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ताम्बुल और ताम्बुली

>> Tuesday, December 27, 2011




जिस तरह से 
ताम्बूल पर 
सही मात्रा में 
लगाना पड़ता है 
कत्था - चूना 
और डालना पड़ता है
मिठास के लिए 
थोड़ा गुलकंद ,
सुगंध के लिए 
कुछ इलायची 
और तभी 
खाने वाला 
आनंद लेता है 
बिना मुँह कटे 
पान का  और 
रच जाता है मुँह 
लाल रंग से .
उसी तरह से 
रिश्तों को पान सा 
सहेजने के लिए 
बनना चाहिए 
ताम्बूली .


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स्मृतियों में रूस ... ( शिखा वार्ष्णेय ) ..मेरी नज़र से

>> Tuesday, December 20, 2011



शिखा वार्ष्णेय ब्लॉग जगत का जाना माना नाम है पत्रकारिता में उन्होंने तालीम हासिल की है  और स्वतंत्र पत्रकार के रूप में वो लेखन कार्य से जुडी हुई हैं .. आज उनकी पुस्तक  स्मृतियों में रूस  पढ़ने का सुअवसर मिला .. यह पुस्तक उनके अपने उन अनुभवों पर आधारित है जो उनको अपनी पत्रकारिता की शिक्षा के दौरान मिले ..पाँच वर्ष के परास्नातक के पाठ्यक्रम को करते हुए जो कुछ उन्होंने महसूस किया और भोगा उस सबका निचोड़ इस पुस्तक में पढ़ने को मिलता है .उनकी दृष्टि से रूस के संस्मरण पढ़ना निश्चय ही रोचक है . स्कॉलरशिप के लिए चयन होने पर भारतीय माता पिता के मनोभावों की क्या दशा होती है उसको सुन्दर शैली में बाँधा है--


"आयोजन कर्ता सब करेंगे और अकेली थोड़े न जा रही है और ३० बच्चे हैं सब इसी की उम्र के होंगे.पापा बोले जा रहे थे कहने को तो यह सब वह मम्मी से कह रहे थे जो कि नाते रिश्तेदारों की बातों से परेशान थीं "

नए देश में सबसे पहले समस्या आती है भाषा की ..और इसी का खूबसूरती से वर्णन किया है जब उनको अपने बैचमेट के साथ चाय की तलब लगी ...
"हम कैफे आ गए. और शुरू हुई मुहीम वहां अटेंडेंट को चाय समझाने की .अपने हाव भाव से, कुछ अंग्रेजी को तोड़-मोड़ के, घुमा घुमा का होंट, बनाकर मुंह टेढ़े मेढे, वह महोदय हो गए शुरू. अब हमारा वह मित्र कहे टी-... टी ..., फॉर टी प्लीज. पर वह महिला समझ ही नहीं पा रही थी."
      अनेक तरह से समझाने का प्रयास करने के बाद पता चला कि रुसी में भी चाय को चाय ही कहते हैं . 
शिखा ने अपनी पुस्तक में मात्र अपने अनुभव नहीं बांटे हैं ... अनुभवों के साथ वहाँ की संस्कृति , लोगों के व्यवहार , दर्शनीय स्थल का सूक्ष्म विवरण , उस समय की रूस की आर्थिक व्यवस्था , राजनैतिक गतिविधियों  सभी पर अपने विचार प्रस्तुत किये हैं .जिससे पाठकों को रूस के बारे में अच्छी खासी जानकारी हासिल हो जाती है ..
      रुसी लोग कितने सहायक होते हैं इसकी एक झलक मिलती है जब भाषा सीखने के               लिए उन्हें वोरोनेश  भेजा गया .और जिस तरह वह एक रुसी लडकी की मदद से वो   यूनिवर्सिटी पहुँच पायीं उसका जीवंत वर्णन पढ़ने को मिलता है .
 उस समय रूस में बदलाव हो रहे थे ---और उसका असर वहाँ की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा था ..इसकी झलक भी इस पुस्तक में दिखाई देती है .


"आर्थिक तंगी का असर लोगों के काम पर उनके व्यक्तित्व पर जाहिर तौर पर पड़ रहा था नौजवान रूसियों में विदेशियों के खिलाफ मानसिकता जन्म लेने लगी थी.गहरे रंग वाले विदेशियों को मारने  पिटने की कई घटनाये सामने आने लगी थीं यहाँ तक कि कुछ हत्याओं की घटनाएँ भी सुनने में आने लगीं थीं." 

वहाँ के दर्शनीय स्थलों की जानकारी काफी प्रचुरता से दी गयी है ... इस पुस्तक में रुसी लडकियों की सुंदरता से ले कर वहाँ के खान पान पर भी विस्तृत दृष्टि डाली गयी है ..यहाँ तक की वहाँ के बाजारों के बारे में भी जानकारी मिलती है ..




शिखा ने जहाँ अपने इन संस्मरणों में पाँच साल के पाठ्यक्रम के तहत उनके साथ होने वाली घटनाओं और उनसे प्राप्त अनुभवों को लिखा है वहीं रूस के वृहद्  दर्शन भी कराये हैं ...

