स्याह रात
>> Tuesday, July 27, 2010
मेरी ज़िंदगी में,
अमावस क्यों है
स्याह रात की ये
तन्हाईयां क्यों हैं
चाँद भी आसमाँ पर
दिखता नही है
चाँदनी का भी कोई
नामों निशाँ नही है
तारों की झिलमिलाहट ही
सुखद लग रही है
जैसे कि ना जाने
कितने स्वप्न
आसमाँ पे टंग गये हैं
यहाँ से खड़ी मैं
देखती हूँ जब
जैसे कि सपने सब
जीवंत हो उठे हैं
सुकून मिलता है
उन सपनों को देखने से
लगता है कि ज़िंदगी में
पूर्णिमा आ गयी है
पर ----
सपने तो बस सपने हैं
हक़ीकत में तो--
ये स्याह रात आ गयी है..