बाँहों का दायरा
>> Tuesday, January 5, 2010
आ जाती हैं
कुछ यादें
भूली - बिसरी सी।
खड़ी हुई थी जब मैं
आईने के सामने
एक दिन
उसमें चेहरा मेरा नहीं
तुम्हारा दिख रहा था।
देखते ही देखते
बढा दिया था हाथ
तुमको छूने के लिए
और मेरी उंगलियाँ
जा टकरायीं थीं
आईने से ,
दोनों के चेहरे
जैसे हो गए थे गड-मड ।
दर्द के एहसास से
भींच लीं थीं
जोर से मैंने आँखें अपनी ।
और जब धीरे - धीरे
उठायीं थीं पलकें
तो आइने में
खुद के साथ
तुम्हारा चेहरा
साफ नज़र आया था।
बढ़ते हाथ को
रोक लिया था मैंने
कि एक आवाज़ आई
अरे ! मैं यहाँ हूँ ...
सुनते ही -
जैसे ही पलटी
कि
फिसल गया था पांव
और संभाल लिया था मुझे
तुमने अपनी बाँहों में ।
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
24 comments:
LAJWAAB RACHNA.......
मेरा चेहरा नहीं,तुम्हारा चेहरा दिखा........वाह
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
prem ki atut misal .bahut hi khubsurat kavita .
badhai
खूबसूरत भावनायें
तेरी बाँहों का जब है सहारा
पिया मंझधार भी है किनारा
इसी प्रकार के भावों को व्यक्त करती एक सुंदर रचना .
बधाई !
तेरी बाँहों का जब है सहारा
पिया मंझधार भी है किनारा
इसी प्रकार के भावों को व्यक्त करती एक सुंदर रचना .
बधाई !
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
खूबसूरत भावनाओं के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति.....
--
www.lekhnee.blogspot.com
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
खूबसूरत भावनाओं के साथ बहुत सुंदर प्रस्तुति.....
--
www.lekhnee.blogspot.com
wah di bas isi dayere main ji jate hain ham apni poori jindgi..behtareen ahsaas ,khubsurat rachna.
bahut hee pyaree rachana hai dil se likhee.
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
सुन्दर-- बहुत सुन्दर
waah ! badhiyaan kavita Sangeeta ji..aur sabse badhi baat...k chehra unka hi dikha jinki baahein suraksha chakr bani huin hain............:)
badhayi ..umda rachna hetu..:)
बहुत अच्छी रचना। बधाई।
बहुत कोमल भावनाएँ.
’सकारात्मक सोच के साथ हिन्दी एवं हिन्दी चिट्ठाकारी के प्रचार एवं प्रसार में योगदान दें.’
-त्रुटियों की तरफ ध्यान दिलाना जरुरी है किन्तु प्रोत्साहन उससे भी अधिक जरुरी है.
नोबल पुरुस्कार विजेता एन्टोने फ्रान्स का कहना था कि '९०% सीख प्रोत्साहान देता है.'
कृपया सह-चिट्ठाकारों को प्रोत्साहित करने में न हिचकिचायें.
-सादर,
समीर लाल ’समीर’
सुंदर अभिव्यक्ति।
खड़ी हुई थी जब मैं
आईने के सामने
एक दिन
उसमें चेहरा मेरा नहीं
तुम्हारा दिख रहा था।
देखते ही देखते
बढा दिया था हाथ
तुमको छूने के लिए
और मेरी उंगलियाँ
जा टकरायीं थीं
आईने से ,
waaah me imagine kar rahi hu.
दर्द के एहसास से
भींच लीं थीं
जोर से मैंने आँखें अपनी ।
और जब धीरे - धीरे
उठायीं थीं पलकें
तो आइने में
खुद के साथ
तुम्हारा चेहरा
साफ नज़र आया था।
ye b imagine kar rahi hu...
कि एक आवाज़ आई
अरे ! मैं यहाँ हूँ ...
सुनते ही -
जैसे ही पलटी
---ab yaha sab gad bad ho gaya...ab me imagine nahi kar sakti
फिसल गया था पांव
और संभाल लिया था मुझे
तुमने अपनी बाँहों में ।
----sahi ja rahe ho...
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
aisa suraksha kavach bhagwaan sab ko de. ( ha.ha.ha.)
nice sharing sangeeta ji...ise padh kar mujhe aapki gulmohar ki yaad aa gayi.
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
ismein kya shaq..!!
bahut khoobsurat premaabhivyakti...
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा...सुन्दर अभिव्यक्ति यही एहसास जिंदगी में सुखद अनुभूति बनाए रखता है .शुक्रिया
अरे ! मैं यहाँ हूँ ...
सुनते ही -
जैसे ही पलटी
कि
फिसल गया था पांव
और संभाल लिया था मुझे
तुमने अपनी बाँहों में ...
प्रेम को सच्चे अर्थों में शायद ऐसे ही जाना जाता है ......... बहुत ही शशक्त अभिव्यक्ति है .......... छू गयी दिल को ये रचना ......
बेहद प्यारे अहसास को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है.....सुन्दर अभ्व्यक्ति
क्या बात है!!कुछ बात है..
so nice its realy very nice to read this poetry ...thanx for it
बहुत सुन्दर कविता है
आज भी
सुरक्षा - कवच बना हुआ है
मेरे लिए
तुम्हारी बाहों का दायरा
वाह लाजवाब अभिव्यक्ति शुभकामनायें
बेहद प्यारे अहसास को खूबसूरती से शब्दों में पिरोया है.....सुन्दर अभ्व्यक्ति
Post a Comment