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नवगीत ...... उड़ जाऊँगी ....

>> Sunday, April 3, 2022

 


तुम गाओ प्रेम - गीत
विरह गीत मैं गाऊँगी 
गाते  गाते ही एक दिन 
चिड़िया बन उड़ जाऊँगी। 

ढूँढोगे जब तुम मुझको 
हाथ नहीं मैं  आऊँगी 
दाना भी डालोगे तो मैं 
इधर उधर हो जाऊँगी ,
तुम गाओ प्रेम गीत 
विरह गीत मैं गाऊँगी ।

दर पर आकर तेरे मैं 
सात सुरों  में गाऊँगी 
झांकोगे जब खिड़की से 
पत्तों  में छिप  जाऊँगी ,
तुम गाओ प्रेम गीत 
विरह गीत मैं गाऊँगी ।

थक हार कर जब कभी 
हताश हो कर बैठोगे
धीरे धीरे दबे कदमों से 
पास तुम्हारे आऊँगी ,
तुम गाओ प्रेम गीत 
विरह गीत मैं गाऊँगी ।

पास देख कर शायद तुम 
खुश हो जाओ क्षण भर को
पाना चाहोगे गर मुझको 
दूर आकाश उड़ जाऊँगी ,
तुम गाओ प्रेम - गीत 
विरह गीत मैं गाऊँगी ।।




38 comments:

Meena Bhardwaj 4/03/2022 3:10 PM  

बहुत सुन्दर !! निश्च्छल और मनमोहक भावों से सज्जित हृदयस्पर्शी सृजन ।

yashoda Agrawal 4/03/2022 3:15 PM  

सादर नमन..
तुम गाओ प्रेम - गीत
विरह गीत मैं गाऊँगी
विरहन की व्यथा
सुन्दर गेय गीत
सादर..

Anita 4/03/2022 3:51 PM  

प्रेम का अवसान अक्सर विरह में ही होता है और विरह ही प्रेम को गहराई भी देता है, आपकी रचना में एक उदासी छिपी है पर उसी उदासी से जैसे उल्लास का एक उजास भी झर रहा है

Onkar 4/03/2022 4:47 PM  

सुंदर प्रस्तुति

Ravindra Singh Yadav 4/03/2022 5:19 PM  

आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" पर सोमवार 04 अप्रैल 2022 को लिंक की जाएगी ....

http://halchalwith5links.blogspot.in
पर आप सादर आमंत्रित हैं, ज़रूर आइएगा... धन्यवाद!

!

Ravindra Singh Yadav 4/03/2022 5:47 PM  

नमस्ते,
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा सोमवार 04 अप्रैल 2022 ) को 'यही कमीं रही मुझ में' (चर्चा अंक 4390 ) पर भी होगी। आप भी सादर आमंत्रित है। 12:01 AM के बाद आपकी प्रस्तुति ब्लॉग 'चर्चामंच' पर उपलब्ध होगी।

चर्चामंच पर आपकी रचना का लिंक विस्तारिक पाठक वर्ग तक पहुँचाने के उद्देश्य से सम्मिलित किया गया है ताकि साहित्य रसिक पाठकों को अनेक विकल्प मिल सकें तथा साहित्य-सृजन के विभिन्न आयामों से वे सूचित हो सकें।

यदि हमारे द्वारा किए गए इस प्रयास से आपको कोई आपत्ति है तो कृपया संबंधित प्रस्तुति के अंक में अपनी टिप्पणी के ज़रिये या हमारे ब्लॉग पर प्रदर्शित संपर्क फ़ॉर्म के माध्यम से हमें सूचित कीजिएगा ताकि आपकी रचना का लिंक प्रस्तुति से विलोपित किया जा सके।

हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

#रवीन्द्र_सिंह_यादव

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/03/2022 6:12 PM  

शुक्रिया रविन्द्र भाई ।

रेणु 4/04/2022 12:06 AM  

बहुत सुन्दर और भावपूर्ण प्रस्तुति प्रिय दीदी।विरह और मिलन प्रेम के स्थायी रंग हैं।विछोह ना हो तो मिलन की खुशी की अनुभूति कैसे होगी।कटु यथार्थ के मध्य मन का छोटा सा संसार बसाने की कल्पना लिये इस सुन्दर प्रीतराग के लिए हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं।


