उम्मीद और वेदना ....
>> Thursday, July 21, 2011
अपेक्षाओं और
दायित्वों के बीच
झूलता जीवन
बन जाता है
उपेक्षा का पात्र ,
इसीलिए मैं ,
तोड़ देना चाहती हूँ
वो सारी उम्मीदें
जो किसी ने भी
कभी भी करीं थीं
मुझसे ,
क्यों कि,
मैं जानती हूँ
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .
नहीं चाहती मैं
कि कोई भी
हो व्यथित
मेरे कारण
और लगाए
मुझसे कोई उम्मीद ...
71 comments:
फिर भी उम्मीदों पर दुनिया कायम है...
बहुत बढ़िया रचना है....
नहीं चाहती मैं कि
कोई भी हो व्यथित मेरे कारण
और लगाए मुझसे कोई उम्मीद ...
दूसरे व्यक्ति आपके बारे में जो उम्मीद लगाते हैं,
वह तो उन्ही के हाथ में हैं.
आप जो उम्मीदें दूसरो के बारे मे लगाते हैं वह
आपके हाथ में हैं.
जरूरी नहीं हर उम्मीद वेदना ही दे.
गलत उम्मीदें(Wrong expectations)जो
दुराशा भी कहलाती हैं का मरना जरूरी है.
उनका मरना ईमानदार कोशिश से व ईश्वर की कृपा से ही संभव है.
सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
bahut bhawbhini kavita......
आज उदासी भरे भाव हैं आपकी रचना में ....आप तो सिर्फ समझ कर भी दूसरों की उम्मीद पूरी कर देतीं हैं ...फिर आज उदासी क्यों ...?
है धूप कहीं छाया ..ये ज़िन्दगी की रीत ....
ऐसे ही जीवन चलता है ..जब तक जीवन है उम्मीद बांधे रखती है मन की डोर .....!!
बहुत सुंदर रचना ...
बहुत ही सुन्दर भावों से सजी कविता..
अपेक्षाओं और
दायित्वों के बीच
झूलता जीवन ...
भावपूर्ण रचना अभिव्यक्ति. रचना के माध्यम से सटीक बात ...आभार
bahut hi sunder bhavon se likhi man ke jajbaton ko batati shaandaar rachanaa.badhaai aapko.
सार्थक सोच!!
गहन पर्यवेक्षण!!
सहज अभिव्यक्ति!!!
नहीं चाहती मैं
कि कोई भी
हो व्यथित
मेरे कारण
और लगाए
मुझसे कोई उम्मीद ...
अंतर्मन से उपजी सहज भावनायें.स्पष्टवादिता होनी भी चाहिये.यही है मन की पारदर्शिता.
@उम्मीद ही है,जो जन्म देती हैं,तृष्णाओं को, निराशा को,यहाँ तक कि गहन वेदना को।
कृतघ्न से कृतज्ञता की आस लगाने से निराशा ही उपजती है। निराशा ही वेदना को जन्म देती है। यही धुव सत्य है। शब्दों के माध्यम से भावनाओं का उत्कृष्ट चित्रण किया है।
आभार
आप जो भी कह लो.हम तो लगाएंगे आपसे उम्मीद.:)और जानते हैं कि कभी निराश भी नहीं करेंगी आप.
बहुत हि सुन्दर भावों को प्रभावी शब्द दिए हैं आपने.खूबसूरत रचना.
नहीं चाहती मैं कि
कोई भी हो व्यथित मेरे कारण
और लगाए मुझसे कोई उम्मीद ...
yeh dukh ke bhaav hain ya samajhdaari ke... jo bhi hain ekdam sach hain! sachchi seekh deti rachna
बढ़िया रचना!
आपके छंदबद्ध गीतों और नवगीतों की भी प्रतीक्षा है!
उम्मीद एक ऐसा पथ है जो जीवन भर इंसान को गतिशील बनाये रखता है। हमे सीमित मात्रा में ना-उम्मीदी को स्वीकार करना चाहिये , लेकिन असीमित उम्मीद को नहीं छोडना चाहिये ।
मैं जानती हूँ
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .
....बहुत मार्मिक प्रस्तुति..जीवन के कटु सत्य को बहुत ही मर्मस्पर्शी ढंग से उकेरा है..बहुत सुन्दर भावाभिव्यक्ति जो मन को भिगो जाती है..आभार
कुछ उदासी का भावबोध लिए होकर भी बड़ी गहन चिंतन करती रचना है दी...
उम्मीद कायम रहते आशा का ही संचार करती है
सो, उम्मीद कायम रहे, आशा की डोर सलामत...
