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खलिश मन की .........

>> Thursday, February 24, 2022

 


मन की पीड़ा 
घनीभूत हो 
आँखों से 
बह जाती है 
खारे पानी से फिर
मन की धरती 
बंजर हो जाती है ।

उगता नहीं 
एक भी बूटा 
फिर, 
स्नेहसिक्त भावों से 
भावनाओं की 
दूब भी बस 
यूँ ही 
मुरझा  जाती है ।

खुशियों की चाहत में 
कितने दर्पण  टूटे 
सोचों के ,
अनचाहे ही 
मन धरती पर 
किरचें भी 
चुभ जाती हैं ।

अपना समझ 
जिसको भी 
तुम हमराज 
बनाते हो
उसकी ही 
ख्वाहिश अक्सर
मन की खलिश 
बन जाती है ।











36 comments:

shikha varshney 2/24/2022 2:31 PM  

वक़्त की बात है हर खलिश धूमिल पड़ जाती है। भावपूर्ण कविता।

Jyoti Dehliwal 2/24/2022 2:52 PM  

दिल को छूती दर्द भरी कविता।

अनीता सैनी 2/24/2022 3:01 PM  

जी नमस्ते ,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(२५ -०२ -२०२२ ) को
'खलिश मन की ..'(चर्चा अंक-४३५१)
पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर

संगीता स्वरुप ( गीत ) 2/24/2022 3:29 PM  

अनिता ,
आभार आपका ।

उषा किरण 2/24/2022 5:02 PM  

बहुत सुन्दर कविता👌👌

Sweta sinha 2/24/2022 5:09 PM  

जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार २५ फरवरी २०२२ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।

Sudha Devrani 2/24/2022 6:41 PM  

स्नेहसिक्त भावों से सींचा जिन्हें जब वे ही किरचन बन चुभते है तब पीड़ित मन स्नेह में पड़ना ही कहाँ चाहता है
बहुत ही हृदयस्पर्शी भावपूर्ण सृजन
लाजवाब।

रश्मि प्रभा... 2/24/2022 7:00 PM  

होता तो है ऐसा

गगन शर्मा, कुछ अलग सा 2/24/2022 8:01 PM  

बहुत सुंदर अभिव्यक्ति

Bharti Das 2/24/2022 8:22 PM  

बेहद सुंदर अभिव्यक्ति

संगीता स्वरुप ( गीत ) 2/24/2022 8:26 PM  

शुक्रिया श्वेता ।

जिज्ञासा सिंह 2/24/2022 8:27 PM  

खुशियों की चाहत में
कितने दर्पण टूटे
सोचों के ,
अनचाहे ही
मन धरती पर
किरचें भी
चुभ जाती हैं ।.. मन को छूती बहुत ही सुंदर सराहनीय रचना ।आज एक रचना के भाव बने अभी पूर्ण नहीं है, उसकी चंद पंक्तियां उद्घृत कर रही हूं👏💐

शीत युद्ध लड़ना होगा
जीत मिले या हार मिले
रण की भूमि उतरना होगा ।।

सौ सौ बार इसी धरनी पर
कटे मिटे हम सन्नाटे में
तीक्ष्ण करारा वार हुआ जब
टूटी तंद्रा झन्नाटे में

ओह अभी तक किया कुछ नहीं
कुछ न कुछ तो करना होगा
रण की भूमि उतरना होगा ।।
सराहनीय अभिव्यक्ति के लिए बधाई आपको।

रेणु 2/24/2022 10:07 PM  

व्याकुल मन की व्यथा कथा को दर्शाती बहुत भावपूर्ण रचना प्रिय दीदी। हम सबसे ज्यादा दुःख हमें उन्हीं लोगों से मिलता है जो मन के सबसे करीब होते हैं। सरल और सहज अभिव्यक्ति के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं आपको 🙏🙏🌷🌷

Roshi 2/24/2022 10:19 PM  

दिल को छू गयी

M VERMA 2/24/2022 11:08 PM  

अंतर्मन की अद्भुत अन्तर्दशा

Madhulika Patel 2/25/2022 1:26 AM  

बहुत भावपूर्ण रचना जिसे हम अपना समझते हैं अक्सर वही दुख दे जातें हैं.

