मोह से निर्मोह की ओर
>> Friday, July 21, 2017
मोह से ही तो
उपजता है निर्मोह
मोह की अधिकता
लाती है जीवन में क्लिष्टता
और सोच हो जाती है कुंद
मोह के दरवाज़े होने लगते हैं बंद ।
हम ढूँढने लगते हैं ऐसी पगडण्डी
जो हमें निर्मोह तक ले जाती है
धीरे धीरे जीवन में
विरक्तता आती चली जाती है
मोह की तकलीफ से गुज़रता
इंसान निर्मोही हो जाता है
या यूँ कहूँ कि इंसान
मोह के बंधन तोड़ने को
मजबूर हो जाता है ।
संवेदनाएं रहती हैं अंतस में
पर ज़ुबाँ मौन होती है
प्रश्न होते हैं चेहरे पर
और आँखें नम होती हैं
बीतते वक़्त के साथ
खुश्क हो जाती हैं आँखें
और चेहरा भावशून्य हो जाता है
ऐसा इंसान लोगों की नज़र में
निर्मोही बन जाता है ।