--*---*---*--*
कोई ढूँढे एकाकी आकाश सजन
उडंप बनकर दो पाखी पास-पास सजन!
इस दुनिया के सौ-सौ पहरे सजन
हैं घाव दिलों के गहरे सजन!
तेरे साथ बिताई कुछ घडियाँ जो,
रहती हैं मनुवा को घेरे सजन!
खड़ा है पर्वत-सा घेरे मुझे
अडिग है तेरा विश्वास सजन!
कोई ढूँढे एकाकी आकाश सजन
🙏❤❤


Anupama Tripathi 4/04/2022 7:57 AM  

सुंदर एहसासों में पिरोई रचना !!

girish pankaj 4/04/2022 7:59 AM  

सुंदर गीत।

विश्वमोहन 4/04/2022 9:38 AM  

प्रेम पाग मैं पड़ा रहूँ
तू अश्रु धार नहलाती।
मैं मिलन का सुर बिखेरूं
तू विरहा गीत गाती।
.......
आली! तू भी क्यों न प्रीत पंथ
आशा के दीप जलाती!!!

उषा किरण 4/04/2022 10:09 AM  

आह ! प्रेम की पराकाष्ठा…बहुत ही मार्मिक रचना ❤️

Sweta sinha 4/04/2022 12:39 PM  

क्या कहूँ दी इतने सुंदर गीत पर.
कोमल स्नेह सिक्त भावपूर्ण सृजन दी।
कुछ पंक्तियां स्वीकारें मेरी

अधूरा एक प्रेम-गीत
जिसे रह-रहकर मैं कर जाप रही हूँ।
व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी
जीवन का हर-पल को नाप रही हूँ।

बासंती स्वप्नों का मौसम क्षणभर ठहरा
मन की पाँखें शिथिल हुई सूना सहरा
हँसती आँखों की आशाएँ बेबस हो मरीं
बातों के मध्य एकाकीपन की धूल भरी

विरहा की इस ज्वाला को
स्मृतियों की आहुति देकर ताप रही हूँ
व्याकुल नन्ही चिड़िया-सी
जीवन का हर-पल को नाप रही हूँ।
-----
सप्रेम
प्रणाम

-

Pammi singh'tripti' 4/04/2022 2:26 PM  

सुंदर भावप्रवण गीत।
बधाई।

हरीश कुमार 4/04/2022 2:50 PM  

अत्यंत रोचक और भावपूर्ण रचना, सादर प्रणाम

उषा किरण 4/04/2022 3:37 PM  

तुम गाओ प्रेम - गीत
विरह गीत मैं गाऊँगी
गाते गाते ही एक दिन
चिड़िया बन उड़ जाऊँगी…!
बहुत ही प्रेमाकुल- अभिव्यक्ति, जिसमें प्रेम है तो उलाहना भी, स्वाभाविक है कि विरह है तो पीड़ा भी, व्याकुल प्रतीक्षा है तो निराशा भी, मिलन की चाह है पर आस नहीं, तड़प है पर मुक्ति की चाह भी…बहुत मार्मिक रचना …कई बार पढ़ चुकी ❤️❤️❤️

अनीता सैनी 4/04/2022 4:43 PM  

बहुत ही सुंदर प्रेम गीत।
मन को छूते भाव।
तुम गाओ प्रेम - गीत
विरह गीत मैं गाऊँगी
गाते गाते ही एक दिन
चिड़िया बन उड़ जाऊँगी…अंतस को भिगोती पंक्तियाँ।
सादर प्रणाम

डॉ. मोनिका शर्मा 4/04/2022 5:56 PM  

सुंदर अनूभूतियाँ सहेजे शब्द ...

