मेघों ने अंबर ढक डाला
>> Tuesday, September 28, 2010
मेघों ने अम्बर ढक डाला
फूटा नभ से जल का छाला
रिसते रिसते मची तबाही
नदियाँ बहुत उफन कर आयीं
गुलशन तहस-नहस कर डाला
मेघों ने अम्बर ढक डाला
जब काटे थे पेड़ अंधाधुंध
बुद्धि हुई थी तब जैसे कुंद
तब तो स्वार्थ स्वयं का साधा
लाभ कमाया ज्यादा-ज्यादा
कुदरत ने अब फल दे डाला
मेघों ने अम्बर ढक डाला
अतिवृष्टि से घबराये सब
आखिर बुद्धू कहलाए अब
हरी-भरी उर्वरा छाँट दी
कंकरीट से धरा पाट दी
धरती को बंजर कर डाला
मेघों ने अम्बर ढक डाला .
इस रचना को सुधारने में डा० रूपचन्द्र शास्त्री जी का सहयोग मिला ..
शुक्रिया