याज्ञसेनी
>> Friday, May 27, 2011
याज्ञसेनी !
कई बार मन करता है कि
तुमसे कुछ अन्तरंग बात करूँ
कुछ प्रश्न पूछूं
और आश्वस्त हो जाऊं
अपनी सोच पर
द्रुपद द्वारा किये गए यज्ञ से
हुआ था जन्म तुम्हारा
और रंग था तुम्हारा काला
फिर भी कहलायीं अनुपम सुंदरी
सच ही होगा
क्यों कि
मैंने भी सुना है ब्लैक ब्यूटी की
बात ही कुछ और है .
अच्छा बताओ
जब जीत कर लाये थे
धनञ्जय तुम्हें स्वयंवर से
तो कुंती के आदेश पर
तुम बंट गयीं थीं
पाँचों पांडवों में ,
जब कि तुम
कर सकतीं थीं विरोध
तुम्हारे तो सखा भी थे कृष्ण
जो उबार लेते थे
हर संकट से तुम्हें ,
या फिर माँ कुंती भी तो
अपने आदेश को
ले सकतीं थीं वापस ,
या फिर उन्होंने पढ़ ली थी
पुत्रों की आँखों में
तुम्हारे प्रति मोह की भाषा
और भाईयों को
एक जुट रखने के लिए
लगा गयीं थीं चुप ,
या फिर
तुमने भी हर पांडव में
देख लिए थे
अलग अलग गुण
जिनको तुमने चाहा था कि
सारे गुण तुम्हारे पति में हों ,
कैसे कर पायीं तुम
हर पति के साथ न्याय ?
क्या कभी
एक के साथ रहते हुए
ख्याल नहीं आया दूसरे का ?
यदि आया तो फिर कैसे
मन वचन से तुम रहीं पतिव्रता ?
युधिष्ठिर जानते थे
तुम्हारे मन की बात
शायद इसी लिए
वानप्रस्थ जाते हुए जब
सबसे पहले त्यागा
तुमने इहलोक
तो बोले थे धर्मराज -
सब भाइयों से परे
अर्जुन के प्रति आसक्ति ही
कारण है सबसे पहले
तुम्हारे अंत का .
हांलाकि मिला था तुमको
चिर कुमारी रहने का वरदान
फिर भी पल पल
बंटती रहीं तुम टुकड़ों में
कैसे सहा ये बंटने का दर्द ?
हे कृष्णा !
भले ही तुमने
बिता दिया सारा जीवन
पांडवों के साथ
कष्टों को भोगते हुए
पर आज भी लोंग
जब तुम्हारा नाम लेते हैं
तो बस यही याद आता है
कि - तुम ही हो वह
जो बनी कारण
महाभारत का .
सुना है आज भी
कुरुक्षेत्र की मिट्टी
लहू के रंग से लाल है |