रचना दीक्षित 4/04/2022 6:50 PM  

वाह सुंदर भावपूर्ण प्रस्तुति 🙏🙏

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/04/2022 7:57 PM  

* मीना जी
** यशोदा जी ,
*** आलोक जी
**** अनिता जी
***** ओंकार जी
आप सभी का प्रोत्साहन हेतु आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/04/2022 8:00 PM  

प्रिय रेणु ,
विरह - मिलान बस अनुभूतियाँ ही तो हैं ....
जिनको शब्द दे दिए जाते हैं । तुमने भावों को बहुत खूबसूरत शब्द दिए हैं । प्रेम को बांध दिया शब्दों में ।
आभार

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/04/2022 8:09 PM  

* अनुपमा
** गिरीश जी
*** उषा जी
**** विश्वमोहन जी

सभी का हार्दिक आभार ।
विश्वमोहन जी ,
आपकी प्रतिक्रिया के लिए शब्द नहीं .....
फिर भी ....

आशा के दीप
जलाती जब भी
आँधी उठ
उसे बुझाती
अश्रु धार के
खारे पन में
प्रेम प्यास ही
रह जाती ।
पुनः आपका आभार ।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/04/2022 8:13 PM  

प्रिय श्वेता ,
तुम्हारी प्रतिक्रिया के लिए बस दिल से आभार , प्यार .... प्रेम की ये अधूरी सी कहानी ..... और विस्तार की उम्मीद है ।
😘😘😘

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/04/2022 8:15 PM  

* पम्मी
** हरीश कुमार जी ,
*** अनिता सैनी
**** मोनिका
***** रचना
सबका हार्दिक आभार ।।

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/04/2022 8:17 PM  

* उषा जी ,
आपने मन में चलने वाली सारी उथल पुथल को सटीक शब्द दे दिए हैं । ❤️ से शुक्रिया ।

मन की वीणा 4/04/2022 9:22 PM  

सहज,सरस,सरल, कोमल भावों का हृदय स्पर्शी उदगार
मोहक सृजन।

जिज्ञासा सिंह 4/05/2022 7:21 AM  

ढूँढोगे जब तुम मुझको
हाथ नहीं मैं आऊँगी
दाना भी डालोगे तो मैं
इधर उधर हो जाऊँगी ,
तुम गाओ प्रेम गीत
विरह गीत मैं गाऊँगी ।
..सही तो कहा आपने, जब प्रेम अपनी पराकाष्ठा पर हो तो प्रेम में ही सोना जगना जीना सब होता है, अगर सहेजा न गया तो प्रेम भी कोई और मार्ग ढूंढ ही लेता है । क्यों न वो विरह का गीत हो?
बहुत ही सुंदर मन को छूती रचना ।
बहुत शुभकामनाएँ दीदी 💐💐

MANOJ KAYAL 4/08/2022 1:24 PM  

बहुत ही सुंदर गीत

Sudha Devrani 4/09/2022 10:29 PM  

प्रेम के मौसम का इंतजार कर प्रेम गीत गाने वाले प्रेमी
तुम अकेले ही गाओ अपना प्रेम गीत ...
अब वो प्रेम लतिका प्रेम की उम्मीद छोड़ मुरझा चुकी है
विरह गीत गाते-गाते अब विरह की अभ्यस्त हो चुकी...
विरह पीड़ा से ही मोह कर बैठी
वो तन्हा थी अब तुम भी तन्हा ही गाते रहो अपने प्रेम गीत....
वो उड़ चुकी एकांत आकाश की ओर...

बहुत ही हृदयस्पर्शी लाजवाब सृजन ।
वाह!!!

Amrita Tanmay 4/16/2022 7:05 PM  

सगुण से निर्गुण की उड़ान को पंख देने वाला आत्म अनुभूत गीत बरबस मौन को आमंत्रण दे रहा है। पर उस मौन में ही तो सबकुछ है जो अनकहा रह जाता है।बह .........

Jyoti Dehliwal 5/01/2022 4:00 PM  

मनमोहक भावों से परिपूर्ण बहुत सुंदर गीत,संगीता दी।

संजय भास्‍कर 5/10/2022 5:46 PM  

हृदयस्पर्शी सृजन

Tarun / तरुण / தருண் 9/24/2022 2:43 PM  

बहुत सुन्दर गीत रचना , सुन्दर भाव एवं सहज विन्यास !


muhammad solehuddin 12/19/2022 8:21 PM  

अच्छी जानकारी !! आपकी अगली पोस्ट का इंतजार नहीं कर सकता!
greetings from malaysia

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