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राग - वैराग्य

>> Tuesday, April 20, 2021

 


नहीं जानती  

पूजा के नियम 
विधि - विधान ,
कब और किसकी 
की जाय पूजा 
इसका भी  नहीं 
 मुझे कोई भान ।

हृदय के अंतः स्थल से 
मैं बस 
अनुरागी हूँ 
स्वयं के ही 
प्रेम में डूबी 
वीतरागी हूँ ।
लोग सोचते हैं 
प्रीत में वैराग्य कैसा 
मुझे लगता है 
वैराग्य नहीं तो 
राग कैसा ? 

जब भी हुआ है 
आत्मा से 
मिलन आत्मा का 
मन्दिर के घंटों से 
राग सुनाई देते हैं 
ध्यान की अवस्था में तब 
ब्रह्मांड दिखाई देते हैं ।
कहने को तो लोग 
इसे भी कह देते हैं 
पाखंड  ,
लेकिन --
मेरा भी विश्वास है 
अखंड 
प्रेम पाने के लिए जब तुम
आत्मा की गहराई में जाओगे
नहीं  रहोगे वंचित   फिर 
स्वयं को  पूर्ण  पाओगे ।।





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दूजी लहर कोरोना वाली

>> Thursday, April 15, 2021


नमी आँखों की अब छुपा ली है 


र इक ख्वाहिश यूँ दिल में पाली है  ।


पँखों में थी कहाँ परवाज़ भला
कदमों में ख़ुद की ज़मीन पा ली है ।

फकीरी में हो रहे यूँ मस्त मलंग
दिल से हसरत भी हर मिटा ली है ।

साकी की अब नहीं तलाश मुझे
मेरे हाथों में तो जाम खाली है ।

मुन्तज़िर मैं नहीं तेरे आने का 
तू ही दर पर मेरे सवाली है ।

घड़ी बिरहा की अब टले कैसे
आयी दूजी लहर कोरोना वाली है ।

काटी हैं कई रातें तूने बिन मेरे
आज अर्ज़ी मैंने मगर लगा ली है ।

आईना तोड़ दिया झूठी अना का मैंने
मुद्दतों जिसकी वजह, हमने बात टाली है ।




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अवसान की ओर

>> Thursday, April 8, 2021



 स्वप्निल सी आँखों में 

अब न साँझ है 
न सवेरा है 
उदास मन के 
चमन में बस 
सोच के परिंदों का 
मौन डेरा है ।

ज़िन्दगी की आँच पर 
फ़र्ज़ के हाथों को 
ताप रहे हैं 
रिश्तों को निबाहने का 
जैसे ,
ये भी एक 
मनका फेरा है ।

मन की बेचैनियाँ
यूँ ही बढ़ाते बेकार में  
जब कि इस जहाँ में 
भला किसका 
पक्का बसेरा है ?

जानते तुम भी हो ,
और मैं भी ,कि
ज़िन्दगी के अवसान  पर 
न कुछ तेरा है 
न कुछ मेरा है ।



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