विगत
>> Thursday, June 17, 2021
कहते हैं लोग कि
बीती ताहि बिसार दे
लेकिन --
क्या हो सकता है ऐसा ?
विगत से तो आगत है।
सोच में तो
समा जाता है सब कुछ
रील सी ही
चलती रहती है
मन मस्तिष्क में ,
सब कुछ एक दूसरे से
जुड़ा हुआ सा ,
कोई सिरा छूटता ही नहीं
पकड़ लो कोई भी एक
दूसरे से जुड़ा मिलेगा
भूत और भविष्य
नहीं हो पाते अलग ,
आगे जाने के लिए भी
ज़रूरी है एक बार
मुड़ कर पीछे देखना
हर इन्सान का विगत
उसके आगत की
पगडंडी है
विगत ही तय करता है
राह में फूल मिलेंगे
या फिर शूल
और तुम कहते हो कि
भूल जाओ बीते वक़्त को
सच तो ये है कि
नहीं भुला पाता कोई भी
अपने बीते कल को ।
नहीं छूटती
वो पगडंडी ,
तर्क - कुतर्क कर
होती हैं
भावनाएँ आहत
और हो जाते हैं
रिश्ते ज़ख्मी ,
फिर भी
कर के बहुत कुछ
नज़रंदाज़
बढ़ाये जाते हैं कदम
आगत के लिए
भले ही दिखते रहें
ज़ख्मों के निशाँ ताउम्र
खुद के आईने में ।
38 comments:
विगत को भूला तो नही जा सकता परंतु उसे दिल पर लेकर बैठने से भी कुछ हासिल नहीं होता। विचारणीय कविता है।
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जून २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
क्षमा चाहेंगे कृपया आमंत्रण १८ जून पढ़ा जाय।
सादर।
कर के बहुत कुछ
नज़रंदाज़
बढ़ाये जाते हैं कदम
आगत के लिए
भले ही दिखते रहें
ज़ख्मों के निशाँ ताउम्र
खुद के आईने में ।..सत्य कहा आपने,जीवन को निरंतरता देने के लिए अवांछनीय स्मृतियों को भूलना ही पड़ता है । सादर ।
कर के बहुत कुछ
नज़रंदाज़
बढ़ाये जाते हैं कदम
आगत के लिए
इसे ही लोगों ने बीती ताहि बिसारिये कहा है... बहुत मुश्किल है इसे साधना, किन्तु आसान होता तो हम आज याद नहीं कर रहे होते!
दीदी, बहुत ही सुन्दर रचना!!
"रील सी ही
चलती रहती है
मन मस्तिष्क में", ..
अपनी 'रियल' वाली
ज़िन्दगी अनवरत और
खोती जाती है मानो
किसी घड़ी की टिक्-टिक् में .. शायद ...
(दो पँक्तियों की बतकही जोड़ने की गुस्ताख़ी के लिए 🙏).
यादें कहां भुलाई जा सकती हैं ! कभी-कभी सोचता हूँ कि यादें ना होतीं तो क्या होता !
जीवन स्मृतियों के संग्रह के अतिरिक्त है ही क्या? क्या रह जाएगा ज़िन्दगी में अगर यादों को इससे निकाल दिया जाए। यह सच है कि गुज़रा हुआ ज़माना आता नहीं दुबारा लेकिन यह भी तो सच है कि याद न जाए बीते दिनों की। भुलाने की कोशिशें फ़िज़ूल हैं। करोगे याद तो हर बात याद आएगी। भरे हुए ज़ख़्मों के भी निशां ताउम्र उनकी याद दिलाते ही रहते हैं। बहुत अच्छी और सच्ची अभिव्यक्ति है यह आपकी।
याद न जाए
बीते दिनों की
सादर नमन
जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (१९-०६-२०२१) को 'नेह'(चर्चा अंक- ४१००) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर
अनिता जी , आभार ।
रील सी ही
चलती रहती है
मन मस्तिष्क में ,
सब कुछ एक दूसरे से
जुड़ा हुआ सा ,
कोई सिरा छूटता ही नहीं
सच कहा संगीता जी बहुत सुंदर लफ्ज़ दिए है आपने अपने अहसास को । कैसे भूला जा सकता हसि विगत को ।
बहुत ही सुंदर सृजन आदरणीय ।
मन छूती बेहतरीन रचना दी।
मेरी समझ से
आगत की खुशियाँ विगत की स्मृतियाँ परिस्थितियों पर आधारित है जिसे मन तय करता है अपनी प्राथमिकता के अनुसार।
