मुस्कुराती तस्वीर
>> Friday, February 3, 2012
अनुराग अनंत के ब्लॉग पर उनकी रचना पढ़ कर जो मन में भाव उठे ..उनको आपके साथ बाँट रही हूँ ...
बापू ,
बहुत पीड़ा होती है
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर
चंद हरे पत्तों पर
देख कर
जिसको
पाने की चाह में
एक मजदूर
करता है दिहाडी
और जब शाम को
कुछ मिलती है
हरियाली
तो रोटी के
चंद टुकड़ों में ही
भस्म हो जाती है
न जाने कितने
छोटू और कल्लू
तुमको पाने की
लालसा में
बीनते हैं कचरा
या फिर
धोते हैं झूठन
पर नहीं जुटा पाते
माँ की दवा के पैसे
और उनका
नशेड़ी बाप
छीन ले जाता है
तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर
और चढा लेता है
ठर्रा एक पाव .
बिना तुम्हारी तस्वीरों को पाए
जिंदगी कितनी कठिन है गुजारनी
इसी लिए न जाने कितनी बच्चियाँ
झुलसा देती हैं अपनी जवानी .
देखती होगी
जब तुम्हारी आत्मा
अपनी ही मुस्कुराती तस्वीर
जिसके न होने से पास
किसान कर रहे हैं
आत्महत्या
छोटू पाल रहा है
अपनी ही लाश
न जाने कितनी बच्चियां
करती हैं
देह व्यापार
और न जाने
कितने कल्लू
सड़ रहे हैं जेल में
बिना कोई अपराध किये ..
तो
करती होगी चीत्कार
जिसकी आवाज़
नहीं जाती किसी के
कान में
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
बडबडाते हुए .
90 comments:
सुन्दर सृजन | बधाई ||
उनका नशेड़ी बाप छीन ले जाता है तुम्हारी मुस्कुराती तस्वीर और चढा लेता है ठर्रा एक पाव।
भावुकता भरी रचना है संगीता जी.. लगता है अनुराग अनंत जी को भी पढ़ना पड़ेगा।
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
अनुपम भाव संयोजन ।
बिना तुम्हारी तस्वीरों को पाए
जिंदगी कितनी कठिन है गुजारनी
इसी लिए न जाने कितनी बच्चियाँ
झुलसा देती हैं अपनी जवानी .
एक सच को बयान किया है आंटी आपने।
बेहतरीन कविता।
सादर
सत्य को बयान करती है आपकी प्रस्तुति…………बेहद उम्दा।
yathaarth,vichaarottejit kartee rachna
निर्मम यथार्थ को निर्वस्त्र करती बहुत ही सशक्त रचना ! सच है अहिंसा के पुजारी बापू की नोटों पर छपी यह मुस्कुराती हुई तस्वीर आज हिंसा, द्वेष और अपराधों का सबसे बड़ा कारण बन गयी है ! सब नोट हथियाना चाहते हैं बापू की विचारधारा को नहीं ! चेतना को झकझोरती बहुत ही उम्दा प्रस्तुति ! बधाई स्वीकार करें !
बापू तुम्हारी तस्वीर ने अहिंसक विरोध करने शुरू कर दिए हैं
एक एक करके कई स्वर बड़बड़ाहट में तब्दील हो गए हैं - संगीता जी , आपकी सोच , आपकी कलम अजेय है
बहुत ही मर्मस्पशी रचना दीदी ....लाजबाब !
Aapne waqayee kamaal kar dikhaya hai! Kya likha hai!
बहुत प्रशंसनीय.......
आज अहिंसा के पुजारी की ,
मुस्कुराती तस्वीर बन जाती है ,
हत्याओं का कारण ,
"और"
हम निरुपाय से हुए ,
रह जाते हैं ,
बडबडाते हुए.... !
"और"
डबडबाये हुए भी.... !!
सच्चाई की नंगी तस्वीर.... !!!!
