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खलिश मन की .........

>> Thursday, February 24, 2022

 


मन की पीड़ा 
घनीभूत हो 
आँखों से 
बह जाती है 
खारे पानी से फिर
मन की धरती 
बंजर हो जाती है ।

उगता नहीं 
एक भी बूटा 
फिर, 
स्नेहसिक्त भावों से 
भावनाओं की 
दूब भी बस 
यूँ ही 
मुरझा  जाती है ।

खुशियों की चाहत में 
कितने दर्पण  टूटे 
सोचों के ,
अनचाहे ही 
मन धरती पर 
किरचें भी 
चुभ जाती हैं ।

अपना समझ 
जिसको भी 
तुम हमराज 
बनाते हो
उसकी ही 
ख्वाहिश अक्सर
मन की खलिश 
बन जाती है ।











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शुभ हो बसंत ...

>> Saturday, February 5, 2022




 पीत  वसन 


उल्लसित मन 


बसंत आया ।



खिली फ़िज़ा 


महकी बगिया 


बसंत आया ।



सांकल खोलो 


मन के द्वार की 


बसंत आया ।



मदन का रंग 


सरसों संग 


बसंत आया ।



फूलों की गंध 


मदमस्त रंग 


बसंत आया ।



बौराये भँवरे 


उड़ी तितलियाँ 


कि बसंत आया ।



उम्र के हर पड़ाव पर 


हम तुम संग - संग 


कि बसंत आया ।



बसंत पंचमी 


हम दोनों की 


शुभ हो कि 


बसंत आया ।






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