सादर....
aapki rachna ko padh kar ek sawaal mano-mastishk me uthta hai ki kya dusron ki ummeede tod dene bhar se, ya dusre ko is level par lane par ki vo kabhi aapse ummeed na lagaye aisa kar aap samaj se apne vyaktitv ko nakar sakti hain ?
so jab tak aap samaj me hain aapke aas-pas ke log apse ummeed rakhenge bhi aur samaj me rahte hue un ummeedbhari bhawnaao ka apko kuchh to samman karna padega hi. :)
ummed hai mere jawab ko anyetha nahi lengi.
rachna dil ko choo gayi.
हालांकि नैराश्य भी मन की एक अवस्था ही है, और यदा कदा उभर आती भी है, पर मैं भी यही कहूँगा कि उम्मीद पर ही दुनिया कायम है
नहीं चाहती मैं कि
कोई भी हो व्यथित मेरे कारण
और लगाए मुझसे कोई उम्मीद ...
सुन्दर अभिव्यक्ति, ईमानदार प्रस्तुति
umeed se hi jindgi hai
sunderprastuti
सब बन्धन से मुक्त पंथ हो।
उम्मीद हमेशा हमारे अपने हम से करते हैं इसी कारण ये हमारे बस में नहीं होता कि हम इससे पीछा छुड़ा सके .बहुत कुछ अनचाहा जिन्दगी में स्वीकार करना ही पड़ता है .मन में पड़ी गांठ को खोलने का अच्छा प्रयास है यह रचना .आभार
नैराश्य की गहराई छलक रही है . सबकी उम्मीद पर खरा नहीं उतरा जा सकता .सुँदर रचना .
ऐसा नहीं भाई आपके ना चाहते हुए भी लोग उम्मीद लगाएंगे...आखिर सब कुछ चाहने पर ही होता है क्या?
गहन चिंतन एवं क्षोभ से उपजी रचना लगती है ! कोई हमसे क्या उम्मीद लगा लेता है, वे सही होती हैं या गलत इस पर हमारा कोई जोर नहीं चल सकता लेकिन क्या उचित है और क्या अनुचित इसका फैसला करना हमें आना चाहिये ! फिर अपनी अंतरात्मा की आवाज़ पर आप जो निर्णय लेंगी वह कभी गलत नहीं होगा और उसके लिये कभी व्यथित और निराश होने की स्थिति पैदा नहीं होगी ! इस मन:स्थिति से बाहर निकलिये और अपनी सोच पर दृढ़ रहिये !
सत्य को बड़ी गम्भीरता से कहा है आपने इस रचना के माध्यम से...बहुत सुंदर।
बहुत ही भावपूर्ण रचना....
आदरणीय संगीता जी सुन्दर रचना - मत तोडिये उम्मीदों के सहारे बहुत लोग जिंदगियां काट लेते हैं हंस लेते हैं -जीवन के बहुत से रंग हैं -
मैं जानती हूँ
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .
धन्यवाद आप का
भ्रमर ५
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को ... aur yah tootker bhi nahin tutti
इसीलिए मैं ,
तोड़ देना चाहती हूँ
वो सारी उम्मीदें
जो किसी ने भी
कभी भी करीं थीं
मुझसे ...
Great resolution Sangeeta ji ...
.
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .
गहरी बात कही। शुभकामनायें।
आपकी किसी रचना की हलचल है ,शनिवार (२३-०७-११)को नयी-पुरानी हलचल पर ...!!कृपया आयें और अपने सुझावों से हमें अनुग्रहित करें ...!!
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को...
लाजवाब पंक्तियाँ !सुन्दर भावों से सजी शानदार कविता! बधाई!
मेरे नए पोस्ट पर आपका स्वागत है-
http://seawave-babli.blogspot.com
नहीं चाहती मैं
कि कोई भी
हो व्यथित
मेरे कारण
और लगाए
मुझसे कोई उम्मीद ...
sahi kaha apne di
बहुत सुन्दर ! अपने आस-पास यही देखता हूँ कि लोग अत्यधिक अपेक्षाओं और उम्मीदों के बोझ ढोते-ढोते अक्सर कब उपेक्षित हो जाते है, उन्हें भी पता नहीं चलता !
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .
बहुत सच लिखा आपने.
बहुत सुन्दर एवं मर्मस्पर्शी रचना !
अंतर्मन की गहन वेदना का बहुत ही सटीक चित्रण किया है……………संतुलित शब्दो मे गहरी बात कह दी।
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को
behad khubsurat tarike se jindagi ko ek darshan se parichit karaya hai aapne....
har prayas ko koi hath chahiya
nausikhiyon ko daksho ka sath
chahiy
kabhi hausla afjayee ke liye hi sahi
mere bhi blog pe aa hi jaiye
नहीं चाहती मैं
कि कोई भी
हो व्यथित
मेरे कारण
और लगाए
मुझसे कोई उम्मीद ...सुन्दर और स्पष्ट भाव...
नहीं चाहती मैं
कि कोई भी
हो व्यथित
मेरे कारण
और लगाए
मुझसे कोई उम्मीद ..
