डॉ० उषा किरण का उपन्यास " दर्द का चंदन " जब मेरे हाथ में आया तो इसकी साज - सज्जा देखते ही बनती थी । खूबसूरत आवरण जिसे उषा किरण जी द्वारा ही चित्रित किया गया है, मन को मोह लेता है । पृष्ठों की गुणवत्ता उत्कृष्ट है और छपाई भी सुंदर है । वर्तनी भी तकरीबन शुद्ध है ।
यह उपन्यास अपने अनुज की स्मृति में उनको समर्पित किया गया है । डॉ०उषा किरण ने अपने वक्तव्य में इस उपन्यास के लिए लिखा है कि -
ये हौसलों की कथा है
निराशा पर ,आशा की
हताशा पर आस्था की
पराजय पर विजय की कथा है ।
दर्द का चंदन - एक ऐसा कथानक जो एक कैंसर के मरीज़ के जीवन की हकीकत को बहुत नजदीक से देखते हुए बारीकी से बुना गया है ।
भाई का कैंसर से जूझना चलचित्र की तरह दिखाई देता है । उस समय की मानसिक यंत्रणा झकझोर देती है ।हर समय होने वाली मनः स्थिति को शब्द चित्र में उकेर दिया है ।
इस उपन्यास की नायिका ईश्वरीय शक्ति में बहुत आस्था रखती है और दैवीय शक्तियों को भी मानतीं है । स्वप्न में बार बार पिता को देखना और इसको अपनी खराब तबियत से रिलेट करना जैसे पिता से गहराई से जुड़े रहने की भावना है । यूँ तो आज लोग काफी जागरूक हैं कैंसर के प्रति लेकिन जिस तरह से नायिका ने अपनी बीमारी के प्रति सजगता दिखाई वो बिरला ही कोई कर पाता है अन्यथा डॉक्टर के कह देने पर कि सब रिपोर्ट सही है ,निश्चिंत ही हो जाते हैं । यहाँ पर लेखिका यह संदेश दे रही हैं कि जब तक आप संतुष्ट न हों तब तक निश्चिंत न हों । इलाज से पहले ईश्वर के साथ संवाद नायिका के मन की दृढ़ता को दर्शाता है ।
लेखिका ने इस ओर भी ध्यान आकर्षित किया है कि कोई भी चाहे कितना ही धैर्यवान और दृढ़ इच्छा शक्ति वाला क्यों न हो उसे परिवार के हर सदस्य का साथ और मजबूत बना देता है । इस उपन्यास का कथानक इतनी सकारात्मकता लिए हुए है कि इलाज के दौरान हुई तकलीफें कम होती महसूस होती रहीं। । इस के माध्यम से लेखिका ने , कैंसर पेशेंट के साथ लोग किस तरह का व्यवहार करते हैं और कैसा करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए सभी पर प्रकाश डाला है । किस तरह इस की नायिका विजेता बन कर उभरी है ,प्रेरणा लेने लायक है ।
उपन्यास का हर भाग एक छोटी सी कविता से प्रारंभ कर लेखिका ने इसको और भी भावपूर्ण बना दिया है । मन के ही किसी कोने में आपके बुद्ध हैं तो कहीं कबीर और आपने उनको इतना आत्मसात कर लिया है कि आप दूसरों की बड़ी से बड़ी गलतियों को क्षमा कर पाती हैं । कभी कभी किसी की बद्दुआएँ भी दुआएँ बन जाती हैं । कैसे कोई किसी की मृत्यु की कामना कर लेता है , जाना तो सबको है फिर ऐसी भावना क्यों ? रेल की यात्रा में सहयात्रियों का सहयोग और स्नेह अभिभूत कर गया । याद आ गईं ऐसी ही 40 -50 साल पहले की यात्राएँ जिनमें सामान में एक खाने की टोकरी ज़रूर हुआ करती थी और साथ में सुराही भी ।
इस की नायिका ने बीमारी से ज़द्दोज़हद करते हुए आखिर भरपूर खुशी की लम्हें अपने नाम किये और अपनी जिम्मेदारियों को भी बखूबी निभाया ।असल जिंदगी में भी हौसला रखने वालों की कहानी सुखद होती है । लेखिका के पास शब्दों की जादूगरी का हुनर है ।
अंत में बस इतना ही कहूँगी कि किसी के लिए भी आपबीती लिखना इतना सरल नहीं है । उस दर्द से दोबारा गुज़रने की क्रिया है । लेकिन डॉ० उषा किरण का मानना है कि दर्द से गुज़र जाना ही बी पॉज़िटिव होना है ।
आखिरकार दर्द अब चंदन बन महक ही गया ।
आशा है इस उपन्यास की सुगंध दूर तक फैलेगी ।
यह उपन्यास हिंदी बुक सेंटर द्वारा प्रकाशित किया गया है । सुंदर छपाई और पृष्ठों की गुणवत्ता के लिए प्रकाशक बधाई के पात्र हैं ।
शुभकामनाओं के साथ ..
संगीता स्वरूप ।
उपन्यास - दर्द का चन्दन
लेखिका - डॉ ० उषा किरण
ISBN - 978-93- 95310 - 00 - 0
मूल्य - 225 /
प्रकाशक - हिंदी बुक सेंटर , 4/ 5 - बी , आसफ अली रोड
नयी दिल्ली - 110002
पुस्तक मँगाने का लिंक --
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