मौसम मन का
>> Thursday, July 1, 2021
प्रकृति तो बदलती है
निश्चित समय पर
अपने मौसम ,
होते हैं निश्चित
दिन - महीने ।
लेकिन इंसान के-
मन का मौसम
कब बदल जाये
पता ही नहीं चलता ।
चेहरा ही बता देता है कि
मौसम कुछ बदला सा है ।
जब चढ़ता है ताप
भावनाओं का तो
चेहरे की लुनाई
झुलस ही तो जाती है
मन के समंदर से
उड़ कर वाष्प
आंखों के आसमाँ में
छा जाती है
और जब हो जाते हैं
बादल गहन तो
सावन आ ही जाता है ।
ऐसे में गर
अपनत्त्व भरा हाथ बढ़ कर
भर लेता है अपनी अँजुरी
तो जैसे
चहुँ ओर पुष्प खिल जाते हैं
और चेहरे पर
बसन्त खिल जाता है ,
अन्यथा तो
लगता है ऐसा कि
ठिठुरती रात में
कोई अनाथ सोया है
फुटपाथ पर ।
ठंड जैसे व्यवहार से बेचैन
करवटें बदलते
खिंच जाती हैं
लकीरें झुंझलाहट की ।
और चेहरा बता देता है कि
मौसम सर्दी का है ।
यूँ चेहरे पर छाया मौसम
आईना होता है मन का
जितना भी चाहो छुपाना
ये सब बयाँ कर देता है ।
और एक बात -
मन का मौसम
ज्यादा देर तक
नहीं रहता एक सा
बदलता रहता है
पल पल , छिन छिन
इसीलिए
चेहरे के भाव भी
नहीं होते सरल कि
पढ़ लिए जाएँ गिन गिन ।
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( सर्वाधिकार सुरक्षित ),
/ मौसम
34 comments:
यूँ तो मौसम कुल चार , पर मन के मौसम अपार
मन के मौसम पर तो खुद का भी बस नहीं चलता…बढ़िया रचना👌👌
मन के मौसम की विस्तृत व्याख्या ...
ब्लॉगिंग दिन है तो उसकी बहुत शुभकामनाएं!
जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २ जुलाई २०२१ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
मन का मौसम बदलता है पल पल ...
ये आपने सच कहा है ... प्राकृति तो परे है दुःख दर्द से अपने नियत समय का पालन करती है पर इस बावरे मन का क्या किया जाए जो हवा से, मन के भाव से, दूरे के भाव से ... बदलता रहता है बस ... भावपूर्ण रचना ...
मन के मौसम पर सुन्दर भाव पूर्ण रचना!!
मन शायद ऐसा ही होता है, बहुत सुंदर
मन के समंदर से
उड़ कर वाष्प
आंखों के आसमाँ में
छा जाती है
और जब हो जाते हैं
बादल गहन तो
सावन आ ही जाता है ।
ऐसे में गर
अपनत्त्व भरा हाथ बढ़ कर
भर लेता है अपनी अँजुरी
तो जैसे
चहुँ ओर पुष्प खिल जाते हैं
मन के मौसम के ऐसे उतार चढ़ाव में अपनत्व का हाथ सचमुच मन को भंवर में डूबने से बचाने वाली कश्ती सा होता है...वरना उद्वेलित मन भंवर में फँसता चला जाता है...।
मन के मौसम पर बहुत ही भावपूर्ण लाजवाब सृजन
वाह!!!
चेहरे के भाव भी
कभी नहीं होते
इतने सरल कि
पढ़ लिए जाएँ
गिन गिन ।
उत्कृष्ट..
सादर नमन..
चेहरे पर मौसम
बहुत खूब
सच कहा आपने।
यूँ चेहरे पर छाया मौसम
आईना होता है मन का
जितना भी चाहो छुपाना
ये सब बयाँ कर देता है ।
बहुत सही कहा आपने..प्रकृति परिवर्तन की तरह मन परिवर्तन भी दिख ही जाता है । सुख-दुख अभिव्यक्त हो जाते हैं चेहरे पर । अति सुन्दर सृजन मैम ।
बहुत सुंदर।
मन के मौसम को तो पढ़कर भी लोग अनपढ़ सा व्यवहार करते हैं !
बहुत सुंदर मन का मौसम
"चेहरे के भाव भी
नहीं होते सरल कि
पढ़ लिए जाएँ गिन गिन ।"
दुनिया का सबसे मुश्किल काम...खुद के भाव भी तो प्रतिपल बदलते ही रहते हैं...अदभुत सृजन दी, सादर नमन आपको
मन के समंदर से
उड़ कर वाष्प
आंखों के आसमाँ में
छा जाती है
बहुत ही सुंदर सृजन l
अर्थपूर्ण ..बहुत बढ़िया
मन का मौसम
ज्यादा देर तक
नहीं रहता एक सा
बदलता रहता है
पल पल , छिन छिन
इसीलिए
चेहरे के भाव भी
नहीं होते सरल कि
पढ़ लिए जाएँ गिन गिन । ...सटीक अभिव्यक्ति, लोग कहते कि वे चेहरे के भाव पढ़ लेते हैं,लेकिन इतना सरल भी नहीं होता किसी को पढ़ना।मैं आपसे सहमत हूँ,आदरणीय दीदी।
बहुत बहुत सुन्दर सराहनीय रचन
आदरणीया मैम, बहुत ही भावपूर्ण और सुंदर रचना। सच है , मानव-मन के मौसम भी अनेक होते हैं और निरंतर बदलते रहते हैं और हर मौसम चहरे पर प्रत्यक्ष होता है । सुख का मौसम वसंत ऋतु की तरह और दुख का मौसम सर्दी की तरह । प्रार्थना बस यही है कि हर मनुष्य को सुख का मौसम देखने को अधिक मिले और दुख के मौसम में किसी अपने का साथ रहे । हृदय से आभार इस सुंदर रचना के लिए व आपको प्रणाम ।
मौसम के अनुकूल सुंदर रचना। बधाई।
वाह! मानव मन और मौसम ,चेहरे के बदलते रूप में हर मौसम का सटीक दर्शन करवा दिया आपने बहुत सुंदर सृजन।
सादर।
"अन्यथा तो
लगता है ऐसा कि
ठिठुरती रात में
कोई अनाथ सोया है
फुटपाथ पर ।" .. अतुल्य बिम्ब .. ये "मन का मौसम" भी ना .. ठीक "मौसम के मन" की तरह अपनी मनमर्जी से कभी झंझावात, तो कभी चक्रवात की सौग़ात हमारे जीवन की झोली में सौंपता रहता है .. बस यूँ ही ...
समस्त प्रबुद्ध पाठक जन ,
हृदयतल से आपका अभिनंदन और आभार ।
मन के मौसम को आप सबने महसूस किया और अपनी अपनी विशेष प्रतिक्रिया दी ।
आप सभी का हमेशा इंतज़ार रहता है ।।
पुनः आभार ।
बहुत ही सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय दी।
बदलते मन के मौसम का क्या बख़ूबी शब्द चित्र उकेरा है।
सादर
सुन्दर रचना
बेहद भावपूर्ण सुंदर रचना mam🙏
दीर्घावधि के पश्चात आपकी कविता पढ़ने को मिली। इस बार तो मौसम मनुष्य के मन की तरह हो गया है।
सुंदर सराहनीय सृजन आदरणीय
मनुष्य के जीवन के सभी मौसमों का मार्मिक चित्रण
मन की गति को सहस्त्र साधन भी नियन्त्रण में नहीं रख सकते हैं।भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए आभार ❤❤🙏
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