क्या करें ..अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी को नोटों पर छाप कर सरकार ने कई अनसुलझे प्रश्न तो ज़रूर छोडे हैं
आपकी कविता करुण दशा दर्शा रही है ..
kalamdaan.blogspot.in
वाह..
क्या अनोखे दृष्टिकोण से आपने व्याख्या की बापू की मुस्कान की...
बेहद सटीक रचना संगीता जी.
सादर.
bahut hi sundar rachna,kafi kuch sochne ko mazbur karti hai
बहुत सुंदर आज के सच को व्यां करती रचना,
लाजबाब प्रस्तुती .
यथार्थ कहती रचना.....
सभी लाइनें बहुत सुन्दर है, बधाई हो आपको
बिना तुम्हारी तस्वीरों को पाए
जिंदगी कितनी कठिन है गुजारनी
हकीक़त ..मर्म पर आघात करती..
बापू की आत्मा जरूर तड़पती होगी...बहुत सुंदर रचना|
बेहतरीन कविता,बधाई
कहाँ कहाँ तक नहीं जाती सोच आपकी.और फिर सटीक शब्द.एक बेहतरीन कविता.जबर्दस्त्त टाइप की.
दीदी,
बापू की छवि से सुसज्जित मुद्रा का इतना सच्चा शब्दचित्र देखकर बस दिल भर आया!! बहुत खूबसूरत अभिव्यक्ति!!
सत्य को बयान करती है आपकी प्रस्तुति|
लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
इस रचना के रचनाकार के रूप में जो संगीता जी का स्वरूप नज़र आया है उसे पल्लवित-पुष्पित करते रहिएगा।
अशक्त, असहाय लोगों पर लिखी यह कविता काफी मर्मस्पर्शी बन पड़ी है । ऐसी निरीह, विवश, और अवश अवस्था में भी उनके संघर्षरत छवि को आपने सामने रखा है । यह प्रस्तुत करने का अलग और नया अंदाज है।
मुझे बहुत पसंद आया।
बापू की तस्वीर को आड़ बना लिया गया है और उनके सिद्धान्तों को मात्र आडंबर -ऊपर से अहिंसा का राग अलापते सब चौपट करे डाल रहे हैं लोग !
बापू,,,, तुम भी धोखा देने लगे... इस दुखद घडी में भी मुस्कुराना!!!!!!११
हर ऐसे काम के गवाह हैं गांधी।
संगीता जी ! आप की संवेदनापूर्ण लेखनी को नमन...
वाह वाह कमाल का सच लिख दिया आपने संगीता जी सच में बहुत ही प्रभावशाली एवं विचारणीय रचना...आभार
सबको गांधी के नोटों की चाह है, आदर्श दम तोड़ते हैं।
आपकी किसी नयी -पुरानी पोस्ट की हल चल शनिवार .. 04-02 -20 12 को यहाँ भी है
...नयी पुरानी हलचलपर ..... .
कृपया पधारें ...आभार .
सुन्दर सशक्त रचना!
.
सच्ची और सार्थक रचना !
बहुत भावप्रवण और मर्मस्पर्शी !
आमजन की व्यथा अनुभूति को अभिव्यक्ति देने से लेखनी का महत्व द्विगुणित हुआ है … आभार !
…और बधाई !!
बढिय़ा रचना। आज से करीब चार एक साल पहले अपने दोस्तों के साथ बैठा था। गांधी जयंती का ही दिन था। तब मेरे दिन में खयाल आया था। तपाक से अपने दोस्तों से कहा कि - क्या यार इस देश के लोगों ने अहिंसा के सबसे बड़े पुजारी को हिंसा के सबसे बड़े कारण पर ही छाप मारा। गलत किया उन्हें नोटों पर छापकर।
झकझोर दिया आपकी इस कविता ने! मैं निशब्द हूँ!
