कतरने ख़्वाबों की
>> Sunday, June 26, 2011
ख्वाब मेरे
कपड़े की
कतरनों के माफिक
कटे फटे
जब भी सहेजना चाहा
कतरनों की तरह ही
बिखर जाते हैं
फिर भी
मैं उन्हें सहेज
रख लेती हूँ
दिल के लिफ़ाफ़े में
जब कोई चाहता है
तो उनसे बना देता है
कोई सुन्दर सा
पैच वर्क
और मैं
उसी में खो जाती हूँ ,
जैसे ही
पुराना पड़ता है
पैचवर्क
तो
लगाने वाला
खुद ही उखाड फेंकता है
और मैं
उन कतरनों की कतरनें
देखती रह जाती हूँ ...