अक्स विहीन आईना
>> Monday, December 3, 2012
आज उतार लायी हूँ
अपनी भावनाओं की पोटली
मन की दुछत्ती से
बहुत दिन हुये
जिन्हें बेकार समझ
पोटली बना कर
डाल दिया था
किसी कोने में ,
आज थोड़ी फुर्सत थी
तो खंगाल रही थी ,
कुछ संवेदनाओं का
कूड़ा - कचरा ,
एक तरफ पड़ा था
मोह - माया का जाल ,
इन्हीं सबमें खुद को ,
हलकान करती हुई
ज़िंदगी को दुरूह
बनाती जा रही हूँ ।
आज मैंने झाड दिया है
इन सबको
और बटोर कर
फेंक आई हूँ बाहर ,
मेरे मन का घर
चमक रहा है
आईने की तरह , लेकिन
अब इस आईने में
कोई अक्स नहीं दिखता ।