नहीं आता ( ग़ज़ल )
>> Thursday, September 9, 2021
गुनगुनाती हूँ दिल में ,लेकिन गाना नहीं आता
तभी तो सुर में तेरे सुर मिलाना नहीं आता ।
अफ़सुर्दा होती हूँ यूँ ही बेबात मैं जब भी
किसी को भी मेरा मन बहलाना नहीं आता ।
बेचैनियाँ इतनी घेरे हैं हर इक लम्हा
दिल को मेरे क्यूँ करार पाना नहीं आता ।
बेरौनक सी अपनी ज़िन्दगी पर मुझे
अब जैसे कभी प्यार लुटाना नहीं आता ।
डूबी रहती हूँ बेतरतीब ख़यालों में रात भर
आँखों में कोई ख़्वाब सुहाना नहीं आता ।
बदनीयत हो गयी सारी दुनिया ही जैसे
किसी को भी एहसास निभाना नहीं आता ।
डूब जाते है लोग साहिर के कलामों में
इमरोज़ सा अमृता को चाहना नहीं आता ।
अंधेरों में ज़िन्दगी के भटकते हैं दरबदर
क्यूँ आस का दिया " गीत " जलाना नहीं आता ।
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