अनुराग अनंत के ब्लॉग पर उनकी रचना पढ़ कर जो मन में भाव उठे ..उनको आपके साथ बाँट रही हूँ ...
बापू ,
बहुत पीड़ा होती है
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर
चंद हरे पत्तों पर
देख कर
जिसको
पाने की चाह में
एक मजदूर
करता है दिहाडी
और जब शाम को
कुछ मिलती है
हरियाली
तो रोटी के
चंद टुकड़ों में ही
भस्म हो जाती है
न जाने कितने
छोटू और कल्लू
तुमको पाने की
लालसा में
बीनते हैं कचरा
या फिर
धोते हैं झूठन
पर नहीं जुटा पाते
माँ की दवा के पैसे
और उनका
नशेड़ी बाप
छीन ले जाता है
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर
और चढा लेता है
ठर्रा एक पाव .
बिना तुम्हारी तस्वीरों को पाए
जिंदगी कितनी कठिन है गुजारनी
इसी लिए न जाने कितनी बच्चियाँ
झुलसा देती हैं अपनी जवानी .
देखती होगी
जब तुम्हारी आत्मा
अपनी ही मुस्कुराती तस्वीर
जिसके न होने से पास
किसान कर रहे हैं
आत्महत्या
छोटू पाल रहा है
अपनी ही लाश
न जाने कितनी बच्चियां
करती हैं
देह व्यापार
और न जाने
कितने कल्लू
सड़ रहे हैं जेल में
बिना कोई अपराध किये ..
तो
करती होगी चीत्कार
जिसकी आवाज़
नहीं जाती किसी के
कान में
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
बडबडाते हुए .
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