कुछ पंक्तियाँ समर्पित है-
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रिश्तों में,ज़ज़्बात में,
उम्मीद भरी आँखों से
अब न एहसास टटोले
दर्द को तवज्ज़ो कितना दें
दामन रो-रो कर भीगो लें
चुभते लम्हों को दफ़न करके
बनावटी चेहरों पे कफ़न धरके
वफ़ा की बाँसुरी से सरगम घोले
उदासियों में चुटकीभर बेपरवाही घोले
आ ज़रा- सा थोड़ा-सा खुश हो लें।
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सप्रेम
सादर।
तर्क - कुतर्क कर
होती हैं
भावनाएँ आहत
और हो जाते हैं
रिश्ते ज़ख्मी ,
फिर भी
कर के बहुत कुछ
नज़रंदाज़
बढ़ाये जाते हैं कदम
बहुत सुंदर और सार्थक सृजन 👌👌
बहुत सटीक विशलेषण प्रिय दीदी | सच तो यही है हम बुरी यादों को भूलना और अच्छी यादों को भीतर संजो कर रखना चाहते हैं , पर ये होना मुमकिन नहीं होता | अच्छी-बुरी यादों को छानकर छांटना संभव नहीं हो पाता क्योंकि निश्चित प क्रम में चलती यादें एक दूसरे से जुडी होती हैं | एक याद को छेड़ो दूसरी स्वतः ही उपस्थित हो जाती है | सो इनसे छुटकारा कहाँ हो पाताहै | ! हाँ , प्रायः समय से ही ऐसे प्रयास कुछ हद तक सफल हो पाते हैं | भावपूर्ण रचना में समाहित चिंतन में हर जीवन का अनुभव है | ये पंक्तियाँ बहुत सुंदर लगी --ज़रूरी है एक बार //मुड़ कर पीछे देखना //हर इन्सान का विगत //उसके आगत की //पगडंडी है /////सार्थक रचना के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं|
हर इन्सान का विगत
उसके आगत की
पगडंडी है
विगत ही तय करता है
राह में फूल मिलेंगे
या फिर शूल
सही कहा आपने विगत से ही आगत है...विगत को भुलाना आसान तो क्या मेरे लिए तो नामुमकिन है...हाँ विगत से सीख और अनुभव लेकर आगत को संवारना बुद्दिमत्ता....फिर भी कुछ गहरे जख्मों पर जमी पतली सी पपड़ी जरा सी छुवन से हट जाती है तो घाव ताजा सा टीस देने लगता है...फिर भी जो है सो है...उसे स्वीकारना और आगे बढ़ना यही हमारे बस में है...बाकी सब तो पहले से ही तय है।
मन मंथन करती बहुत ही चिन्तनपरक एवं लाजवाब भावाभिव्यक्ति।
बहुत बहुत सुन्दर
हर इन्सान का विगत
उसके आगत की
पगडंडी है
विगत ही तय करता है
राह में फूल मिलेंगे
या फिर शूल
विगत को भूलना आसान नहीं बस उससे सीख लेकर आगे बढे तो आगत सुखद होगा।
मन का मंथन करती बहुत ही प्यारी रचना,सादर नमन दी
* शिखा - सही कहा ।
*जिज्ञासा - अवांछनीय स्मृतियाँ भूल ही तो नहीं पाते , लेकिन प्रयास करते हैं ।
* सलिल जी - साधने के प्रयास में ही ज़िन्दगी निकल जाती है ।
* सुबोध सिन्हा जी , आपकी बतकही बढ़िया थी ।।
* गगन जी , आभार
*जितेंद्र जी , सच जीवन यादों का संग्रहालय ही तो है ।शुक्रिया ।
*यशोदा , वाकई - बीते दिन भला कौन भूल पाता है ।
हर्ष जी ,
रचना पसंद करने के लिए हार्दिक आभार । विगत सच ही नहीं विस्मृत किया जा सकता ।
प्रिय श्वेता ,
सही कहा कि विगत की स्मृतियाँ परिस्थिति पर ही निर्भर रहती हैं वरना तो पल पल न जाने कितना कुछ घटित होता रहता है ।
तुम्हारी लिखी पंक्तियाँ प्रेरणा देने का काम कर रही हैं । चल ज़िन्दगी थोड़ा खुश हो लें ।👌👌👌👌👌
* अनुराधा जी ,
हार्दिक आभार
सुधा जी ,
