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सूखी हुई ख्वाहिशें

>> Monday, July 4, 2011


Lonely dry tree..............Magányos száraz fa


ज़िन्दगी का दरख्त 
हो गया है ज़र्जर 
समय की दीमक ने 
कर दी हैं जड़ें खोखली 
तनाव के थपेड़ों ने 
झुलस दी है छाल 
ख्वाहिशों के पत्ते 
अब सूखने लगे हैं 
और झर जाते हैं 
प्रतिदिन स्वयं ही .

परिस्थितियों की आँधियाँ 
उड़ा  ले जाती हैं दूर 
और जो बच जाते हैं 
कहीं इर्द - गिर्द 
उन पर अपनों के ही 
चलने से होती है 
आवाज़ चरमराहट की 
उस आवाज़ के साथ ही 
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें 
और ख़त्म हो जाती हैं 
सूखी हुई ख्वाहिशे .

Dry Tree at Sunset - Natal, Rio Grande do Norte

73 comments:

रेखा श्रीवास्तव 7/04/2011 8:17 AM  

gar jamane ne thani hai ki kuchal denge hamari khvaahishe,
to ham bhi soche baithe hain ki kam na hongi hamari pharmaaishen,
kar len jitane kar sake ve isa taraph ajamaishen
jeet ham hi jaayenge kyonki khvaahishon par koi tala nahin lagata.


sangeeta,
bas tumhare likhane par kuch likhane ka man hua.

डॉ. मोनिका शर्मा 7/04/2011 8:21 AM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .


गहन अभिव्यक्ति ...... बहुत कमाल का बिम्ब चुना आपने...

Anupama Tripathi 7/04/2011 8:46 AM  

आपनी बात आज ऐसे कही है आपने की सीधे अंतस तक पहुँच गयी है ...
ह्रदय उद्वेलित करती हुई ...मर्म को छूती हुई रचना ..
बहुत बढ़िया .

आपका अख्तर खान अकेला 7/04/2011 8:53 AM  

vaqt ki achchci manzar kashi hai ..akhtar khan akela kota rajsthan

अरुण कुमार निगम (mitanigoth2.blogspot.com) 7/04/2011 9:29 AM  

जीवन के शाश्वत सत्य को स्वीकार कर वर्तमान की अव्यक्त पीड़ा की ओर संकेत करती मार्मिक अभिव्यक्ति.

रविकर 7/04/2011 9:30 AM  

बधाई |
सुन्दर भावों की अभिव्यक्ति ||

तनाव के थपेड़ों ने "झुलस" दी है छाल

Yashwant R. B. Mathur 7/04/2011 10:00 AM  

बेहतरीन!

सादर

Yashwant R. B. Mathur 7/04/2011 11:01 AM  

कल 05/07/2011 को आपकी एक पोस्ट नयी-पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

Suman 7/04/2011 11:11 AM  

कितमा मार्मिक सत्य है ये !
पर मन कहाँ मानता है? रोज इस खोकले
होते दरख्त पर भी नई कोंपले फुट आने की उम्मीद करता है !
बहुत सुंदर रचना !

Anonymous,  7/04/2011 11:16 AM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

गहन भावों के साथ सशक्‍त रचना ।

सदा 7/04/2011 11:25 AM  

बिल्‍कुल सच कहा है आपने प्रत्‍येक पंक्ति में ..आभार इस बेहतरीन प्रस्‍तुति के लिये ।

रश्मि प्रभा... 7/04/2011 12:21 PM  

परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .... shayad tabhi shabdon ne anubhawon ka sajag, sahaj, sashakt roop liya hai

vandana gupta 7/04/2011 12:30 PM  

सारे जहाँ का दर्द उतार कर रख दिया है…………बेहतरीन भावाव्यक्ति।

दिगम्बर नासवा 7/04/2011 12:42 PM  

संवेदनाएं समेटे बहुत ही गहन अभिव्यक्ति ...बहुत बार सत्य को स्वीकार करना आसान नहीं होता ...

mridula pradhan 7/04/2011 12:45 PM  

ek alag soch ko lekar behad achchi kavita......