कहीं आदर्श टूटते हैं कहीं भूखे पेट जान जाती है , मुस्कुराते नोटों के लिए ......
हर शब्द सच्चाई से ओत-प्रोत...मार्मिक रचना...
apne sochne ke liye wiwash kar diya...uttam rachana
न जाने कितने
छोटू और कल्लू
तुमको पाने की
लालसा में
बीनते हैं कचरा
या फिर
धोते हैं झूठन
पर नहीं जुटा पाते
माँ की दवा के पैसे
सच्चाई को बयाँ करते शब्द बाण !
सुंदर ,सशक्त एवं बेहतरीन रचना
बहुत ही गहन,मार्मिक और हृदयस्पर्शी.
अनुपम प्रस्तुति के लिए आभार,संगीता जी.
देखती होगी
जब तुम्हारी आत्मा
अपनी ही मुस्कुराती तस्वीर
जिसके न होने से पास
किसान कर रहे हैं
आत्महत्या
छोटू पाल रहा है
अपनी ही लाश
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए
बहुत ही ऊंचे पाए की रचना और आम ज़िन्दगी का खाका खींचती रचना दुष्यंत की याद दिला गई
न हो कमीज़ तो पांवों से पेट ढक लेंगे ,
ये लोग कितने मुनासिब हैं इस सफ़र के लिए.
तंत्र को ऐसी प्रजा मुबारक .
संगीता जी, पता नहीं यह कैसा संयोग है, इसी पन्द्रह अगस्त के दिन बापू की तस्वीर नोट पर देखकर मुझे भी कुछ अच्छा नहीं लगा...बापू को हाथ में लेकर तोड़ना मरोडना जैसा लगा, आज आपकी कविता पढ़कर लगा जैसे उसके पीछे यही कारण रहे होगें.
बहुत अच्छी प्रस्तुति
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
बडबडाते हुए .
sahi kaha hai ....
संगीता स्वरुप (गीत) जी
सादर ब्लॉगस्ते!
आपकी यह रचना अच्छी लगी. आप इसी प्रकार और रचनाएं लिखें तो आनंद आएगा.
Bapoo ko kahan pata tha ki us ki tasveer chaapne wale itna ganda majak karenge unke Saath ...
waah..kitne sadharan shabdon men asadharan baat kahi hai aapne..anupam rachna..
बेहतरीन कविता।
तेरी तस्वीर को सीने से लगा रखा है
सारी दुनियाँ से अलग गाँव बना रखा है.
एक नई ही सोच ने सोचने को मजबूर कर दिया.
वाह !!!!!!!
गहरी सच्चाई है.... सुंदर प्रस्तुति.
Sangeeta ji .....sarv pratham to nayee aur prabhavshali rachana ke liye apko badhai deta hoon .....bapu ki tashvir ke sath samaj ka aina dikha diya apne.....aj bapu ki atma sachmuch unhen dhikkarti hogi .....sadar abhar Sangeeta ji.
बात तो सही कही है कविता के ज़रिये आपने.
बिना तुम्हारी तस्वीरों को पाए
जिंदगी कितनी कठिन है गुजारनी
इसी लिए न जाने कितनी बच्चियाँ
झुलसा देती हैं अपनी जवानी .
...कटु सत्य...बहुत सटीक और मर्मस्पर्शी प्रस्तुति...आभार
कितना यथार्थ लेकिन कितना मार्मिक !!
युग की तस्वीर खींचती सशक्त कविता।
वाह बेहद खूबसूरती से हर शब्द को आज की कड़वी सच्चाई में ढाल दिया हैं आपने ....
I m a fan of ur writing.....Great fan..jst wanna say this..
गाँधी को ढाल बना कर इस देश में सारे गलत काम हो रहे हैं...यदि गाँधी की मुस्कराती फोटो का सदुपयोग हो जाए...तो सारे दरिद्दर दूर हो जाएँ...