इस पुस्तक को पढ़ कर विदेश में पढ़ने वाले विद्यार्थियों को किस किस कठिनाई से गुज़रना  पड़ता है इसका एहसास हुआ ..इतनी कम उम्र में अनजान देश और अनजान लोगों के बीच खुद को स्थापित करना , आने वाली हर कठिनाई का सामना करना ,भावुक क्षणों में भी दूसरों के सामने कमज़ोर न पड़ना  , गलत को स्वीकार न करना और हर हाल में सकारात्मक सोच ले कर आगे बढ़ना . ये कुछ लेखिका की विशेषताएँ हैं जिनका खुलासा ये पुस्तक करती है .  पुस्तक पढते हुए मैं विवश हो गयी यह सोचने पर कि कैसे वो वक्त निकाला होगा जब खाने को भी कुछ नहीं मिला और न ही रहने की जगह .प्लैटफार्म पर रहते हुए तीन  दिन बिताने वो भी बिना किसी संगी साथी के ..इन हालातों से गुज़रते हुए और फिर सब कुछ सामान्य करते हुए कैसा लगा  होगा ये बस  महसूस ही किया जा सकता है ..
हांलांकि यह कहा जा सकता है कि पुस्तक की  भाषा साहित्यिक न हो कर आम बोल  चाल की भाषा है .. पर मेरी दृष्टि में यही इसकी विशेषता है ... पुस्तक की भाषा में मौलिकता है और यह शिखा की मौलिक शैली ही  है जो पुस्तक के हर पृष्ठ को रोचक बनाये हुए है ..भाषा सरल और प्रवाहमयी है जो पाठक को अंत तक  बांधे रखती है कई जगह चुटीली भाषा का भी प्रयोग है जो गंभीर  परेशानी में भी हास्य का पुट दे जाती है --
 "अब उसने भी किसी तरह हमारे शब्द कोष में से ढूँढ ढूँढ कर हमसे पूछा कि कहाँ जाना है. हमने बताया. अब उसे भी हमारे उच्चारण  पर शक हुआ. इसी  तरह कुछ देर शब्दकोष  के साथ हम दोनों कुश्ती करते रहे अंत में हमारा दिमाग चला और हमने फटाक  से अपना यूनिवर्सिटी  का नियुक्ति पत्र उसे दिखाया."
.हाँलांकि इस पुस्तक के कुछ अंश हम शिखा के ब्लॉग स्पंदन पर पढ़ चुके हैं लेकिन उसके अतिरिक्त भी काफी कुछ बचा था जो इस पुस्तक के ज़रिये हम तक पहुंचा है
पुस्तक में दिए गए रूस के दर्शनीय स्थलों के  चित्र पुस्तक को और खूबसूरती प्रदान कर रहे हैं . कुल मिला कर रोचक अंदाज़ में रूस के बारे में जानना हो तो यह पुस्तक अवश्य पढ़ें ..


पुस्तक -- स्मृतियों में रूस 
लेखिका - शिखा वार्ष्णेय 
प्रकाशक - डायमंड पब्लिकेशन 
मूल्य  -- 300 /रूपये

Diamond Pocket Books (Pvt.) Ltd.
X-30, Okhla Industrial Area, Phase-II,
New Delhi-110020 , India
Ph. +91-11- 40716600, 41712100, 41712200
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देर आए दुरुस्त आए

>> Wednesday, December 14, 2011





बेख्याली  में  ही 
गुज़ार  दी  सारी उम्र
इसी इंतज़ार में 
कि 
कभी तो कोई 
रखे कुछ ख्याल 

और जब आज 
कोई अपना 
रखता है 
ज़रूरत से ज्यादा 
ख़याल 
तो अनिच्छा की 
रेखाएं 
खिंच जाती हैं 
चेहरे पर, 
वाणी में भी 
उतर आता है 
खीज भरा स्वर .

पर 
अक्सर शाम को 
करते हुए सैर 
अपने से ज्यादा 
उम्रदराज़ दम्पतियों को 
जब देखती हूँ 
हाथ में हाथ ले 
बनते  हैं सहारा 
एक दूसरे का 
तो 
लगता है कि
शायद यही उम्र है 
जिसमें रखा जाता है 
सबसे ज्यादा ख्याल 

और तब 
मन में उभर आती है 
बस एक सोच कि -
देर आए दुरुस्त आए .




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एक उत्सव ये भी ..

>> Monday, December 5, 2011





जन्म का 
ज्यों होता है उत्सव 
मृत्यु  का भी 
तो होना चाहिए 
मृत्यु को भी एक 
उत्सव की तरह ही 
मनाना चाहिए 
आगत का 
करते हैं स्वागत 
उल्लास से  
तो विगत की  भी 
करो विदाई  
हास से 
जा रहा पथिक 
एक नयी राह पर
तो  
प्रसन्नता से 
दो हौसला उसको .
खुशियाँ मनाओ कि
जीवन के कष्ट 
अब पूरे हुए 
जो थे अवरुद्ध मार्ग 
अब वो प्रशस्त हुए
जिस दिन 
आता  है कोई जीव 
इस धरती पर 
उसी दिन 
उसका अंत  भी 
आता  है साथ  में,  
लेकिन 
इस सत्य को हम 
भूल जाते हैं 
अपने प्रमाद में .
मौत जब निश्चित है तो 
उसके आगमन पर 
करना चाहिए 
स्वागत आल्हाद से 
इस त्योहार को भी 
मनाना  चाहिए उत्साह से .



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