दर्शन कौर धनोय 7/04/2011 1:28 PM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

ख्वाहिशे ही इंसान के मजबूत होने का सबब हैं
अगर टूट गई तो रखा क्या है इस जीवन में !

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति दी.

shikha varshney 7/04/2011 2:22 PM  

ख्वाइशों का सूखे पत्तों का जहर जहर गिरना और फिर अपने ही पैरों से कुचलना.कमाल के बिम्ब हैं.
पर कुचले जाने पर भी उसी मिटटी में मिलेंगीं.
और फिर वहीँ से नई कोपलें भी फूटेंगी
बनने को ख्वाइशों के पेड़ एक बार फिर.
बेहतरीन अभिव्यक्ति हमेशा की तरह..

प्रवीण पाण्डेय 7/04/2011 3:05 PM  

परिस्थितियाँ सदा ही अधिकार जताने का प्रयास करती हैं।

ashish 7/04/2011 3:19 PM  

कविता निराशा की चरम परिणति है , युगों से चलती आ रही वेदना सतह पर आयी और मुझे सिक्त कर गयी .

Unknown 7/04/2011 3:23 PM  

सच है ख्वाहिशें जरूर ख़त्म होती है मगर जीवित रखने के प्रयत्न भी जरूरी है अब जिन्दगी जीनी तो है ही . सुन्दर भावपूर्ण कविता

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 7/04/2011 3:33 PM  

शाश्वत की गहन अभिव्यक्ति....
सादर...

शिखा कौशिक 7/04/2011 3:41 PM  

bahut gahan bhavon ko abhivyakt kiya hai aapne .aabhar

निर्मला कपिला 7/04/2011 5:21 PM  

मुश्किल तो यही है कि पेड चाहे सूख जाये लेकिन ज़र्द पत्तों सी ख्वाहिशें फिर भी इधर उधर भटकती हुये आखिर दम तोड ही देती हैं। बैक ग्राऊँड मे चल रहा गीत जरूर कुछ राहत देता है। शुभकामनायें संगीता जी।

प्रतुल वशिष्ठ 7/04/2011 6:22 PM  

@ सूखी हुई ख्वाहिशे
_____________
एक पत्ता
कुछ इसी तरह का
सूखा .. एकदम सूखा
मेरी पाठशाला के आँगन में
छंद-पाठ के वृक्ष का
कुछ उम्मीद से
किसी की याद में .......
हरे से पीला होने का सफ़र तय कर गया.

उसे न पता था
किसी के कोमल चरणों का स्पर्श
उसे महंगा पड़ेगा.
क्या उस
हरे से पीले पड़े
पत्ते को कहीं आपने तो नहीं रौंदा?
.
.
.
आदरणीय संगीता जी,
आपने मुझे एक नया बिम्ब दे दिया...खेलने को.
मुझे भावों को बिम्बों से समझना/समझाना बेहद पसंद है.
आपकी इस कविता से ... मन प्रसन्न हो गया.

संगीता स्वरुप ( गीत ) 7/04/2011 6:40 PM  

सभी पाठकों का हृदय से आभार ..

@@ प्रतुल जी ,

बस इतना ही --

रौंद सकूँ कोई पत्ता
ऐसे तो पाँव नहीं हैं
उड़ता रहता निर्लिप्त
मेरी कोई ठांव नहीं है :)

महेन्‍द्र वर्मा 7/04/2011 7:04 PM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे ।

मनोभावों का अनुपम निरूपण।
बहुत अच्छी रचना पढ़ने को मिली।

आनंद 7/04/2011 7:13 PM  

और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें

Waah didi kitne shandar rupkon se baat kahi hai apne.

Kailash Sharma 7/04/2011 7:32 PM  

ज़िन्दगी का दरख्त
हो गया है ज़र्जर
समय की दीमक ने
कर दी हैं जड़ें खोखली ...