विभा रानी श्रीवास्तव 2/25/2022 8:41 AM  

हमारे मन का सुन्दर चित्रण
साधुवाद

Meena Bhardwaj 2/25/2022 10:12 AM  

अपना समझ जिसको भी तुम हमराज बनाते हो
उसकी ही ख्वाहिश अक्सर मन की खलिश बन जाती है …
जीवन का यथार्थ बयान करती भावपूर्ण कृति ।

आलोक सिन्हा 2/25/2022 10:26 AM  

बहुत बहुत सुन्दर रचना

girish pankaj 2/25/2022 10:43 AM  

बहुत सुंदर।

Anita 2/25/2022 10:47 AM  

मन तो ऐसा ही है कभी तोला कभी माशा, जिसने इस पर किया भरोसा वह सदा ठगा सा रह गया। इसलिए खुद पर भरोसा करना होगा, वही काम आता है

Manisha Goswami 2/25/2022 11:31 AM  

हृदय तल को स्पर्श करती हुई बहुत मार्मिक रचना

रेखा श्रीवास्तव,  2/25/2022 2:35 PM  

सुंदर कविता !

Amrita Tanmay 2/25/2022 2:58 PM  

ये खलिश ही तो वो कशिश है जो बेमायने की जिंदगी को कुछ तो मायनों से भरती है वर्ना रूमानियत से महरूम होकर भी हम कहाँ जाते? झूठा ही सही...

मन की वीणा 2/25/2022 3:35 PM  

हृदय स्पर्शी सृजन संगीता जी।
ये चुभन अपनों से मिली पीड़ा के कारण मन को सालती रहती है लम्बे समय तक पर हृदय भावों से कब बंजर होते हैं, कुछ तो दबा ढका रहता ही है जो न जाने किस बारिश के छिंटो से फिर प्रस्फुटित हो जाए।
बहुत सुंदर हृदय स्पर्शी सृजन।

Anuradha chauhan 2/25/2022 4:17 PM  

खुशियों की चाहत में
कितने दर्पण टूटे
सोचों के ,
अनचाहे ही
मन धरती पर
किरचें भी
चुभ जाती हैं ।बेहद हृदयस्पर्शी सृजन।

Sweta sinha 2/25/2022 4:22 PM  

जी दी,
आपकी की रचना के लिए-
---//---
दर्द थका रोकर अब बचा कोई एहसास नही
पहचाने चेहरे बहुत जिसकी चाहत वो पास नही।

पलभर के सुकूं को उम्रभर का मुसाफिर बना
जिंदगी में कहीं खुशियों का कोई आवास नहीं।

टूट जाता है आसानी से धागा दिल के नेह का
समझो वहाँ मतलब था प्यार का विश्वास नहीं।
----
सप्रेम
सादर।

Sadhana Vaid 2/25/2022 7:07 PM  

बहुत ही सुन्दर एवं चिंतनपरक रचना संगीता जी !

संगीता स्वरुप ( गीत ) 2/26/2022 3:10 PM  

आप सभी पाठक वृन्द का हार्दिक आभार ।

Asha Joglekar 2/28/2022 5:40 AM  

हमराज़ की चाहत का ही दिल की ख़लिश बन जाना ,,,,,,

दिगम्बर नासवा 3/02/2022 1:39 PM  

जीवन के अनुभव रस प्रवाह से बह चले हों ऐसे ...
मुखर शब्दों में सार लिखा है ... पीड़ा और कसक मन की जब शब्दों से बहती है तो काव्य निर्झर बह उठत है ...

संजय भास्‍कर 3/04/2022 9:30 PM  

बेहद हृदयस्पर्शी करती मार्मिक रचना

डॉ. जेन्नी शबनम 3/08/2022 11:20 PM  

बहुत गहन भाव, बधाई आपको।

Onkar 3/13/2022 3:01 PM  

बहुत सुंदर

Jyoti Dehliwal 3/15/2022 5:53 PM  

दिल को छूती सुंदर रचना।

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