संगीता जी,
बेहतरीन कविता..........सत्य को बयान करती
बधाई !
संगीता जी... निःशब्द कर दिया आपकी इस कविता में... इतना कटु सत्य जिसे जानते हम सब हैं... लेकिन भूले रहते है, अपनी सम्पूर्ण नग्नता के साथ हमें तमाचा सा मार रहा है... इतनी सशक्त लेखनी को प्रणाम किये बिना नहीं रहा जा सकता....आपसे परिचय होना सचमुच मेरा सौभाग्य है.
सादर
मंजु
निशब्द
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
बडबडाते हुए
मेरे पास विशेषण नामक कोई शब्द नही हैं । मेरे पोस्ट पर आपका स्वागत है ।. धन्यवाद ।
sach ka bayan karti achhi rachna
behad bhawuk andaz......sashakt rachna.....
bahut yatharthpurna kavita
मार्मिक रचना ....
किसी को बेचने से नहीं चूके हम!
आपकी किसी पोस्ट की चर्चा है नयी पुरानी हलचल पर कल शनिवार ११-२-२०१२ को। कृपया पधारें और अपने अनमोल विचार ज़रूर दें।
लाजबाब प्रस्तुतीकरण..
sab dekhte hain gandhi ji..
bahut sateek rachna..
एक-एक बात सही कही आपने कविता के माध्यम से आपने संगीता जी। एक बात बताऊ मैने सपने में बहुत सारे ब्लागर के साथ आपको देखा
है बडा मजा आया ।
सार्थक प्रस्तुति !..
नोट पर बापू के चित्र कवियों को ऐसे ही रोमांचित करते हैं।
जीवन वास्तव से साक्षात् कराती रचना. बहुत सुंदर.
बहुत सुंदर...
aj bapu ki tasveer ke mayne badal gaye hain.badlte mayne ko yad dilati apki rachana bahut hi achhi lagi. badhai.
सार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रिक हैं । धन्यवाद ।
सार्थक प्रस्तुति । मेरे पोस्ट पर आप आमंत्रिक हैं । धन्यवाद ।
baapu aur hariyali
ke vichitra sambandh ko
khoobsurat shabdaawali di hai
adbhut aur anupam kaavya !
एकदम नई सोच... सशक्त रचना दी...
सादर बधाई.
SPEECHLESS THOUGHT.
DEEP DEEP AND VERY DEEP JUST BESIDE
MY HEART.EXPRESSION WITH EMOTION.
न जाने कितने
छोटू और कल्लू
तुमको पाने की
लालसा में
बीनते हैं कचरा
या फिर
धोते हैं झूठन
पर नहीं जुटा पाते
माँ की दवा के पैसे ...
न जाने कितने कल्लू और छोटू इन गाँधी की छाप वाले नोटों के लिए खट रहे हैं.... बिना ये जाने कि वही हैं कतार में खड़ा वो आखिरी आदमी, जिसकी बात गाँधी करते थे.
आपकी कविता ने एक नया प्रश्नचिंह खड़ा कर दिया है मेरे मन में. गाँधी जैसे लगभग वीतरागी को नोटों के ऊपर छापना, क्या सही है?
आज अहिंसा के पुजारी की
मुस्कुराती तस्वीर
बन जाती है
हत्याओं का कारण
और हम
निरुपाय से हुए
रह जाते हैं
बडबडाते हुए .
kamal ki soch man bhig sa gaya
badhai
rachana
यथार्थ को प्रस्तुत करती बेहद मर्मस्पर्शी रचना.....
कटु यथार्थ के साथ मन को झकझोरती रचना ।
बहुत मर्मस्पर्शी रचना 👌
महिमा मंडन का ऐसा भी विभत्स रूप हो सकता है नीति निर्धारकों को सोचना चाहिए था। ये सम्मान है या अपमान.... बापू भी सोच में पड़े होंगे।
बहुत ही सुन्दर यथार्थपूर्ण रचना
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