विगत
>> Thursday, June 17, 2021
कहते हैं लोग कि
बीती ताहि बिसार दे
लेकिन --
क्या हो सकता है ऐसा ?
विगत से तो आगत है।
सोच में तो
समा जाता है सब कुछ
रील सी ही
चलती रहती है
मन मस्तिष्क में ,
सब कुछ एक दूसरे से
जुड़ा हुआ सा ,
कोई सिरा छूटता ही नहीं
पकड़ लो कोई भी एक
दूसरे से जुड़ा मिलेगा
भूत और भविष्य
नहीं हो पाते अलग ,
आगे जाने के लिए भी
ज़रूरी है एक बार
मुड़ कर पीछे देखना
हर इन्सान का विगत
उसके आगत की
पगडंडी है
विगत ही तय करता है
राह में फूल मिलेंगे
या फिर शूल
और तुम कहते हो कि
भूल जाओ बीते वक़्त को
सच तो ये है कि
नहीं भुला पाता कोई भी
अपने बीते कल को ।
नहीं छूटती
वो पगडंडी ,
तर्क - कुतर्क कर
होती हैं
भावनाएँ आहत
और हो जाते हैं
रिश्ते ज़ख्मी ,
फिर भी
कर के बहुत कुछ
नज़रंदाज़
बढ़ाये जाते हैं कदम
आगत के लिए
भले ही दिखते रहें
ज़ख्मों के निशाँ ताउम्र
खुद के आईने में ।