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बेख्याली के ख्याल

>> Monday, February 24, 2014




ज़िंदगी के दरख्त से सब  उड़ गए परिंदे
दहलीज़ तक भी नहीं आते अब कोई बाशिंदे ।

पास के शजर से जब आती है चहचहाहट
पड़ जाते हैं न जाने क्यों मोह के फंदे ।

सब हैं अपने  अपनेआप में इतने व्यस्त
नहीं मिलते अब सहारे के लिए कोइ कन्धे ।

नेह नहीं  मिलता कहीं  हाट  बाज़ार में
ना  ही उगाही  के  रूप  में  काम आते  हैं चंदे ।

किसी के लिए  जब न रहो काम के
करते  रहो बस केवल अपने काम धंधे । 


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भराव शून्यता का

>> Tuesday, February 4, 2014





बसंत पंचमी पर माँ सरस्वती को नमन करते हुए यह रचना सुश्री रश्मि प्रभा जी को समर्पित --

जब न हो संघर्ष जीवन में 
और न ही हो कोई विषमता 
तो वक़्त के साथ 
कुछ उदास सा 
हो जाता है मन 
सहज सरल सा 
जीवन भी ले आता है 
कुछ खालीपन .

यूँ तो शून्यता हो 
गर जीवन में 
तो उसे निर्वाण कहते हैं 
खोने पाने से जो 
ऊपर उठ जाएँ 
उसे हम महान कहते हैं .

पर जब घिर जाएँ 
हम स्वयं शून्यता से 
तो मन छटपटाता है 
अपने चारों ओर बस 
अन्धकार नज़र आता है .
ऐसे में किसी का पुकारना 
संबल बन जाता है 
भावों का स्नेहिल स्पर्श 
तम को हर जाता है . 
काश मैं भी  एक दीया 
ऐसा ही बन सकूँ 
किसी के जीवन की 
शून्यता में 
कोई अंक भर सकूं .

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हमारी वाणी

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