टुकड़े टुकड़े ख्वाब
>> Monday, February 22, 2010
गर्भ -गृह से
आँखों की खिड़की खोल
पलकों की ओट से
मेरे ख़्वाबों ने
धीरे से बाहर झाँका
कोहरे की गहन चादर से
सब कुछ ढका हुआ था .
धीरे धीरे
हकीक़त के ताप ने
कम कर दी
गहनता कोहरे की
और
ख़्वाबों ने डर के मारे
बंद कर लीं अपनी आँखे .
क्यों कि -
उन्हें दिखाई दे गयीं थी
एक नवजात कन्या शिशु
जो कचरे के डिब्बे में
निर्वस्त्र सर्दी से ठिठुर
दम तोड़ चुकी थी