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ज़िंदगी की महाभारत

>> Tuesday, February 28, 2012







वक़्त का द्रोणाचार्य 
पल पल 
सजाता है 
नित नए चक्रव्यूह 
और 
अभिमन्यु बना मन 
आहत हो 
तोड़ता है दम
न जाने 
कितनी बार ।
इच्छाओं  के कौरव 
करते है अट्टहास  
उसकी नाकामियों  पर 
भावनाओं के पांडव 
झेलते हैं जैसे 
सारी लाचारी 
और 
विवेक का कृष्ण 
संचालित करता है 
ज़िंदगी की 
हर महाभारत को । 

84 comments:

संजय भास्‍कर 2/28/2012 4:49 PM  

अभिमन्यु बना मन आहत हो तोड़ता है दम न जाने कितनी बार ।
यकीनन सच ...बहुत-बहुत अच्‍छी रचना ।

Yashwant R. B. Mathur 2/28/2012 5:09 PM  

ज़िंदगी की महाभारत से बेहतरीन तुलना की है आंटी !

सादर

sangita 2/28/2012 5:09 PM  

सार्थक पोस्ट है आपकी, यह सही है की मन सदा ही उलझा सा रहता है जीवन के सफ़र में
सुन्दर रचना है आभार ।मेरे ब्लॉग पर आप सादर आमंत्रित हैं।

सूत्रधार 2/28/2012 5:13 PM  

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ...आभार

vidya 2/28/2012 5:14 PM  

बहुत सुन्दर....

और जीत सदा सत्य और अच्छाई की होती है...

सादर.

Saras 2/28/2012 5:16 PM  

वाह संगीताजी वाह !!!
क्या कहूं ...शब्द नहीं हैं मेरे पास...एक गहन प्रभाव छोड़ गयी आपकी कविता ...बहुत सुन्दर!

shikha varshney 2/28/2012 5:19 PM  

ओह ओह ओह ...गज़ब की सटीक उपमाएं..जाने क्यों और पढ़ने को, पढते ही जाने को मन कर रहा है...

Aruna Kapoor 2/28/2012 5:20 PM  

बहुत सुन्दर कल्पना!....बधाई!

Er. सत्यम शिवम 2/28/2012 5:26 PM  

महाभारत और जिंदगी का गहरा नाता है....वो हमारा अतित है और हमारा आज उसी महान कृत्य की पुनरावृति कर रहा है....हर उपमा बहुत ही सटीक और सुंदर है...सुंदर चित्रांकन किया है आपने आंटी....लाजवाब।

vandana gupta 2/28/2012 5:35 PM  

वाह ……………आपकी बेस्ट पोस्ट मे से एक है ये…………ज़िन्दगी का यथार्थ उकेरती एक सशक्त रचना।

रविकर 2/28/2012 5:39 PM  

चक्रव्यूह साजा करे , पल-पल वक्ताचार्य ।
अभि-मन आहत हो रहा, कृष्ण-विवेकी कार्य ।

कृष्ण-विवेकी कार्य, करें कौरव अट्ठाहस ।
जायज है सन्देश , धरो पांडव सत्साहस ।

यही युद्ध का धर्म, कर्म का लेकर डंडा ।
युद्ध-भूमि का मर्म, करो दुश्मन को ठंडा ।।


दिनेश की टिप्पणी - आपका लिंक

http://dineshkidillagi.blogspot.in

संगीता पुरी 2/28/2012 6:11 PM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को ।
अच्‍छी प्रस्‍तुति ..

ashish 2/28/2012 6:51 PM  

और आपने कर्मयोग का ग्रन्थ गीता लिख दी . सुन्दर

प्रतिभा सक्सेना 2/28/2012 7:13 PM  

बड़ा अर्थपूर्ण रूपक रचा है ,संगीता जी !

मनोज कुमार 2/28/2012 7:35 PM  

ग़ज़ब!

