पिघलता पत्थर
>> Wednesday, July 27, 2011
अमावस सी ज़िंदगी में
अचानक ही
छिटक गयी चाँदनी
एक बादल की ओट से
निकलते हुए
चाँद ने कहा
क्यूँ मायूस हो ?
मैं हूँ न ..
और यह कह
मुस्कुरा दिया
मैं खो गयी
उस मुस्कान में
उसकी स्निग्ध शीतलता ने
जैसे दग्ध मन पर
रख दिए
बर्फ के फाहे
और
पिघलता रहा
बूँद बूँद
जो हृदय
पत्थर हो चला था ...