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कविता कहाँ है ?????????

>> Friday, April 26, 2013




आठ - नौ साल की बच्ची 
माँ की उंगली थाम 
आती है जब मेरे घर 
और उसकी माँ 
उसके हाथों में 
किताब की जगह 
पकड़ा देती है झाड़ू 
तब दिखती है मुझे कविता ।



अंधेरी रात के 
गहन सन्नाटे को 
चीरती हुई 
किसी नवजात बच्ची की 
आवाज़ टकराती है 
कानो से 
जिसे उसकी माँ 
छोड़ गयी थी 
फुटपाथ पर 
वहाँ मुझे दिखती है कविता ॰


कूड़े  के ढेर पर 
कूड़ा बीनते हुये 
छोटे छोटे  बच्चे 
लड़  पड़ते हैं 
और उलझ जाते हैं 
पौलिथीन पाने के लिए 
उसमें दिखती है कविता ।


व्याभिचार  ही व्याभिचार 
बलात्कार ही बलात्कार 
सोयी हुई व्यवस्था 
अनाचार ही अनाचार 
मरी हुई  संवेदनाएं
भाषण पर भाषण 
भूख पर राशन 
निर्लज्ज प्रशासन 
लाचार कानून 
अब मुझे  नहीं दिखती 
कहीं कोई कविता । 



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घायल रिश्ते

>> Tuesday, April 16, 2013




परम्पराओं के नाम पर 
देखते हैं हम 
नयी पीढ़ी को ,
एक आलोचक की दृष्टि से ,
और भरते रहते हैं 
थोड़ा थोड़ा बारूद 
उनके मन आँगन में,
नहीं देना चाहते आज़ादी 
यह समझने की ,
कि इनसे होती हैं अपनी 
जड़ें मजबूत ,
बिना जाने बूझे 
बस निबाहते हैं 
जब परम्पराओं को ,
तो आस्था का तत्व 
नहीं होता उसमें ,
और एक दिन 
यही बन जाता है एक 
विध्वंसकारी  विस्फोटक ,
जब होता है विस्फोट तो ,
रिश्तों का जिस्म 
हो जाता है लहू - लुहान ,
और हम - 
हतप्रभ से रह जाते हैं 
अपनी परवरिश पर 
एक प्रश्न चिह्न  लिए हुये ......




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ठंडी औरत

>> Wednesday, April 3, 2013




प्रेम में पगी
हिरनी सी आँखें ,
ठिठक जाती हैं 
देख कर ,
उसकी आँखों में 
एक हिंसक पशु , 
वासना की देहरी पर ,
दम तोड़ देती है 
उसकी चाहत  ,
आभास होते ही 
हकीकत का,
जुटाती है 
भर पूर  शक्ति ,
लेकिन काली 
बनते बनते भी ,
रह जाती है ,
मात्र एक 
ठंडी औरत । 





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हमारी वाणी

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