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झील सी होती हैं स्त्रियाँ

>> Tuesday, October 23, 2012

वाणी गीत    की दो रचनाएँ पढ़ीं थीं झीलें हैं कि गाती मुसकुराती स्त्रियाँ   और झील होना भी एक त्रासदी है ... और यह झील मन को बहुत भायी ....... झील का ही उपमान ले कर एक रचना यहाँ भी पढ़िये ....


झील सी 
होती हैं स्त्रियाँ 
लबालब  भरी हुई 
संवेदनाओं से 
चारों ओर के किनारों से 
बंधक सी बनी हुई 
सिहरन तो होती है 
भावनाओं की लहरों में
जब मंद समीर 
करता है स्पर्श 
पर नहीं आता कोई 
ज्वार - भाटा
हर तूफान को 
समां  लेती हैं 
अपनी ही गहराई में 
झील सी होती हैं स्त्रियाँ  

किनारे तोड़  
बहना नहीं जानतीं 
स्थिर सी गति से 
उतरती जाती हैं 
अपने आप में
ऊपर से शांत 
अंदर से उदद्वेलित 
झील सी होती हैं स्त्रियाँ । 

झील का विस्तार 
नहीं दिखा पाता 
गहराई उसकी 
इसीलिए 
नहीं उतर पाता 
हर कोई इसमें 
कुशल तैराक ही 
तैर सकता है 
गहन , शांत , 
गंभीर झील में
झील सी होती हैं स्त्रियाँ । 






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अधूरा उपवन

>> Wednesday, October 10, 2012




मन के आँगन में
तुमने अपनी ही 
परिभाषाओं के 
खींच दिये हैं 
कंटीले तार
और फिर 
करते हो इंतज़ार 
कि , 
भर जाये आँगन 
फूलों से .

हाँ , होती है 
हरियाली 
पनपती है 
वल्लरी 
पत्ते भी सघन 
होते हैं 
पर फूल 
नहीं खिलते हैं । 

क्या तुमको 
ऐसा नहीं लगता कि
मन का उपवन 
अधूरा  रह जाता है 
और खुशियों का आकाश 
हाथ नहीं आता है । 



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हमारी वाणी

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