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ज़िंदगी की महाभारत

>> Tuesday, February 28, 2012







वक़्त का द्रोणाचार्य 
पल पल 
सजाता है 
नित नए चक्रव्यूह 
और 
अभिमन्यु बना मन 
आहत हो 
तोड़ता है दम
न जाने 
कितनी बार ।
इच्छाओं  के कौरव 
करते है अट्टहास  
उसकी नाकामियों  पर 
भावनाओं के पांडव 
झेलते हैं जैसे 
सारी लाचारी 
और 
विवेक का कृष्ण 
संचालित करता है 
ज़िंदगी की 
हर महाभारत को । 

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ज़िंदगी के रंग .... हाइकु के संग

>> Wednesday, February 22, 2012





बच्चे का रोना 
खुशियों का खजाना 
मुबारक हो 
*********************

उनीदीं आँखे 
किलकारी उसकी 
सुकूं देती है .

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Baby_walking : First steps Stock Photo
चलना सीखा 
हाथ थाम के  मेरा 
कदम बढे .

**********

बड़ा हो गया 
समझ बढ़ गयी 
हम नादान .

*********
इस उम्र में 
झटक दिया हाथ 
सन्न हुयी मैं 

***********

शोर ही शोर 
सैलाब यहाँ वहाँ 
नम हैं आँखें 

*************



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उन्मादी प्रेम

>> Monday, February 13, 2012


प्रस्तुत रचना मनु भण्डारी जी के उपन्यास  " एक कहानी यह  भी  में उनके विचारों पर आधारित है , उनके विचार को अपने शब्द देने का प्रयास किया है ...



उफनते समुद्र की 
लहरों सा 
उन्मादी प्रेम 
चाहता है 
पूर्ण समर्पण 
और निष्ठा 
और जब नहीं होती 
फलित सम्पूर्ण  इच्छा 
तो उपज आती है 
मन में कुंठा 
कुंठित मन 
बिखेर देता  है 
सारे वजूद को 
ज़र्रा ज़र्रा 
बिखरा वजूद 
बन जाता है 
हास्यास्पद 
घट  जाता है 
व्यक्ति का कद 
लोगों की नज़रों में 
निरीह सा 
बन जाता है 
अपनों से जैसे 
टूट जाता नाता है .

गर बचना है 
इस परिस्थिति से 
तो मुक्त करना होगा मन 
उन्माद छोड़ 
मोह को करना होगा भंग |
मोह के भंग होते ही 
उन्माद का ज्वार 
उतर जाएगा 
मन का समंदर भी 
शांत लहरों से 
भर जायेगा .

 

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मुस्कुराती तस्वीर

>> Friday, February 3, 2012


Indian rupees.png



अनुराग अनंत  के ब्लॉग पर उनकी  रचना पढ़ कर जो मन में भाव उठे ..उनको आपके साथ बाँट रही हूँ ... 

 बापू ,
बहुत पीड़ा होती है 
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर 
चंद हरे पत्तों पर 
देख कर 
जिसको 
पाने की चाह में 
एक मजदूर 
करता है दिहाडी 
और जब शाम को 
कुछ मिलती है 
हरियाली 
तो रोटी के 
चंद टुकड़ों में ही 
भस्म हो  जाती है 
न जाने कितने 
छोटू और कल्लू 
तुमको पाने की 
लालसा में 
बीनते हैं कचरा 
या फिर 
धोते हैं झूठन 
पर नहीं जुटा पाते 
माँ की दवा के पैसे 
और उनका 
नशेड़ी बाप 
छीन ले जाता है 
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर 
और चढा लेता है 
ठर्रा एक पाव .

बिना तुम्हारी तस्वीरों को पाए 
जिंदगी कितनी कठिन है गुजारनी 
इसी लिए न जाने कितनी बच्चियाँ
झुलसा देती हैं अपनी जवानी . 


देखती होगी 
जब तुम्हारी  आत्मा 
अपनी ही मुस्कुराती तस्वीर 
जिसके न होने से पास 
किसान कर रहे हैं 
आत्महत्या 
छोटू पाल रहा है 
अपनी ही लाश 
न जाने कितनी बच्चियां 
करती हैं 
देह व्यापार 
और न जाने 
कितने कल्लू 
सड़ रहे हैं जेल में 
बिना कोई अपराध किये ..
तो 
करती होगी चीत्कार 
जिसकी आवाज़ 
नहीं जाती किसी के 
कान में 
आज अहिंसा के पुजारी की 
मुस्कुराती तस्वीर 
बन जाती है
हत्याओं का कारण 
और हम 
निरुपाय से हुए 
रह जाते हैं 
बडबडाते हुए . 

              

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