भरमाये हैं .....
>> Wednesday, August 31, 2011
बावफा हो कर भी हम बेवफा कहलाये हैं
अपनो ने ही सीने में नश्तर चुभाये हैं |
चाहा तो नहीं था कि यकीं करें उनकी बातों पर
पर फिर भी उनके वादे पर हमने धोखे खाए हैं |
सियासत चीज़ है बुरी उस पर क्या यकीं कीजै
उनके किये वादे बस मन को लुभाए हैं |
अँधेरे में बैठे हैं हम दर औ दीवार को थामें
दामन नहीं है हाथ में , बस उनके साये हैं |
खामोशी से भी अब क्यों कुछ करें इज़हार
जुबां से कहे लफ़्ज़ों से कई बार भरमाये हैं ..
संगीता स्वरुप
व्ही० एन० श्रीवास्तव जी द्वारा शब्दों में कुछ परिवर्तन के साथ गाई गयी यह गज़ल ...
व्ही० एन० श्रीवास्तव जी द्वारा शब्दों में कुछ परिवर्तन के साथ गाई गयी यह गज़ल ...