अनोखी शब्दावली
>> Friday, September 21, 2012
शब्दों का अकूत भंडार
न जाने कहाँ तिरोहित हो गया
नन्हें से अक्षत के शब्दों पर
मेरा मन तो मोहित हो गया ।
बस को केवल " ब " बोलता
साथ बोलता कूल
कहना चाहता है जैसे
बस से जाएगा स्कूल ।
मार्केट जाने को गर कह दो
पाकेट - पाकेट कह शोर मचाता
झट दौड़ कर कमरे से फिर
अपनी सैंडिल ले आता .
घोड़ा को वो घोआ कहता
भालू को कहता है भाऊ
भिण्डी को कहता है बिन्दी
आलू को कहता वो आऊ ।
बाबा की तो माला जपता
हर पल कहता बाबा - बाबा
खिल खिल कर जब हँसता है
तो दिखता जैसे काशी - काबा ।
जूस को कहता है जूउउ
पानी को कहता है पायी
दादी नहीं कहा जाता है
कहता काक्की आई ।
छुक - छुक को वो तुक- तुक कहता
बॉल को कहता है बो
शब्दों के पहले अक्षर से ही
बस काम चला लेता है वो ।
भूल गयी हूँ कविता लिखना
बस उसकी भाषा सुनती हूँ
एक अक्षर की शब्दावली को
मन ही मन मैं गुनती हूँ ।