मधुसूदन
>> Friday, January 15, 2016
ऐ मेरे ,
क्या सम्बोधन दूँ तुमको
मैं तुमको सर्वस्व मानती हूँ
इसीलिए तुमको मधुसूदन
पुकारती हूँ , तो
ऐ मेरे मधुसूदन !
नहीं चाहती कि ,
मैं बनू कोई राधा ,
या फिर मीरा ,
न ही रुकमणि
और न ही सत्यभामा ।
मैं तो चाहती हूँ
बनू बांसुरी तेरी
जो रहती थी
तेरे अधरों पर ,
एक हल्की सी
फूँक से ही
सारी सृष्टि
खिलखिला जाती थी
मंत्रमुग्ध सी
तेरे कदमों में
झुक जाती थी ।
मेरी भी ख़्वाहिश है
कि तुम मुझे अपनी
वंशी बनाओ
और अधरों पर रख
कोई ऐसा राग सुनाओं
कि , सारी कायनात
तुझमें समा जाए
और उसमें
एक ज़र्रा मेरा भी हो ,
ऐ मेरे मधुसूदन
मैं तुम्हें
कृष्ण बनाना चाहती हूँ ।