रिसता मन
>> Thursday, May 31, 2012
उपालम्भों से
आती है
हर रिश्ते में
खटास
शिकवे
नहीं रख पाते
मन में
मिठास
टूट जाए
जब
एक बार
विश्वास
कैसे करे
कोई फिर
प्रेम की
आस ?
होता है
हर बात से
मन पर
वज्राघात
तो वाणी भी
हो जाती है
कर्कश
और हर
बात से
होता है जैसे
कुठाराघात .
प्रेम में
विश्वास का होना
ज़रुरी है
विश्वास न हो तो
बातों को
छिपा लेना ही
मजबूरी है .