प्रवृति
>> Saturday, January 21, 2012
आज यूँ ही
छत पर डाल दिए थे
कुछ बाजरे के दाने
उन्हें देख
बहुत से कबूतर
आ गए थे खाने .
खत्म हो गए दाने
तो टुकुर टुकुर
लगे ताकने
मैंने डाल दिए
फिर ढेर से दाने
कुछ दाने खा कर
बाकी छोड़ कर
कबूतर उड़ गए
अपने ठिकाने .
तब से ही सोच रही हूँ
इंसान और पक्षी की
प्रवृति में,
अंतर परख रही हूँ
परिंदे नहीं करते संग्रह
और न ही उनको
चाह होती है
ज़रूरत से ज्यादा की
और इंसान
ज्यादा से ज्यादा
पाने की चाहत में
धन - धान्य एकत्रित
करता रहता है
वर्तमान में नहीं ,बल्कि
भविष्य में जीता है ,
प्रकृति ने सबको
भरपूर दिया है
पर लालची इंसान
केवल अपने लिए
जिया है ,
इसी लालच ने
समाज में
विषमता ला दी है
किसी को अमीरी, तो
किसी को
गरीबी दिला दी है .
काश
विहगों से ही इंसान
कुछ सीख पाता
तो
धरती का सुख वैभव
सबको मिल जाता .