भावनाओं को उद्वेलित करती बहुत मार्मिक प्रस्तुति..आज के यथार्थ का बहुत गहन और भावपूर्ण चित्रण.आभार

अनामिका की सदायें ...... 7/04/2011 7:48 PM  

सम्पूर्ण जीवन चक्र की व्यथा का चित्र बहुत गहनता मे डूब कर खींचा है.

राजेश उत्‍साही 7/04/2011 8:36 PM  

आजकल आपकी कविताओं में अवसाद क्‍यों उतर आया है। आमतौर पर आपकी कविताएं उर्जा देने वाली होती हैं।

www.navincchaturvedi.blogspot.com 7/04/2011 8:47 PM  

और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की

भावों को बखूबी बखानती हैं आप| बधाई|

रोहित 7/04/2011 9:01 PM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .
SAMVEDNA AUR JEEVAN KA DARD SAMETE YE PANKTIA HRIDAY KE TAAR KO SAPARSH KAR JAATI HAI.
regards-
rohit

सम्वेदना के स्वर 7/04/2011 10:05 PM  

संगीता दी!!
आज तो कमाल की उपमाएं प्रस्तुत की हैं आपने.. सॉरी वो तो आप हमेशा ही करती हैं..लेकिन आज कुछ खास है.. एकदम कागज़ पर चित्र उतार दिया!!

चंद्रमौलेश्वर प्रसाद 7/04/2011 10:46 PM  

आंधियां गम की यूं चली
बाग उजड के रह गया ॥

मनोज कुमार 7/04/2011 11:16 PM  

प्रतीकों से कही गई बात ने कविता को उच्च स्तर प्रदान किया है।

मनोज कुमार 7/04/2011 11:16 PM  

प्रतीकों से कही गई बात ने कविता को उच्च स्तर प्रदान किया है।

Vivek Jain 7/05/2011 1:28 AM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे,

वाह,
आभार,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

Sadhana Vaid 7/05/2011 8:52 AM  

परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

बहुत बहुत बहुत सुन्दर एवं मार्मिक अभिव्यक्ति है संगीता जी! सच ना जाने कितनी ख्वाहिशें अपनों के ही पैरों तले कुचल कर दम तोड़ देती हैं और असमय ही काल कवलित हो जाती हैं ! इस बेमिसाल रचना को पढ़ कर नि:शब्द हूँ ! बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना है ! आभार !

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' 7/05/2011 12:33 PM  

उस आवाज़ के साथ ही
टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे ।
--
बेहतरीन रचना!

Kusum Thakur 7/05/2011 12:44 PM  

बेहद खूबसूरत कविता.....और भावपूर्ण भी !

Anita 7/05/2011 2:50 PM  

उदासी के आलम में डूबी हुई, दर्द की स्याही से लिखी आपकी कविता कई प्रश्न उठाती है...

dinka noor 7/05/2011 3:31 PM  

bahut jhi khubise aur sundartase jeevan ke katu anubhavonka aur badalte halatka varnan aapki kavita me ubharke aya hai.magar jeevan rupi ped kabhi panpa bhi to hoga ,sukhe patte hai to kabhi hare patte bhi bhare honge.jeevan me dukh dard hi nahi kuch khushiya bhi hoti hai.

mai aapko mera blog"Dilse" dekhane ka nimantran deti hu--Ayesha, Pune, 5/07/2011

Nidhi 7/05/2011 4:42 PM  

बिम्ब जो आपके द्वारा चुने गये हैं...सुन्दर ,सटीक हैं...बहुत सुन्दर प्रस्तुति...पढ़ कर आनंद आया ..

