नृत्यांगना ---
>> Tuesday, July 13, 2021
जीवन के संगीत पर
थिरकती रहतीं हैं स्त्रियाँ
नही होती ज़रूरत
किसी साज़ की
या कि किसी सुर ताल की ,
मन और सोच की
जुगलबंदी
नचाती रहती है उसे
अपनी थाप पर ।
कभी हो जाती है राधा
चिर प्रतीक्षित
प्रेम की प्रतीक्षा में
तो कभी मीरा बन
जुड़ती है भक्ति भाव से ।
और कभी बन द्रोपदी
समेटती है
अनेक रिश्तों को
निष्पक्ष रह कर ।
कभी बन चण्डी
करती है नाश
उन आसुरी शक्तियों का
जो ज़ेहन में बसी होती है उसके ,
हर पल एक लय
एक गति ,
एक गीत , एक स्वर
चलता रहता
मन ही मन उसके ,
अपने क्रिया कलापों में रमी
इन्हीं सुरों पर जैसे
नृत्य करती रहती है ,
ये नृत्य भंगिमाएँ
नहीं दिखती किसी को
अचानक बाधा आने पर
झुंझला ही तो जाती है वो ,
फिर संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल ।