नृत्यांगना ---
>> Tuesday, July 13, 2021
जीवन के संगीत पर
थिरकती रहतीं हैं स्त्रियाँ
नही होती ज़रूरत
किसी साज़ की
या कि किसी सुर ताल की ,
मन और सोच की
जुगलबंदी
नचाती रहती है उसे
अपनी थाप पर ।
कभी हो जाती है राधा
चिर प्रतीक्षित
प्रेम की प्रतीक्षा में
तो कभी मीरा बन
जुड़ती है भक्ति भाव से ।
और कभी बन द्रोपदी
समेटती है
अनेक रिश्तों को
निष्पक्ष रह कर ।
कभी बन चण्डी
करती है नाश
उन आसुरी शक्तियों का
जो ज़ेहन में बसी होती है उसके ,
हर पल एक लय
एक गति ,
एक गीत , एक स्वर
चलता रहता
मन ही मन उसके ,
अपने क्रिया कलापों में रमी
इन्हीं सुरों पर जैसे
नृत्य करती रहती है ,
ये नृत्य भंगिमाएँ
नहीं दिखती किसी को
अचानक बाधा आने पर
झुंझला ही तो जाती है वो ,
फिर संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल ।
55 comments:
बहुत ही उम्दा रचना।
हर चीज़ करके एक राह पर ही चलना स्त्री जीवन का या तो भाग है या भाग्य।
नया ब्लॉग पधारें पौधे लगायें धरा बचाएं
वाआह क्या बात है। वह थिरकती है आने में के तारों से उपजे संगीय की लय पर..!
बेहतरीन
नारी नर पर भारी
अचानक बाधा आने पर
झुंझला ही तो जाती है वो ,
फिर संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल ।
सादर नमन..
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१४-०७-२०२१) को
'फूल हो तो कोमल हूँ शूल हो तो प्रहार हूँ'(चर्चा अंक-४१२५) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
स्त्री की मनस्थिति को बखूबी उकेरा है !! सूंदर अभिव्यक्ति दी !!
शुक्रिया अनिता जी
बहुत सुंदर भावाव्यक्ति दी।
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आत्मा से भावों
को सरगम में गूँथकर
तपस्विनी की भाँति
आत्मसात करती हैं
जीवन का सौंदर्य
सुर-ताल में
झूमती नृत्यांगनाएँ
अद्भुत करीगर हो जाती
जो बनाती हैं
लौकिक-अलौकिक
के मध्य पुल।
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प्रणाम दी
सादर
मन और सोच की
जुगलबंदी
नचाती रहती है उसे
अपनी थाप पर ।
वाह!!!
अपने क्रिया कलापों में रमी
इन्हीं सुरों पर जैसे
नृत्य करती रहती है ,
ये नृत्य भंगिमाएँ
नहीं दिखती किसी को
अपने ही क्रिया कलापों में रमी ये स्त्री आजीवन कठपुतली सी नाचती वह भी बिना सुर ताल के...बेटी पत्नी बहू भाभी माँ और भी कितने ही किरदार निभाती उलझनों को सुलझाते सुलझाते कभी झुंझलाती पर पुनः जीवन के सुर संग ताल मिलाती हर हाल में जीती है अपनी पारी....
बहुत ही लाजवाब सृजन।
* सरस जी ,
आज तो आप यहाँ आ कर हमारे मन के तार छेड़ गयी हैं 😄😄😄
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
*** यशोदा ,
हार्दिक शुक्रिया
** अनुपमा ,
आभार ।
अचानक बाधा आने पर
झुंझला ही तो जाती है वो ,
फिर संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल ।
.. सच ही तो कहा है आपने..स्त्री सुख दुख या किसी भी पलड़े में झूले, कुछ भी हो, जीवन तो चलता ही रहता है। सुंदर मनोभावों की अभिव्यक्ति।
प्रिय श्वेता ,
तुमने तो आत्मा के भावों को ही इस सुर ताल में गूंथ दिया है । कल्पना को और पंख मिले । लौकिक अलौकिक सभी को जोड़ती स्त्रियाँ सच कमाल करती हैं ।
सस्नेह
सुधा जी ,
आपने सारा स्त्री संसार रच डाला अपनी प्रतिक्रिया में । मेरे मन के भाव आप तक पहुँचे , आभार ।
प्रिय जिज्ञासा ,
सच ही तो कहा है आपने..स्त्री सुख दुख या किसी भी पलड़े में झूले, कुछ भी हो, जीवन तो चलता ही रहता है।
और स्त्रियाँ नाचती रहतीं हैं चकरघिन्नी बनी 😄😄😄
प्रतिक्रिया के लिए आभार
यूँ ही चलती जाती हैं स्त्रियाँ वर्ष भर वर्ष...
सत्य ही!
वाणी जी ,
सत्य ही .... और वो भी बिना किसी प्लानिंग के 😄😄😄
स्त्री के अनेक रूपों को स्त्री ही जान सकती है। सचमुच, जिंदगी की ताल से ताल मिलाए रखने हेतु कितना संघर्ष करती है वह...
मानो नटिनी की तरह जीवन के तार पर संतुलन साधकर चलती रहती है तमाम उम्र....जरा सा ध्यान भटका कि सब खत्म!!!
हर पल एक लय
एक गति ,
एक गीत , एक स्वर
चलता रहता
मन ही मन उसके ,
अपने क्रिया कलापों में रमी
इन्हीं सुरों पर जैसे
नृत्य करती रहती है ….
कितने सुन्दर भाव….कई बार पढ़ गई👌👌
समेटती है
अनेक रिश्तों को
निष्पक्ष रह कर ।
कभी बन चण्डी
करती है नाश
उन आसुरी शक्तियों का
बहुत खूब
मन और सोच की
जुगलबंदी
नचाती रहती है उसे
अपनी थाप पर ।
लाजवाब भावाभिव्यक्ति...,अत्यंत सुन्दर ।
बहुत भावपूर्ण अभिव्यक्ति प्रिय दीदी!
जीवन के संगीत से ताल मिलाना कोई स्त्री से सीखे। संसार के समस्त दायित्वों का सत्तर फीसदी सहेजती नारी हर हाल में खुश, हर चाल में खुश। आत्म संगीत की लय में डूबी आत्म मुग्धा नारी , इसी धुन में उम्र गुजार देती है। भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाईयां और शुभकामनाएं 👌👌👌🙏🌷🌷🌷❤️
बहुत बहुत सुन्दर
स्त्री का चकरघिन्नी होना सार्थक हुआ आपकी कविता में !
नज़रिए की ही तो सारी बात है !
वैसे आजकल इसका भला सा नाम 'मल्टी टास्किंग' हो गया है !
अभिनन्दन इस सम्मानजनक वर्णन के लिए. नमस्ते.
* मीना जी ,
सचमुच, जिंदगी की ताल से ताल मिलाए रखने हेतु कितना संघर्ष करती है वह...
मानो नटिनी की तरह जीवन के तार पर संतुलन साधकर चलती रहती है तमाम उम्र ।
और इस संतुलन में संगीत भी होता है जो अक्सर सुनाई नहीं देता ।
सुंदर प्रतिक्रिया के लिए आभार ।
उषा जी
रचना पसंद करने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया ।
* भारती जी ,
बहुत बहुत शुक्रिया
* मीना भारद्वाज जी
तहेदिल से शुक्रिया ।
** प्रिय रेणु
संसार के समस्त दायित्वों का सत्तर फीसदी सहेजती नारी हर हाल में खुश, हर चाल में खुश। आत्म संगीत की लय में डूबी आत्म मुग्धा नारी , इसी धुन में उम्र गुजार देती है।
अब वो खुश हो या न हो पर सारी उम्र यूँ ही गुज़र तो देती है।
इतनी प्यारी प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक धन्यवाद ।
** आदरणीय आलोक जी ,
आभार 🙏🙏🙏🙏
** नूपुरं ,
आपकी प्रतिक्रिया पढ़ते हुए चेहरे पर मुस्कान आ रही है ।
बहुत बहुत शुक्रिया ।
स्त्री जीवन की विषमताओं का सुन्दर , सरस , सजीव वर्णन !
स्त्री की इसी अपूर्व क्षमता ने उसे इस मुक़ाम पर ला दिया है जहां वह आज है, जीवन के सुर-ताल पर सहज ही थिरकती उसकी ऊर्जा समाज को दिशा भी दिखाती है
निज थाप से नि:सृत नृत्य अद्वितीय लय में ... अति सुन्दर ।
"मन और सोच की
जुगलबंदी
नचाती रहती है उसे
अपनी थाप पर ।" - संगीता जी ! बहुत ही भावपूर्ण बिम्बों से भरी इन पंक्तियों के साथ किसी भी संवेदनशील महिला के कई रूपों के शब्द-चित्र को वेब-पटल पर चलचित्र की तरह बख़ूबी उकेरा है आपने ...
"मन में
पनपी
सोचों की
स्वर लहरी
और
यथार्थ की
थापों की
जुगलबन्दी पर
मन ही मन
नाचती,
ठुमके लगाती,
गुनगुनाती हैं
वह (औरतें) अक़्सर "
(अतिरिक्त पंक्तियों के लिए क्षमाप्रार्थी ☺ ).. बस यूँ ही ...
हर पल एक लय
एक गति ,
एक गीत , एक स्वर
चलता रहता
मन ही मन उसके ,
अपने क्रिया कलापों में रमी
इन्हीं सुरों पर जैसे
नृत्य करती रहती है ,
ये नृत्य भंगिमाएँ
नहीं दिखती किसी को
अचानक बाधा आने पर
झुंझला ही तो जाती है वो ,
फिर संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल । अद्भुत रचना आदरणीया।
थिरकती हैं स्त्रियाँ जीवन की ताल पर और और सब कुछ चालायमान हो जाता है उस ताल के हिसाब से ... जिंदगी होती हैं स्त्रियाँ ... साँसें भी ...
बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीया संगीता दी।
नारी तू नारायणी, तुझसे ही संसार बना।तेरे रूप अनेक यहां...के भाव को सार्थक करती सराहनीय अभिव्यक्ति।
सादर नमस्कार।
स्त्री की मनोदशा का सजीव चित्रण
कमाल की रचना
बधाई
* ज्योत्स्ना जी ,
**अनिता जी ,
*** अमृता जी
****सुबोध जी ,
***** अनुराधा जी ,
****** नासवा जी ,
******* अनिता सैनी जी
********ज्योति खरे जी
आप सबने इस रचना के लिए अपनी अपनी तरह से एक नई दृष्टि प्रदान की है । आप सबकी प्रतिक्रियाएँ हमेशा उत्साहित करती हैं ।
सबका तहेदिल से आभार ।
बहुत सुंदर
बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, संगिता दी।
जीवन के संगीत पर
थिरकती रहतीं हैं स्त्रियाँ
नही होती ज़रूरत
किसी साज़ की
या कि किसी सुर ताल की
बहुत सुन्दर रचना
सुंदर रचना
वाह! संगीता जी कितना गहनता से आपने नारी मन को खोल कर रख दिया गजब शोध है ये सटीक सत्य।
शानदार सृजन।
बहुत सुन्दर...
नारी की सत्यता का दर्शाती सुंदर सार्थक रचना। अद्भुत सर्जन। आपको ढेरों शुभकामनाएँ। सादर।
संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल।
वाह बेहद शानदार अभिव्यक्ति ...