एक मैच्योर रचना, जिसमें आपने बिम्बों का अद्भुत प्रयोग किया है।

ऋता शेखर 'मधु' 2/28/2012 7:38 PM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को ।

बहुत सार्थक और सारगर्भित...

Vandana Ramasingh 2/28/2012 7:41 PM  

सभी प्रतीक एकदम सटीक बैठते हैं

Dr. sandhya tiwari 2/28/2012 7:57 PM  

jeevant prastuti, sach man ke bhitar bhi man chupa hota hai aur use sirph man hi samajh sakta hai.

स्वाति 2/28/2012 8:12 PM  

bahut hi sarthak rachna.....

प्रवीण पाण्डेय 2/28/2012 8:17 PM  

हमें तो बस विवेक का ही सहारा है..

Anupama Tripathi 2/28/2012 8:39 PM  

shabd shabd sahi ....
bahut sunder rachna ...

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 2/28/2012 8:49 PM  

यकीनन जिन्दगी एक महाभारत से कम नहीं है.

बहुत अच्छी अभिव्यक्ति,सुंदर सार्थक रचना के लिए बधाई.....

काव्यान्जलि ...: चिंगारी...

अनामिका की सदायें ...... 2/28/2012 8:53 PM  

jabardast upmaaon se saja asardar prastuti di hai.

रश्मि प्रभा... 2/28/2012 9:59 PM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को । aur aapne sanchalit kiya hai har bhaw ko , behtareen

mridula pradhan 2/28/2012 10:00 PM  

bahut achcha likhi hain......

संध्या शर्मा 2/28/2012 10:01 PM  

विवेक का कृष्ण संचालित करता है ज़िंदगी की हर महाभारत को...
परम सत्य... बहुत सुन्दर उपमाएं दी है आपने... बेहतरीन रचना...

डॉ. मोनिका शर्मा 2/28/2012 10:40 PM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को ।

सशक्त रचना..... गहन अभिव्यक्ति

Sadhana Vaid 2/28/2012 11:06 PM  

कितनी अद्भुत रचना है संगीता जी ! कितना मौलिक एवं प्रभावशाली रूपक बाँधा है अपनी रचना में ! एक अत्यंत अनुपम व अप्रतिम रचना ! बधाई स्वीकार करें !

Anonymous,  2/29/2012 12:12 AM  

संगीता जी, आपने जीवन को महाभारत के सांचे में बहुत ख़ूबसूरती से फिट किया है, पढ़ कर मन मुग्ध हो गया.... इस रचना की प्रशंसा को शब्दों में बांध पाना मेरे लिए तो सम्न्भव ही नहीं हैं... अब सूरज को क्या दिया दिखाना... वक़्त का द्रोणाचार्य, मन अभिमन्यु, इच्छाओं के कौरव, भावनाओं के पांडव और अंत में विवेक का कृष्ण... सभी उपमान बस अद्भुत हैं.... यह एक कालजयी रचना बन गयी है, जिसे जितने बार भी पढ़ा जायेगा पहले से जादा अच्छी लगेगी... इस अत्यन्त प्रभावशाली रचना के लिए बहुत बहुत बधाई....
सादर
मंजु

संतोष त्रिवेदी 2/29/2012 1:05 AM  

काश,विवेक हमारे पाले में रहे हमेशा !

वाणी गीत 2/29/2012 6:32 AM  

अभिमन्यु मन ,
इच्छाएं कौरव ,
भावनाएं पांडव .
विवेक कृष्ण , और महाभारत जिंदगी की ...
मोहित मुग्ध हुए शब्दों के इस जाल में !
अप्रतिम रचना ..

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 2/29/2012 8:07 AM  

वक्त का द्रोणाचार्य, अभिमन्यु मन, इच्छाओं के कौरव, विवेक का कृष्ण...
वाह! दी अद्भुत प्रतीकों में सार्थक और सशक्त रचना दी है आपने...
सादर.

