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सिमटी यादें

>> Sunday, November 29, 2015






सपने हों गर आँखों में तो आंसू भी होते हैं 
अपने ही हैं जो दिल में ज़ख्मों को बोते  हैं |

मन के आँगन में बच्चों  का बचपन हँसता है 
सूने नयनों से लेकिन बस पानी रिसता  है |


नया नीड़ पा कर  पंछी कब वापस  आते हैं 
हर आहट पर बूढ़े फिर क्यों उम्मीद  लगाते  हैं |


नयी नस्ल की नयी फसल ही तो लहराती है 
पुरानी फसल की हर बाली तो मुरझा  जाती है |


वक़्त गुज़रता है तो उम्र भी गुज़र जाती है 
बची ज़िन्दगी बीती यादों में सिमट  जाती है|


सिमटी  यादों में ही तो बस  हम जीते  हैं 
गर सपने हों आँखों में तो आंसू भी होते हैं |



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