इन पंक्तियों का सच ..बहुत ही गहरे उतर गया..नमन आपकी लेखनी को ...।
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .
एक-एक शब्द भावपूर्ण ...
संवेदनाओं से भरी बहुत सुन्दर कविता.
राकेश जी ने बड़ा सही कहा...दुराशाओं का समापन आवश्यक है भी...
अपेक्षाओं और
दायित्वों के बीच झूलता जीवन
bahut sundar kavita
आप ने सही कहा है किसी कोई उम्मीद नहीं ही रखी जाये तो ही अच्छा है।
सादर
उमीदें तो फिर भी रहती हैं...............
अनुपम प्रस्तुति के लिए बहुत बहुत आभार
सही कहा है बढ़िया रचना !
बेहद गहरे अर्थों को समेटती खूबसूरत और संवेदनशील रचना. आभार.
सादर
डोरोथी.
मैं जानती हूँ
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को .....
भाव तो एकदम सच्चे हैं पर आप ब्लोगर्स में उम्मीद जगाती हैं
आपकी पोस्ट की चर्चा कृपया यहाँ पढे नई पुरानी हलचल मेरा प्रथम प्रयास
अच्छी सीख
मैं जानती हूँ
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को
निराशा को
यहाँ तक कि
गहन वेदना को
सही है, उम्मीद वेदना को जन्म देती है ।
सशक्त कविता।
संगीता जी प्रणाम |बहुत सुन्दर कविता बधाई |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
संगीता जी प्रणाम |बहुत सुन्दर कविता बधाई |ब्लॉग पर आने के लिए आभार
सही कहा आपने उम्मीद होने से ही टूटने का डर रहता है।
जितना भी कहो ... पर इंसान खुद से उम्मीद नहीं छोड़ता ... अच्छी रचना है ..
apeksha, umeed......chahe hum kisi se karen ya koi hamse karen....bandhan aur dukh ka karan hai.......bahut, sunder kavita hai
apeksha, umeed......chahe hum kisi se karen ya koi hamse karen....bandhan aur dukh ka karan hai.......bahut, sunder kavita hai
संगीता जी सदा की तरह आपकी यह कविता भी बेजोड है । हालाँकि उम्मीदों का मिटना एक भयावह स्थिति है दोनों के लिये । फिर भी अभिव्क्ति मार्मिक है और यही बात महत्त्वपूर्ण होती है कविता में ।
Dr. Rama Dwivedi....
पर उम्मीद का दिया तो दिन-रात जल रहा है,
बुझता नहीं कभी वो आंधियों से लड. रहा है ।
उम्मीद का दिया तुम हरदम जलाए रखना ,
उम्मीद को बचा कर खुद को बचाए रखना ॥
yah kavita maine kabhi likhi thi...sangeeta ji aapki kavita bahut sundar hai lekin koi hamase ummeed rakhe is par hamara vash nahi hai lekin ham kisi se kam ummeed rakhe is par hamara vash hai
lekin har ummeed seema ke andar ho to dukh nahi deti,anavashyak ummeede hi hame upeksha ka paatr bana deti hai aur dukh ka kaaran banati hai...kripya meri baat ko anyatha na le....saadar..
आज व्यथा और निराशा झलक रही है इस रचना से ....
मगर कई बार यह आवश्यक सा होता है ...
शुभकामनायें !
मुझे ये बताते हुए बहुत ख़ुशी हो रही है की हिंदी ब्लॉगर वीकली{१} की पहली चर्चा की आज शुरुवात हिंदी ब्लॉगर फोरम international के मंच पर हो गई है/ आपकी इस उत्कृष्ट प्रविष्टी की चर्चा आज सोमवार को इस मंच पर की गई है /इस मंच पर आपका हार्दिक स्वागत है /आइये और अपने विचारों से हमें अवगत कराइये/इस मंच का लिंक नीचे लगाया है /आभार /
www.hbfint.blogspot.com
gahan vedanaaye parilaxit ho rahee hain. rachanaa me chhipaa bhaav man ko choo gayaa.
समझ पाने की कोशिश में काफी कुछ अपनी उम्मीदों को भी समझा.. वाकई निराशा हाथ लगती है..
उम्मीद ही है
जो जन्म देती हैं
तृष्णाओं को ,
निराशा को ,
यहाँ तक कि
गहन वेदना को..
भाव मयी सुन्दर अभिव्यक्ति के लिए आभार.
लेकिन उम्मीद पर तो सारा जीवन आधारित है
बहुत सुंदर...
jeene ka sahi tarika........
बहुत ही सुन्दर और सार्थक कविता , शब्दों में अपनापन सा लगता है ,..
आभार
विजय
कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html
ye mt bhuliye ki ummid kisi ke jine ka shara bhi hai.gud expression.
ye mt bhuliye ki ummid kisi ke jine ka shara bhi hai.gud expression.
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