prabhat 7/05/2011 10:56 PM  

ज़िन्दगी का दरख्त
हो गया है ज़र्जर
समय की दीमक ने
कर दी हैं जड़ें खोखली
तनाव के थपेड़ों ने
झुलस दी है छाल
ख्वाहिशों के पत्ते
बेहद खूबसूरत शब्द और उतनी ही खूबसूरत कविता.....लेकिन क्यूं न हम एक ऐसी जिंदगी की भी कल्पना करैं...जहाँ बहता हुआ वक़्त जिंदगी के दरक्थ को सूखा न करके, उसी और हरा करे...जहाँ जिंदगी वक़्त के थपेड़े न खाए बल्कि बसंत के गीत गाये......बहुत अच्छा लगा आपका ब्लॉग और खासकर आपकी कविता पढके.....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 7/05/2011 11:00 PM  

aapki kavita ne to bhavuk kar diya...zindagi wakai hai to isi tarah ki..lekin masti mein mein kabhi socha nahi tha.....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 7/05/2011 11:01 PM  

aapki kavita ne to bhavuk kar diya...zindagi wakai hai to isi tarah ki..lekin masti mein mein kabhi socha nahi tha.....

Dr.Ashutosh Mishra "Ashu" 7/05/2011 11:02 PM  

aapki kavita ne to bhavuk kar diya...zindagi wakai hai to isi tarah ki..lekin masti mein mein kabhi socha nahi tha.....

Unknown 7/05/2011 11:11 PM  

कोमल एवं मार्मिक भावों का प्रकृति के माध्यम से सशक्त प्रस्तुतीकरण....भाव युक्त शब्दों का उतनी ही सुन्दर तस्वीर के साथ अद्भुत संयोजन...सादर !!!

Rachana 7/06/2011 2:48 AM  

परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की
bahut sunder aur pabhavi panktiyan
rachana

Dr (Miss) Sharad Singh 7/06/2011 10:18 AM  

परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की


सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

Dr (Miss) Sharad Singh 7/06/2011 10:21 AM  

परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की


सुन्दर...मर्मस्पर्शी भावाभिव्यक्ति....

महेन्द्र श्रीवास्तव 7/06/2011 3:03 PM  

बहुत सुंदर कविता और उसके भाव..

Unknown 7/06/2011 7:10 PM  

टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

गहन अन्धकार में सूखे दरख़्त सूखी पत्तियां ...गहन भाव युक्त मन से उम्मीदों के दरकने की आवाज सुनाती अति भाव पूर्ण प्रस्तुति....उतने ही गहन सजीव चित्र के अद्भुत संयोजन से युक्त....शुभ कामनाएं !!! आभार...!!!

Dr Varsha Singh 7/06/2011 9:09 PM  

टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे ......


ख्वाहिशों पर यथार्थ के भावों से तराशी है आपने हर पंक्ति!

Vaanbhatt 7/06/2011 9:57 PM  

ख्वाहिशों को सूखने मत दीजिये...जिलाए रखिये...यही तो जीने का सबब हैं...

शोभना चौरे 7/06/2011 11:48 PM  

ज़िन्दगी का दरख्त
apne aap hi smpoorn hai
bahut sundar

अनुपमा पाठक 7/07/2011 8:58 PM  

हृदयस्पर्शी विम्ब!

देवेन्द्र पाण्डेय 7/08/2011 8:01 AM  

दर्दनाक अभिव्यक्ति।

Anupama Tripathi 7/08/2011 9:39 AM  

आपकी किसी पोस्ट की चर्चा शनिवार (09-07-11 )को नयी-पुरानी हलचल पर होगी |कृपया आयें और अपने बहुमूल्य सुझावों से ,विचारों से हमें अवगत कराएँ ...!!

KK Yadav 7/08/2011 4:51 PM  

टूट जाती हैं सारी उम्मीदें
और ख़त्म हो जाती हैं
सूखी हुई ख्वाहिशे .

...खूबसूरत अभिव्यक्ति...बधाई.

निवेदिता श्रीवास्तव 7/08/2011 6:12 PM  

बेहद प्रभावी अभिव्यक्ति .....

SHAYARI PAGE 7/08/2011 8:14 PM  

ख्वाहिशे ही इंसान के मजबूत होने का सबब हैं .. :)

सुरेन्द्र सिंह " झंझट " 7/09/2011 9:54 PM  

जीवन के शाश्वत सत्य की सुन्दर और नए बिम्बों के माध्यम से भावपूर्ण प्रस्तुति
वेदना की सरिता....
सब कुछ बड़ी सहजता से कह दिया आपने....

