खनकते सिक्के
>> Thursday, November 8, 2012
नारी और पुरुष को
एक ही सिक्के के
दो पहलू माना है
पुरुष को हैड और
स्त्री को टेल जाना है
पुरुष के दंभ ने
कब नारी का मौन
स्वीकारा है
उसके अहं के आगे
नारी का अहं हारा है ।
पुरुष ने
हर रिश्ते को
अपने ही तराजू पर
तोला है ,
जबकि
नारी ने हर रिश्ता
मिश्री सा घोला है ।
पुरुष अपने चारों ओर
एक वृत बना
घूमता रहता है
उसके अंदर ,
नारी धुरी बन
एक बूंद को भी
बना देती है समंदर ।
सच ही
नारी और पुरुष
एक ही सिक्के के
दो पहलू लगते हैं
जो सिक्के की तरह ही
पीठ जोड़े
अपने अपने
आसमां में खनकते हैं ।