वृत्त
>> Sunday, June 28, 2009
जब भी
करना चाहा है
अपनी सोच को
विस्तृत ,
तो मैं
उस सोच के
चारों ओर
एक वृत्त बना लेती हूँ ,
और ध्यान लगा देती हूँ
उस वृत्त के केंद्र पर।
केंद्र जितना सूक्ष्म
होता जता है
मेरी सोच का दायरा
उतना ही
विस्तार पाता है ।
और फिर
वो वृत्त
जिसमें मैंने बाँधा था
सोचों को
ना जाने
कहाँ चला जाता है...
तब मेरा मन
कपास के फूल की तरह
उड़ता चला जाता है...
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