Monika Jain 2/29/2012 10:29 AM  

sach kaha zindgi ek mahabharat hi to hai..bahut achchi rachna

Suman 2/29/2012 10:37 AM  

कृष्ण (विवेक) जैसा सारथी हो तो कोई मुश्किल बात नहीं !
बहुत सुंदर बिम्ब प्रयोग किया बढ़िया रचना !

अशोक सलूजा 2/29/2012 1:10 PM  

जीवन के अर्थ समझाती आप कि कविता .......
आभार!

दिगम्बर नासवा 2/29/2012 1:49 PM  

महाभारत के महाकाव्य में जीवन का सार समेत लिया है ... लाजवाब ..

Anita 2/29/2012 2:16 PM  

बहुत सुंदर उपमाएं चुनी हैं आपने..विवेक बिना सब सूना...बधाई इस कविता के लिये!

पी.सी.गोदियाल "परचेत" 2/29/2012 4:11 PM  

और
अभिमन्यु बना मन
आहत हो
तोड़ता है दम
न जाने
कितनी बार ।
ख़ूबसूरत ढंग से पूरी महाभारत ही वास्तविक जीवन उतार दी !

Arvind Mishra 2/29/2012 6:25 PM  

मिथकीय पात्रों को आपने बड़े ही सुन्दर भाव दिए हैं जीवन की महाभारत में

विभूति" 2/29/2012 6:40 PM  

बहुत अदभुत तुलना की हम आपने जिन्दगी की महाभारत की.....

मेरा मन पंछी सा 2/29/2012 7:22 PM  

बहुत ही बेहतरीन
बहुत ही सार्थक रचना है...:-)

Vaanbhatt 2/29/2012 10:29 PM  

बहुत ही गहन चिंतन...शब्दों की जादूगरी भी...हाँ...एक महाभारत ही तो चल रही है...हमारे भीतर...

ANULATA RAJ NAIR 2/29/2012 10:40 PM  

बेहतरीन रचना..
सार्थक अभिव्यक्ति है संगीता जी..
आपको नमन.

चला बिहारी ब्लॉगर बनने 2/29/2012 11:00 PM  

दी, यही कारण है कि महाभारत हर युग में हमारे जीवन के हर पहलू से जुडी है.. हर पल हम या तो अभिमन्यु होते हैं, या अर्जुन,या कृष्ण और कभी कभी तो दुर्योधन और भीष्म भी!!
बहुत अच्छी कविता!!
/
पुनश्च: "अट्टहास" शब्द में टंकण की त्रुटि दिख रही है!! कृपया सुधार लेंगी!

संगीता स्वरुप ( गीत ) 2/29/2012 11:53 PM  

सभी पाठकों का आभार ॥


सलिल जी ,

त्रुटि सुधार ली गयी है .... शुक्रिया ध्यान दिलाने का ॥

prerna argal 3/01/2012 11:16 AM  

bahut sunder dhang se tulanaa karati hui shaandaar rachanaa.badhaai aapko.

आप का बहुत बहुत धन्यवाद की आप मेरे ब्लॉग पर पधारे और इतने अच्छे सन्देश दिए /आपका आशीर्वाद मेरी रचनाओं को हमेशा इसी तरह मिलता रहे यही कामना है /मेरी नई पोस्ट आपकी टिप्पड़ी के इन्तजार में हैं/ जरुर पधारिये /लिंक है /
http://prernaargal.blogspot.in/2012/02/happy-holi.html
मैंने एक और कोशिश की है /अगर आपको पसंद आये तो उत्साह के लिए अपने सन्देश जरुर दीजिये /लिंक है
http://www.prernaargal.blogspot.in/2012/02/aaj-jaane-ki-zid-na-karo-sung-by-prerna.html

Shaifali 3/01/2012 12:02 PM  

इच्छाओं के कौरव

भावनाओं के पांडव

विवेक का कृष्ण

Bahut hi khoobsurat aur sateek, Sangitaji.