आपने पूरी रचना का सार कह जीवन की असलियत भी कह दी कि जो है सो है । बस शायद इस तरह जीवन थोड़ा सरल हो जाय ।
आभार ।
प्रिय रेणु ,
सच कहा कि अच्छी और बुरी यादों को छांटना सम्भव नहीं , एक याद करो दूसरी स्वतः ही चली आती है ।
मुझे बहुत खुशी होती है जब मेरी लिखी कविता की पंच लाइन पसंद करता है ।
सस्नेह
* आलोक जी ,
आभार आपका ।
* प्रिय कामिनी ,
सही कहा कि बस सीख ले आगे बढ़ना चाहिए ।।
शुक्रिया ।
हर इन्सान का विगत
उसके आगत की
पगडंडी है
विगत ही तय करता है
राह में फूल मिलेंगे
या फिर शूल
बहुत सही कहा आपने.., सीखप्रद सृजन ।
बहुत खूबसूरत सृजन,गम भूलकर हर्ष के लिए आगे बढ़ना चाहिए
बहुत सुंदर रचना।
बहुत सुंदर रचना संगीता जी,जो बीत जाता है कभी भुला नहीं पाते हैं हम , शुभकामनाएँ आदरणीया ।
जब तक यादें रहती हैं तब तक आगत के लिए विगत को भुलाना आसान ... दोनों में जुड़ाव रहता है है और रहना जरूरी है ... जीवन की निरंतरता इसी में है ...
मन तो यही चाहता है कि अतीत की पीड़ा विस्मृत हो जाए, लेकिन ऐसा होता नहीं. जिधर भी जाएँ अतीत की पगडंडी पर चलकर ही जाना होता है, क्योंकि जीवन का हर सिरा एक दूसरे से जुड़ा होता है. सच्ची और अच्छी रचना के लिए बधाई.
आदरणीया मैम, आपके इस असीम स्नेह के लिए आभार के सारे शब्द छोटे हैं।मैं ठीक हूँ और आपको चिंतित करने के लिए आपसे क्षमा मांगती हूँ । वैसे समाचार अच्छा है, आपके आशीष से मुझे एक इंटर्नशिप मिली है (अंग्रेजी शिक्षिका के रूप में ) इन दिनों lockdown में कॉलेज का अड्मिशन रुका हुआ है । ऐसे में कुछ नया करने का सोंच रही थी तो इंटर्नशिप के लिए अप्लाइ किया । बच्चों को अनलाइन इंग्लिश पढ़ाती हूँ और खुद उनसे बहुत कुछ सीखती हूँ। पर अनलाइन क्लास के कारण ब्लॉग को बहुत समय नहीं दे पा रही हूँ । ४ घंटे अनलाइन बैठे- बैठे आँखें थक जाती हैं और मैं भी । थोड़ा काम भी नया है तो उसे ठीक से समझने में समय लग रहा है। पर अब धीरे-धीरे समय निकाल कर ब्लॉग पर वापसी करने की कोशिश कर रही हूँ । आज से शुरू किया । मुझे भी आप सबों की और आपकी विशेष प्रस्तुति और पाँच लिंक की बहुत याद आ रही है । आपकी प्रस्तुति न पढ़ पाना और मेरी प्रतिक्रियाओं पर आपका स्नेहिल आशीष न मिलना खल रहा है । आती हूँ कल । आपको पुनः प्रणाम और हाँ, इस तरह बिन बताए गायब हो जाने के लिए क्षमा चाहती हूँ ।
आदरणीया मैम, अत्यंत सुंदर व भावपूर्ण कविता। जीवन में घटी विगत घटनायें जीवन का महत्वपूर्ण हिस्सा होती हैं और स्मृति के रूप में सदा हमारे साथ रहती हैं और फिर यह भी सत्य है कि वर्तमान ही तो भूत और भविष्य बनता है । हृदय से अत्यंत आभार इस सुंदर और भावपूर्ण रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
अतीत वर्तमान की उहापोह में उलझी चेतना का सराहनीय उल्लेख।
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
सादर
सही कहा आपने भूत पर भविष्य स्थापित होता है भूलना कहने भर से कैसे सब भूलाया जाता है,
हाँ बहुत बार भूलना स्वयं के लिए और रिश्तों के
लिए अच्छा होता है पर भूलना सहज ही नहीं बस भूलने का आडम्बर भर कर लें बस ।
बहुत सटीक सार्थक सृजन।
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