मो. कमरूद्दीन शेख ( QAMAR JAUNPURI ) 7/09/2011 11:52 PM  

सादर नमन। रचना पढकर कुछ स्मृतियां ताजी हो गईं। रचना और अभिव्यक्ति बहुत ही सुंदर है-

smshindi By Sonu 7/10/2011 3:11 PM  

प्रिय ब्लोग्गर मित्रो
प्रणाम,
अब आपके लिये एक मोका है आप भेजिए अपनी कोई भी रचना जो जन्मदिन या दोस्ती पर लिखी गई हो! रचना आपकी स्वरचित होना अनिवार्य है! आपकी रचना मुझे 20 जुलाई तक मिल जानी चाहिए! इसके बाद आयी हुई रचना स्वीकार नहीं की जायेगी! आप अपनी रचना हमें "यूनिकोड" फांट में ही भेंजें! आप एक से अधिक रचना भी भेजें सकते हो! रचना के साथ आप चाहें तो अपनी फोटो, वेब लिंक(ब्लॉग लिंक), ई-मेल व नाम भी अपनी पोस्ट में लिख सकते है! प्रथम स्थान पर आने वाले रचनाकर को एक प्रमाण पत्र दिया जायेगा! रचना का चयन "स्मस हिन्दी ब्लॉग" द्वारा किया जायेगा! जो सभी को मान्य होगा!

मेरे इस पते पर अपनी रचना भेजें sonuagra0009@gmail.com या आप मेरे ब्लॉग sms hindi मे टिप्पणि के रूप में भी अपनी रचना भेज सकते हो.

हमारी यह पेशकश आपको पसंद आई?

नीचे दिए लिंक पर कृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया

मेरी नई पोस्ट पर आपका स्वागत है! मेरा ब्लॉग का लिंक्स दे रहा हूं!

हेल्लो दोस्तों आगामी..

Anonymous,  7/12/2011 10:55 AM  

चरमराहट की

उस आवाज़ के साथ ही

टूट जाती हैं सारी उम्मीदें

और ख़त्म हो जाती हैं

सूखी हुई ख्वाहिशे

भावनाओं से परिपूर्ण, बेहद गहरी रचना.

Surendra shukla" Bhramar"5 7/26/2011 9:12 PM  

आदरणीया संगीता जी हार्दिक अभिवादन -बहुत सुन्दर पंक्तियाँ ..इसी का नाम है जिन्दगी ..जो अनेक रूप में हमें मिलती है न जाने क्या देती क्या दिखाती रहती है ..
उन पर अपनों के हे चढ़ने से होती है चरमराहट ने दिल को छू लिया ...
बधाई हो
शुक्ल भ्रमर ५

परिस्थितियों की आँधियाँ
उड़ा ले जाती हैं दूर
और जो बच जाते हैं
कहीं इर्द - गिर्द
उन पर अपनों के ही
चलने से होती है
आवाज़ चरमराहट की

anita agarwal 8/01/2011 7:27 PM  

aapke blog per pehli baar ana hua. blog ki duniya mei nayi hi hoon..ye rachana bahut sunder ban padi hai..koi khas line bhi utha ker nahi keh sakti ki ye zyada sunder hain...

Unknown 8/04/2011 7:21 AM  

aapki poems mein gahrayee bahut hai....

Dr.Bhawna Kunwar 8/16/2011 6:41 AM  

shabd nahi hain mere paas...

Anonymous,  11/13/2012 1:13 PM  

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Crystal Deal 2/03/2013 2:54 PM  

संगीता दी!! आज तो कमाल की उपमाएं प्रस्तुत की हैं आपने.. सॉरी वो तो आप हमेशा ही करती हैं..लेकिन आज कुछ खास है.. एकदम कागज़ पर चित्र उतार दिया!!

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