रेखा श्रीवास्तव 3/01/2012 2:43 PM  

jindgi ko mahabharat se jod kar bahut achchhi bat kah gayin aur vaakai jeevan kee sachchhai yahi hai.

Anju 3/01/2012 5:29 PM  

behtreen .......zindgi ki mahabharat........aur..
विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को......umda ...!

कविता रावत 3/01/2012 5:53 PM  

वर्तमान परिपेक्ष को इंगित करती बहुत ही बढ़िया रचना..

Anju (Anu) Chaudhary 3/01/2012 9:43 PM  

बेहद खूबसूरत प्रस्तुति

Jeevan Pushp 3/02/2012 1:14 PM  

सुन्दर प्रस्तुति !
आभार !

Naveen Mani Tripathi 3/02/2012 1:28 PM  

sangeeta ji apne yathrath hi likhati hain ....sadar badhai ....rachana behad prabhavshali lagi ....kafi dinon se ap mere blog tk nahi pahuch sakin hain ...amantran sweekaren .

Dr (Miss) Sharad Singh 3/02/2012 4:47 PM  

वक़्त का द्रोणाचार्य
पल पल
सजाता है
नित नए चक्रव्यूह
और
अभिमन्यु बना मन
आहत हो
तोड़ता है दम
न जाने
कितनी बार ।


यथार्थपरक पंक्तियां....मर्मस्पर्शी ...
हार्दिक बधाई..

sushila 3/04/2012 1:09 AM  

बेहद स्टीक रूपक बाँधे हैं आपने संगीता जी। हाइकू भी ज़बर्दस्त !
विलंब के लिए क्षमा।

महेन्‍द्र वर्मा 3/04/2012 12:06 PM  

इच्छाओं का कौरव,
भावनाओं के पांडव,
विवेक का कृष्ण....

सटीक प्रतीकों के प्रयोग से कविता बहुत सुंदर बन गई है।

जयकृष्ण राय तुषार 3/04/2012 4:24 PM  

परमादरणीय संगीता जी होली की शुभकामनाएँ

Onkar 3/04/2012 4:49 PM  

bahut gahan bhav

Rakesh Kumar 3/05/2012 11:13 AM  

वाह! जी वाह!

शानदार गीत.
बेहतरीन अनुभूतियाँ.

वीर अर्जुन हों,और कृष्ण साथ हो,
तो जीत तो निश्चित ही है.

आभार.

होली की बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएँ.

virendra sharma 3/05/2012 11:40 AM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को ।
यही कश- म- कश,अंतर -द्वंद्व ही तो जीवन है हर सांस की धौकनी है भले उसकी हर सांस बेगानी हो .
होली मुबारक .गुलाल ,मुबारक,अबीर और गुझिया खाओ रंग लगाओ ..

कुमार राधारमण 3/05/2012 12:18 PM  

कौरवों को बस एक कृष्ण की कमी रहती है और हो जाता है महाभारत!

निर्झर'नीर 3/05/2012 2:04 PM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को । .........LOL kahin na kahin har kisi ko chahe unchahe kisi na kisi mahabharat ka hissa banna hi padta hai .or tab samajh aata hai ki majbooriyan insan ko kaise bandh deti hain cheerharan ke vaqt .......bhishm or dron ke jaise

Satish Saxena 3/05/2012 11:20 PM  

नित नया महाभारत ...
रंगोत्सव की शुभकामनायें स्वीकार करें !

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 3/06/2012 12:31 AM  

बहुत बढ़िया भाव अभिव्यक्ति,यह यकीनन एक बेहतरीन रचना है ,...
संगीता जी,... होली की बहुत२ बधाई ,...

NEW POST...फिर से आई होली...
NEW POST फुहार...डिस्को रंग...

उपेन्द्र नाथ 3/06/2012 11:24 AM  

जिंदगी का ये महाभारत कभी ख़त्म होते नहीं लगता. यह अनवरत आज भी जारी है. यक़ीनन सच कहा आपने... सुन्दर प्रस्तुति.

