रहता


फिर कोई मलाल


पर फिर भी


ज़िंदगी,


मात्र कल्पना नही होती है.






ना जाने कितने तूफान


मन में पले होते हैं


ना जाने कितने सैलाब


दिल में भरे होते हैं


सबको बांधना भी


कुछ आसान नही होता है


इनको रोकना भी कभी - कभी


नामुमकिन सा होता है.


पर धैर्य वो बाँध है कि


आई बाढ़ भी सिमट जाती है


ज़िंदगी की कल्पना में


फिर हक़ीकत ही नज़र आती है


गमों का सैलाब भी


थमता सा नज़र आता है


ज्वार - भाटे का समुद्र से तो


हर पल का नाता है,






धीरज ही है जो इंसान को


जीना सिखाता है


कल्पना में ही सही


पर विस्तृत आकाश में


विचरण करता है


पर जब यथार्थ के कठोर धरातल से


कल्पना टकराती है


लगता है कि जैसे


ज़िंदगी, चूर - चूर हो जाती है


क्यों कि--ज़िंदगी


ज़िंदगी,


मात्र कल्पना नही होती है.

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जीवन फूल और नारी का

>> Wednesday, January 27, 2010






जब - जब नारी की तुलना



फूलों से की जाती है


तब - तब ये छवि


मन में उभर आती है।


कि सच ही - नारी


फूलों की तरह कोमल है


फूलों की तरह मुस्कुराती है


लोगों में हर दिन


जीने का उत्साह जगाती है


एक मुस्कराहट से


सबके जीवन में


नया उत्साह ले आती है।






पर जब फूलों की तुलना


नारी से की जाती है


तब फूल के मन में


ये बात आती है


हम फूल मुस्कुराते हैं


हर सुबह


जीने का उत्साह जगाते हैं


पर हम नारी की तरह


कहाँ हो पाते हैं।





नारी तो अगले दिन फिर


जीने का उत्साह जगाती है


हम तो एक ही दिन में


निढाल हो मुरझा कर


टहनी से टूट बिखर जाते हैं.
 

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उपलब्धियां

>> Tuesday, January 26, 2010



मेरा  भारत महान  है
देश भर  में बस यही गान है
मेरा भारत महान है.




गणतंत्र  बना भारत जब
तब जनता मुस्काई थी
अब तंत्र  बचा केवल भारत
तब  जनता को सुधि आई थी
गण  को भूल गए नेता
बस कुरसी ही उनकी जान है
मेरा भारत महान है.

भूखी  जनता औ भूखा देश
दो टूक कलेजे पर होता द्वेष 
 धारण कर रखा सात्विक वेश
हो गया खोखला भारत देश
पर झोली फैला कर नेता
समझ रहे अपना मान हैं
मेरा भारत महान है .

पढ़ लिख कर आज भविष्य
बेकार दिखाई देता है
इन बेकारों की खरीद - फरोख्त से
ईमान बिकाऊ  होता है
चन्द  सिक्कों की खातिर इनका
गद्दारी करना  काम है
मेरा भारत महान है .

कुर्सी के चक्कर में नेता
भूल - भुलैया  घूम रहे
किस दल  का बल अच्छा है
ध्यान लगा कर सूंघ रहे
दल  बदलू नेताओं से
अब जनता परेशान है
मेरा  भारत महान है .

दल बदल कर भी नेता
जब चुनाव  हार गया
तो उस दल के नेता ने
उसे राज्यपाल बनवा दिया
जनता की है किसको फ़िक्र
बस कुर्सी ही उनका जहान है
मेरा भारत महान है

आज ना जाने राजनीति में
कैसी खिचड़ी पक रही
भारत की जनता चुप चाप
निष्ठुर  कानूनों  को सह रही
यहाँ नेता - नेता की झोली में
एक - एक हवाला  कांड है
मेरा भारत महान है..

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हिंदी की स्वर ध्वनियों से “ ऋ “ का लोप

>> Sunday, January 24, 2010






हिंदी भाषा के स्वरों की स्थिति इस प्रकार है ---


परंपरा से प्राप्त स्वर – अ , आ , इ , ई , उ , ऊ, ( ऋ ) ,ए , ऐ , ओ , औ .


आगत स्वर - ऑ .



