नीयति
>> Sunday, August 31, 2008
मुझे बहने दो
बहना ही स्वाभाव है मेरा
उसे वैसे ही रहने दो
तुम चाहोगे कि
मुझे बाँध लोगे
और अथक प्रयास
से मुझे रोक लोगे
तो ये तुम्हारा
एक निरर्थक प्रयास है
कब बंध पाई है
कोई नदी ?
तुम कहोगे कि -
मैं मानव पुत्र
"नदी को बाँध चुका हूँ
नहरें निकाल चुका हूँ
बिजली बना चुका हूँ "
पर मेरा प्रश्न है -
फिर उसके बाद ?
फिर से बही है नदी
अपने उसी रूप में
अपने गंतव्य की ओर
जाते हुए
इठलाते , बल खाते हुए
तुम रोक नही पाए उसे ।
इसीलिए कहती हूँ कि
जैसा जिसका स्वाभाव है
उसे वैसा ही रहने दो
मुझे भी बस
दरिया जैसा ही बहने दो ।