Smart Indian 3/06/2012 1:35 PM  

सुन्दर उपमायें! शुभ होली!

Kailash Sharma 3/06/2012 7:07 PM  

विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को ।

....कुछ शब्दों में गहन जीवन दर्शन..बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति...होली की हार्दिक शुभकामनायें!

Naveen Mani Tripathi 3/06/2012 9:03 PM  

bilkul jeevan ke yatharth ko chhoti hui rachana .....badhai ke sath sath holi pr subhkamnayen.

Ramakant Singh 3/07/2012 2:40 AM  

main sochta tha ki mahabharat ke patra mere hi pasand ke hain kintu nahin aapaka khubsurat chitran WAH LAJAWAB.

दीपिका रानी 3/07/2012 10:14 AM  

ज़िन्दगी महाभारत से कम कहां है.. रोज़ एक नई लड़ाई लड़ते हैं हम.. और रास्ता दिखाने के लिए कृष्ण भी नहीं होते

धीरेन्द्र सिंह भदौरिया 3/07/2012 12:40 PM  

जिन्दगी और महाभारत बेहतरीन तुलना,..
बहुत सुंदर प्रस्तुति,
होली की बहुत२ बधाई शुभकामनाए...संगीता जी

RECENT POST...काव्यान्जलि ...रंग रंगीली होली आई,

वृजेश सिंह 3/07/2012 2:52 PM  

विचारों बहुत सुंदर संयोजन। पाण्डव की दुविधा को आपने बहुत अच्छे तरीके से अभिव्यक्ति दी है। आपको और आपके पूरे परिवार को होली की ढेर सारी शुभकामनाएं।

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार 3/07/2012 4:58 PM  

.


सुंदर भाव-बिंबों के साथ श्रेष्ठ रचना के लिए आभार !

Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार 3/07/2012 5:00 PM  

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♥ होली ऐसी खेलिए, प्रेम पाए विस्तार ! ♥
♥ मरुथल मन में बह उठे… मृदु शीतल जल-धार !! ♥



आपको सपरिवार
होली की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं !
- राजेन्द्र स्वर्णकार
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ज्ञानचंद मर्मज्ञ 3/07/2012 5:16 PM  

वाह ! कविता ने निशब्द कर दिया !
होली की ढेरो शुभकामनाएँ !

दिगम्बर नासवा 3/07/2012 5:21 PM  

आपको और समस्त परिवार को होली की मंगल कामनाएं ..

Patali-The-Village 3/07/2012 8:55 PM  

बहुत अच्छी प्रस्तुति| होली की आपको हार्दिक शुभकामनाएँ|

Dr (Miss) Sharad Singh 3/07/2012 11:40 PM  

रंगपर्व पर आपको ढेरों शुभकामनाएं...

Suman 3/08/2012 7:38 AM  

होली की हार्दिक शुभकामनायें !

Kunwar Kusumesh 3/08/2012 8:08 AM  

सटीक अभिव्यक्ति.
होली की हार्दिक बधाई.

ऋता शेखर 'मधु' 3/08/2012 1:23 PM  

होली की हार्दिक शुभकामनाएँ!

आनंद 3/09/2012 1:52 PM  

इच्छाओं के कौरव
करते है अट्टहास
उसकी नाकामियों पर
भावनाओं के पांडव
झेलते हैं जैसे
सारी लाचारी
और
विवेक का कृष्ण
संचालित करता है
ज़िंदगी की
हर महाभारत को । ...
...
दीदी निशब्द करने वाली रचना कितना सटीक चिंतन है आपका वाह !

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 3/16/2012 9:43 AM  

परंतु का शकुनी
हर काल में
खेलता रहेगा
तेरा-मेरा के पासे
शर शैया पर पड़ा
जीवन का भीष्म
इच्छा मृत्यु से पूर्व
अपेक्षा के अर्जुन से
मांगा करेगा
सुख की गंगा का
अंजुरी भर नीर.

सुंदर रचना.

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