उक्त स्वरों में मूल स्वर तो दस ही हैं. “ ऋ “ संस्कृत भाषा का स्वर हिंदी में प्रयोग किया जाता था . उच्चारण के स्तर पर अब ये समाप्त हो चुका है . इसका प्रयोग केवल तत्सम शब्दों (संस्कृत भाषा के शब्द ) के लेखन में किया जाता है . आज हिब्दी भाषा- भाषी “ ऋ “ का उच्चारण स्वर के रूप में न करके र ( यहाँ र पर हलंत आएगा जो टाइपिंग में नहीं आ रहा है ) र + इ के संयुक्त रूप ( रि के रूप ) में करते हैं





जहाँ एक स्वर था , अब इसका उच्चारण हिंदी में व्यंजन र + इ स्वर के मिले हुए रूप से हो गया है. . हम लिखते तो ऋषि , कृपा , मृग हैं परन्तु बोलते रिशी, क्रिपा , तथा म्रिग हैं .


यहाँ एक प्रश्न उठता है कि यदि हिंदी में “ ऋ “ स्वर का उच्चारण समाप्त हो गया है तो भी हम इसे वर्ण – माला में क्यों रखे हुए हैं ?


इसका प्रमुख कारण ये है कि भाषा विकास क्रम में ध्वनियों के उच्चारण में तो निरंतर परिवर्तन स्वत: ही होते रहते हैं परन्तु लेखन – व्यवस्था सम्बन्धी परिवर्तन स्वत: नहीं होते . जब कभी विद्वानों की कोई समिति बैठती है और विचार करती है तब वह कुछ परिवर्तन का सुझाव देती है . हिंदी की लिपि – वर्तनी में समय – समय पर अनेक बार इस तरह के सायास प्रयत्न होते रहे हैं . दूसरा लाभ है कि इन वर्णों को वर्ण – माला में रखने से शब्द का लिखित रूप देख कर उसका परंपरागत रूप पता चल जाता है , भले ही वह ध्वनि का उच्चारण न होता हो.


अत: आज हिंदी में “ऋ “ स्वर का प्रयोग तत्सम शब्दों के लेखन करते समय किया जाता है , जैसे ऋषि , मृग , गृह ,पृथा आदि .
आगत स्वर --- ऑ स्वर अंग्रेजी और अनेक यूरोपीय भाषाओँ के शब्द हिंदी भाषा में समाहित हो जाने से आया है....इसलिए इसे आगत स्वर कहते हैं . बहुत से अंग्रेजी भाषा के शब्द आज हिंदी के बन गए हैं जैसे – doctor , coffee , copy , shop , इन शब्दों की “o “ ध्वनि न तो हिंदी की ओ है और ना ही औ .इसका उच्चारण इन दोनों के मध्य में कहीं होता है . इस आगत ध्वनि के लिए “ ऑ “ वर्ण बना लिया गया है .मानक वर्तनी के अनुसार इन आगत शब्दों को ऑ स्वर से लिखा जाना चाहिए . जैसे



डाक्टर – डॉक्टर


कापी / कोपी – कॉपी


शोप / शाप – शॉप आदि


अनुनासिक स्वर ध्वनि –


जब स्वरों का उच्चारण करते समय वायु को मुख के साथ साथ नाक से भी बाहर निकाला जाता है तब वे स्वर अनुनासिक हो जाते हैं .अत: अनुनासिकता स्वरों का एक गुण है. हिंदी में सभी मूल स्वर अनुनासिक हो सकते हैं उदाहरण के तौर पर---


शब्द                     ध्वनि                                     

सवार                       अ                                          


सँवार                       अं   ( चन्द्र बिंदु)

सास                       आ


साँस                       आँ


आई                        ई

आईं                        ईं

पूछ                         उ 

पूँछ                         ऊँ 


 इस प्रकार हिंदी में अनुनासिक स्वर शब्दों का अर्थ परिवर्तन कर देते हैं...


उपर्युक्त जानकारी मानक हिंदी व्याकरण पुस्तक पर आधारित हैं ..


आप सब सुधिजन की टिप्पणियों का इंतज़ार है.

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टुकड़े टुकड़े ख्वाब

>> Wednesday, January 20, 2010




रख दिया है मैंने




सारे अपने ख़्वाबों को


आईने के सामने ,



और ख्वाब खुद को देख



खुश थे बहुत



सज रहे थे ,संवर रहे थे



कर रहे थे गुरुर



स्वयं के सौन्दर्य पर



कि -



छनाक से



टूट गया आईना



बिखर गयीं चारों ओर



किरचें ही किरचें



और



चुभ गयीं हैं भीतर तक



हर एक ख्वाब में







अब ख्वाब हैं कि



लहू लुहान पड़े हैं



और देख रहे हैं



खुद को टुकड़े टुकड़े हुआ .







