हासिल ....
>> Friday, May 14, 2021
मुझको वो हासिल न था
जो तुझको हासिल हुआ
अल्फ़ाज़ यूँ ही गुम गए ,
गम जो फिर काबिज़ हुआ।
अश्कों ने घेरा क्यों हमें
ये भी कोई बात हुई
चाहत भले ही रहें अधूरी ,
हक़ अपना तो लाज़िम हुआ ।
माँग कर गर जन्नत मिले
तो ये दोज़ख़ भी क्या बुरा
तुझको दर्द मैं गर दूँ तो
क्या हममें मरासिम हुआ ।
आज़माइश ज़िन्दगी की ,
रास मुझे यूँ आने लगी
दरिया ए ग़म में डूबना ,
मेरे लिए साहिल हुआ ।
देखती हूँ खुद को मैं, औ
सोचती हूँ मूंद पलकें
क्या तुझे हासिल हुआ ,औ
क्या मुझे हासिल हुआ ।।
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ग़ज़ल सा कुछ