*ओंकार जी
**ज्योति जी
*** मनोज जी
**** समीर जी , अहा आपका आना आनंद दायक है , पुराने दिन याद दिला दिए । उड़ती हुई उड़नतश्तरी का सबको इंतज़ार रहता था ।
***** कुसुम जी ,
******प्रसन्नवदन जी ,
******* वीरेंद्र जी
******** सदा ,
आप सबका हृदय से धन्यवाद , आपकी टिप्पणियां हमेशा उत्साहित करती हैं ।यूँ ही हौसला बढ़ाते रहिएगा ।
महिलाओं के सहस्त्र रूपों को प्रगट करती बेहद सुन्दर रचना हमेशा की तरह सम्मोहित किये जाती है, साधुवाद सह आदरणीया।
स्त्री के विविध रूपों की अनुपम झांकी !
किन्तु मेरा एक प्रश्न है -
समाज के बन्धनों के चिंता किए बिना प्रेम करने वाली राधा, लोक-लाज खो कर कान्हा के प्रेम में निमग्न मीरा और अन्यायी का दमन करने के लिए चंडी का रूप धारण करने वाली के साथ अपने अधिकारों को भुला कर दूसरों के इशारों पर कठपुतली की तरह नाचने वाली द्रोपदी का उल्लेख क्यों?
झुंझला ही तो जाती है वो ,
फिर संयम रख
पकड़ लेती है सुर ताल
यूँ ही जीवन
चलता रहता हर हाल ।
सच्चाई
* शांतनु जी
** विभाजी
*** गोपेश जी ,
आप सभी का तहे दिल से शुक्रिया ।
द्रौपदी का ज़िक्र इस लिए की , जिस तरह द्रौपदी ने सभी रिश्तों को बखूबी समेटा था , यहाँ मात्र पाँच पतियों की ही बात नही है , उन्होंने बाकी के रिश्ते चाहे वो गांधारी के साथ हों या कुंती के , पितामह भीष्म के लिए हों या धृतराष्ट्र के लिए बखूबी निबाहे थे । रिश्ते निबाहने के लिए उपमा दी गयी है ।।
द्रौपदी के बारे में कई किताबें पढ़ीं उनसे ही ये सब जाना है ।
आपका बहुत आभार कि आपने गहनता से इस रचना को पढ़ा ।
बहुत ही सुन्दर सृजन । काफी दिन से आपकी कोई नज़्म या कृति नज़र नही सोचा ब्लाग पर ही देख लिया जाए । सो चला आया ।
आजकल प्रतिलिपि पर काजी वक़्त गुज़र जाता है । इस लिए ब्लॉग पर ओर फेसबुक लगभग कम ही हो गई है । मुझे लगा आपको भी वहां होना चाहिए । अआपका सृजन दुनियाँ के पास ज़रूर पहुंचना चाहिए ।
सादर ।
*** हर्ष महाजन जी ,
आपकी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार ।
मैंने कभी प्रतिलिपि पर कुछ पोस्ट नहीं डाली । वहाँ कैसे जाते हैं और किस तरह पोस्ट डालते हैं कुछ भी आइडिया नहीं है ।
आप लिंक दीजिए मुझे आपको लिंक भेजता हूँ कहाँ भेजना है । सच आप याद करेंगे । FB ke मैसेंजर पर अगर हो तो भेजता हूँ।
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आज फिर से पढ़ी ये रचना प्रिय दीदी।स्त्री विमर्श पर सराहनीय रचना है।
सादर नमस्कार ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (19-4-22) को क्यों लिखती हूँ ?' (चर्चा अंक 4405) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है,आपकी उपस्थिति मंच की शोभा बढ़ायेगी।
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कामिनी सिन्हा
जीवन की लय से कदमताल मिलाती जीवट नारी को समर्पित रचना को एक बार फिर से पढ़कर अच्छा लगा।बहुत बहुत बधाई और शुभकामनाएं प्रिय दीदी 🙏🙏🌺🌺🌷🌷
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