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हिंदी में बिंदी और चन्द्र बिंदु की महिमा.....

>> Monday, January 18, 2010





ब्लॉग जगत में मैंने कुछ समय पहले ही प्रवेश किया है...अभी तक बस अपने भावों को कविता के रूप में लिख कर ही मैंने ब्लॉग पर पोस्ट किया....लेकिन व्लोग्वानी पढने से जाना कि ये एक अच्छा साधन है जहाँ सामाजिक, राजनैतिक ,धार्मिक विषयों से जुड़ा जा सकता है वहीँ इसके द्वारा हम अपनी भाषा हिंदी का भी परिमार्जन कर सकते हैं ..यही सोच आज मैं ये विषय ले कर आई हूँ.... हाँलांकि इसके बारे में सभी ने स्कूल में पढ़ा होगा ,लेकिन पढने के बाद भी बहुत सी बातें दिमाग से निकल जाती हैं..आज उनको ही तरोताजा करने का प्रयास कर रही हूँ . आशा है कि आप इसे पसंद करेंगे.



हिंदी में स्वर को कई आधार पर विभाजित किया गया है .


आज हम चर्चा कर रहे हैं उच्चारण के आधार पर स्वर के भेद की.


उच्चारण के आधार पर स्वर को दो भागों में विभक्त किया जाता है .


१ अनुनासिका


२ निरनुनासिका


निरनुनासिका स्वर वे हैं जिनकी ध्वनि केवल मुख से निकलती है .


अनुनासिका स्वर में ध्वनि मुख के साथ साथ नासिका द्वार से भी निकलती है .अत:


अनुनासिका को प्रकट करने के लिए शिरो रेखा के ऊपर बिंदु या चन्द्र बिंदु का प्रयोग करते हैं . शब्द के ऊपर लगायी जाने वाली रेखा को शिरोरेखा कहते हैं .


बिंदु या चंद्रबिंदु को हिंदी में क्रमश: अनुस्वार और अनुनासिका कहा जाता है .


अनुस्वार और अनुनासिका में अंतर -----


१- अनुनासिका स्वर है जबकि अनुस्वार मूलत: व्यंजन .


२- अनुनासिका ( चंद्रबिंदु ) को परिवर्तित नहीं किया जा सकता जबकि अनुस्वार को वर्ण में बदला जा सकता है .


३- अनुनासिका का प्रयोग केवल उन शब्दों में ही किया जा सकता है जिनकी मात्राएँ शिरोरेखा से ऊपर न लगीं हों. जैसे अ , आ , उ ऊ ,


उदाहरण के रूप में --- हँस , चाँद , पूँछ


४ शिरोरेखा से ऊपर लगी मात्राओं वाले शब्दों में अनुनासिका के स्थान पर अनुस्वार अर्थात बिंदु का प्रयोग ही होता है. जैसे ---- गोंद , कोंपल , जबकि अनुस्वार हर तरह की मात्राओं वाले शब्दों पर लगाया जा सकता है.

 
आज का मुख्य चर्चा का विषय है कि जब अनुस्वार को व्यंजन मानते हैं तो इसे वर्ण में किन नियमों के अंतर्गत परिवर्तित किया जाता है....इसके लिए सबसे पहले हमें सभी व्यंजनों को वर्गानुसार जानना होगा.......


(क वर्ग ) क , ख ,ग ,घ ,ड.


(च वर्ग ) च , छ, ज ,झ , ञ


(ट वर्ग ) ट , ठ , ड ,ढ ण


(त वर्ग) त ,थ ,द , ध ,न


(प वर्ग ) प , फ ,ब , भ म

 
य , र .ल .व


श , ष , स ,ह










अब आप कोई भी अनुस्वार लगा शब्द देखें.....जैसे ..गंगा , कंबल , झंडा , मंजूषा , धंधा


यहाँ अनुस्वार को वर्ण में बदलने का नियम है कि जिस अक्षर के ऊपर अनुस्वार लगा है उससे अगला अक्षर देखें ....जैसे गंगा ...इसमें अनुस्वार से अगला अक्षर गा है...ये ग वर्ण क वर्ग में आता है इसलिए यहाँ अनुस्वार क वर्ग के पंचमाक्षर अर्थात ड़ में बदला  जायेगा.. ये उदहारण हिंदी टाइपिंग में नहीं आ रहा है...दूसरा शब्द लेते हैं. जैसे कंबल –

यहाँ अनुस्वार के बाद ब अक्षर है जो प वर्ग का है ..ब वर्ग का पंचमाक्षर म है इसलिए ये अनुस्वार म वर्ण में बदला जाता है


