भाव अवरुद्ध सही, साध्य स्वार्थ सही वेग-आवेश-सोच-लेखन में बाधाएँ सही आशा फिर भी ताज़ा है.........क्योंकि.... आकुल मन की व्याकुल भाषा छंद तो लिखा चाहे है वो आधा
मन की आकुलता को बहुत ही अच्छी तरह बयाँ किया है...सच कभी कभी सोच इतनी प्रखर होती है...और आवेश इतना ज्यादा कि लिखने में बाधा आती है...सुन्दर रचना...हर रचनाकार के मन की व्यथा
कुछ विशेष नहीं है जो कुछ अपने बारे में बताऊँ...
मन के भावों को
कैसे सब तक पहुँचाऊँ
कुछ लिखूं या
फिर कुछ गाऊँ
।
चिंतन हो
जब किसी बात पर
और मन में
मंथन चलता हो
उन भावों को
लिख कर मैं
शब्दों में
तिरोहित कर जाऊं ।
सोच - विचारों की शक्ति
जब कुछ
उथल -पुथल सा
करती हो
उन भावों को
गढ़ कर मैं
अपनी बात
सुना जाऊँ
जो दिखता है
आस - पास
मन उससे
उद्वेलित होता है
उन भावों को
साक्ष्य रूप दे
मैं कविता सी
कह जाऊं.
20 comments:
व्याकुल मन की व्यथा को कितने सुन्दर ढंग से लिखा है आपने वाकई कभी कभी बिलकुल यही हालत होती है पर शब्द नहीं मिलते....बहुत बहुत बहुत सुन्दर अभिव्यक्ति.
भाव अवरुद्ध सही, साध्य स्वार्थ सही
वेग-आवेश-सोच-लेखन में बाधाएँ सही
आशा फिर भी ताज़ा है.........क्योंकि....
आकुल मन की व्याकुल भाषा
छंद तो लिखा चाहे है वो आधा
बहुत बढिया लिखा।बधाई।
bahut badhiya
aakulta ko shabd dene ki koshish.
बहुत अच्छी रचना ......
बह जाता आवेग
लिखने में बाधा है ....
व्याकुल मन लिखने को मजबूर भी करता है और बाधा भी बनता है.
Bahut Sundar hai ye geet...Dhanyawad!!
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
बाधा के बावजूद इतना उम्दा रच गईं आप तो..अच्छा है बाधा बनी रहे.
आकुल से मन की व्याकुल भाषा ...वेग को बहने दीजिये ...छंद ज्यादा दिन अधूरे नहीं रहेंगे ...
बहुत अच्छी लगी यह अकुलाहट ...!!
vyakul man ki badha ko bahut hi sundar abhivyakti di hai.
निसंदेह यह अच्छी कविताओं में से एक है.
सुन्दर भाव भरी रचना...सचमुच लिखते समय कुछ न कुछ आडे आ ही जाता है.
व्याकुल मन के आवेश को बाँधना आसान तो नही था ...... पर आपने बहुत ही सुंदर रचना की पंक्तियों में उसे बँधा है ..... बहुत अच्छा लिखा .........
vyakul mann hi panne par bahut kuch kahte hain......
आप से हुई क्षणिक भेंट स्मरणीय है!!
सुघड़ कविता इतनी सुघड़ है कि क्या कहूं!! ऐसा लेखन आप जैसा परिपक्व-ज़ेहन का रचनाकार ही कर सकता है.
मन की आकुलता को बहुत ही अच्छी तरह बयाँ किया है...सच कभी कभी सोच इतनी प्रखर होती है...और आवेश इतना ज्यादा कि लिखने में बाधा आती है...सुन्दर रचना...हर रचनाकार के मन की व्यथा
सुदर सहज गेय कविता
अवरुद्ध हुए भाव
बस स्वार्थ ही साधा है
संतुष्टि मिले कहाँ
मन पर बोझ ही लादा है .
बहुत सुन्दर भाव हैं संगीता जी. बधाई.
behtareen
महाशिवरात्रि की हार्दिक शुभकामनायें !
बहुत ही ख़ूबसूरत और लाजवाब रचना लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! इस शानदार और उम्दा रचना के लिए बधाई!
Post a Comment