कंबल..... कम्बल


झंडा ..---- झण्डा


मंजूषा --- मञ्जूषा


धंधा --- धन्धा



ध्यान देने योग्य बात ----


१ अनुस्वार के बाद यदि य , र .ल .व
श ष , स ,ह वर्ण आते हैं यानि कि ये किसी वर्ग में सम्मिलित नहीं हैं तो अनुस्वार को बिंदु के रूप में ही प्रयोग किया जाता है .. तब उसे किसी वर्ण में नहीं बदला जाता...जैसे संयम ...यहाँ अनुस्वार के बाद य अक्षर है जो किसी वर्ग के अंतर्गत नहीं आता इसलिए यहाँ बिंदु ही लगेगा.


२- जब किसी वर्ग के पंचमाक्षर एक साथ हों तो वहाँ पंचमाक्षर का ही प्रयोग किया जाता है. वहाँ अनुस्वार नहीं लगता . जैसे सम्मान , चम्मच ,उन्नति , जन्म  आदि.


४- कभी कभी जल्दबाजी में या लापरवाही के चलते हम अनुस्वार जहाँ आना चाहिए नहीं लगाते ,तब शब्द के अर्थ बदल जाते हैं – उदहारण देखिये –


चिंता -------- चिता


गोंद ----------- गोद


गंदा-------------- गदा ....आदि




आशा है कि आज अनुस्वार ( बिंदु ) और अनुनासिका ( चंद्रबिंदु ) के विषय पर आपका पुन: परिचय हो गया होगा.


आपकी प्रतिक्रियाएं ही इसकी सफलता को इंगित करेंगी. धन्यवाद





























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ठूंठ

>> Thursday, January 14, 2010



सैर करते हुए



एक उद्यान में


मिल गया था एक ठूंठ


लगा जैसे वो


मेरी भावनाओं को


समझ रहा है


अपनी कहानी सुना


मुझसे कुछ कह रहा है ..






कभी मुझ पर भी


बहार आती थी


मुझ पर भी


नव - पल्लव खिलते थे


मेरे फूलों की मादकता से


मधुकर मदहोश रहा करते थे


रंग - बिरंगी तितलियाँ


चारों ओर मंडराया करतीं थीं


मंद समीर की लहरें


मुझको सहलाया करतीं थीं


दिनकर अपने तेज से


मुझमें चमक लाता था


रजनीकर अपनी छाया से


शीतलता दे जाता था


कितने ही पंछी मुझ पर


नीड़ बनाया करते थे


मेरी घनी छाया में


क्लांत पथिक भी


सुस्ताया करते थे .






पर अब रह गया


मैं एक ठूंठ मात्र


किसी काम नहीं आता हूँ


कोई नहीं इर्द - गिर्द


स्वयं को असहाय सा पाता हूँ..


पर....


आज तेरा दर्द देख


अपना दर्द पी रहा हूँ


मैं भी तो बस तेरी सी ही


ज़िन्दगी जी रहा हूँ.



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क्या कर पाएंगे प्रतिकार

>> Tuesday, January 12, 2010





धरती से


धन धान्य मिला है


अम्बर से


                                मिलता पानी


फिर भी खाली


झोली ले


फिरता क्यूँ हर प्राणी ?


प्रभु ने हमको


झोली भर - भर


दिए अनेकों उपहार


इन उपहारों का


क्या कभी हम


कर पाएंगे प्रतिकार ?






माँ के आँचल से


जो हमको



छाँव घनेरी   मिलती                          


हर गलती पर भी मिलता


माँ का असीम दुलार


इस दुलार का भी


क्या कभी हम


कर पायेंगे प्रतिकार ?






                           संगी - साथी


                          संग खेले हैं


   हर सुख - दुःख में


   रहते साथ


बिना किसी शर्तों के मिलता


हमको उनका प्यार


इस प्यार का भी


क्या कभी हम


कर पायेंगे प्रतिकार ?

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हिंदी दिवस का औचित्य

>> Sunday, January 10, 2010




आज हम स्वतंत्र भारत के नागरिक

स्वतंत्रता दिवस मना रहें हैं

ध्वज में चन्द पुष्प रख

ध्वज फहरा रहे हैं .

पर क्या हम सच में स्वतंत्र हैं

यदि यह जानते तो -

इस तरह ध्वज कभी ना फहराते .

इस तरह का अर्थ----

किसी मुख्य अतिथि का आना

डोरी खींचना , पुष्पों का गिरना

हमारी ताली बजाना

और राष्ट्रीय गीत गाना .

यही क्रियाएँ हैं हमारे देश में

ध्वज फहराने की .

पर क्या यही कर्तव्य है हमारा ?

आज हम स्वयं को

स्वतंत्र मानते हैं

पर कितने स्वतंत्र हैं

यह कभी जाना?

आज हम अँग्रेज़ों से आज़ाद

पर अँग्रेज़ी के गुलाम हैं


जो दो बोल अँग्रेज़ी बोलता है

उसी की समाज में शान है

हमारे भारत के स्वतंत्र नागरिक

प्रगतिशील हो गये हैं

राष्ट्रीय भाषा नही अपितु

अंतरराष्ट्रीय भाषा के ज्ञाता  बन गये हैं .

अँग्रेज़ी में गिट - पिट कर

स्वयं को उँचा मानते हैं

जो भारती के ज्ञाता  हैं

वो हीनता के गर्त में

गोते खाते हैं .

आज हम अँग्रेज़ों से स्वाधीन

पर अँग्रेज़ियत में जकड़े हुए हैं

भाषा के क्षेत्र में अभी तक

पराधीनता के कपड़े पहने हुए हैं.

इस स्वतंत्र भारत में

अपनी राष्ट्र भाषा का

कैसा गौरव बढ़ा रहे हैं ?

पूरे वर्ष में

हिन्दी की प्रगति के लिए

केवल एक सप्ताह मना रहे हैं.

जब तक एक सप्ताह को

बावन ( एक साल ) सप्ताह में नही बदल पाएँगे

तब तक हिन्दी दिवस का अर्थ

सही अर्थों में नही साँझ पाएँगे

जब भाषा में ही स्वतंत्र ना हो पाए

तो इस स्वतंत्रता का क्या अर्थ है

जब इस ध्वज का सम्मान ना कर पाए

तो ध्वज फहराने का क्या अर्थ है?

नही--अब वक़्त नही-

अब तो कुछ करना होगा

आज इस क्षण हमें

एक वचन लेना होगा .

क्यों कर अँग्रेज़ी आगे है

क्यों भारती पिछड़ रही है

क्यों भाषा का अपमान हुआ

क्यों हिन्दी सिसक रही है ?

कुछ तो कहना होगा

कुछ तो करना होगा

भाषा की स्वतंत्रता के लिए

एक वचन लेना ही होगा.

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जला दिया घर अपना

>> Friday, January 8, 2010


जला दिया घर अपना रिश्ते निबाहने में
फिर भी हमें बेवफा कहा जाने - अनजाने में .

वफ़ा है कि कहीं सरे बाज़ार नहीं बिकती
रिश्तों पर दांव खेल दिया हमें हराने में .

हैं हम घर से बेघर और सोचते हैं वो
कि सुकून मिल रहा है शायद आशियाने में .

चिंगारी लगा के वो देखते हैं तमाशा
जल गए हैं हाथ मेरे हवन कराने में .

रिश्तों की नीव को कुछ इस तरह हिलाया
कि हाथ छिल गए हैं उसे फिर से जमाने में .

मन के दरख़्त पर अब जम गयी हैं जड़ें
छाले पड़ गए हैं अब उन्हें हटाने में......

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बाँहों का दायरा

>> Tuesday, January 5, 2010


आ जाती हैं

कुछ यादें

भूली - बिसरी सी।


खड़ी हुई थी जब मैं

आईने के सामने

एक दिन

उसमें चेहरा मेरा नहीं

तुम्हारा दिख रहा था।

देखते ही देखते

बढा दिया था हाथ

तुमको छूने के लिए

और मेरी उंगलियाँ

जा टकरायीं थीं

आईने से ,

दोनों के चेहरे

जैसे हो गए थे गड-मड ।

दर्द के एहसास से

भींच लीं थीं

जोर से मैंने आँखें अपनी ।

और जब धीरे - धीरे

उठायीं थीं पलकें

तो आइने में

खुद के साथ

तुम्हारा चेहरा

साफ नज़र आया था।

बढ़ते हाथ को

रोक लिया था मैंने

कि एक आवाज़ आई

अरे ! मैं यहाँ हूँ ...

सुनते ही -

जैसे ही पलटी

कि

फिसल गया था पांव

और संभाल लिया था मुझे

तुमने अपनी बाँहों में ।


आज भी

सुरक्षा - कवच बना हुआ है

मेरे लिए

तुम्हारी बाहों का दायरा

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