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यादें बचपन की

>> Friday, August 29, 2008

अक्सर अकेली स्याह रातों में
अपने आप से मिला करती हूँ
और अंधेरे सायों में
अपने आप से बात किया करती हूँ।
याद आते हैं वो
बचपन के दिन
जब भाई के साथ
गिल्ली - डंडा भी खेला था
भाई को चिढाना ,
उसे गुस्सा दिलाना
और फिर लड़ते - लड़ते
गुथ्थम - गुथ्था हो जाना
माँ का आ कर छुडाना
और डांट कर
अलग - अलग बैठाना
माँ के हटते ही
फिर हमारा एक हो जाना
एक दूसरे के बिना
जैसे वक्त नही कटता था
कितनी ही बातें
बस यूँ ही याद आती हैं ।

कैसे बीत जता है वक्त
और रिश्ते भी बदल जाते हैं
माँ का अंचल भी
छूट जाता है
और हम ,
बड़े भी हो जाते हैं
पर कहीं मन में हमेशा
एक बच्चा बैठा रहता है
समय - समय पर वो
आवाज़ दिया करता है
उम्र बड़ी होती जाती है
पर मन पीछे धकेलता रहता है।

काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.

13 comments:

masoomshayer 8/29/2008 9:22 PM  

bachpan ko bahut hee sundar roop men prasatut kiya hai yaden atza ho gayeen

Anil

मुदिता 8/30/2008 12:36 PM  

bachpan ek sukhad anubhooti, aur rishte .. bachpan mein sabse saral.. nishchhal.. kaash aise hi bana rahe insaan to use baar baar bachpan ko yaad nahin karna padega bachpan ko jeeta chala jaayega .. lekin sach hai ki wo ma ki mamta wo pita ka laad, bhai ke saath antarngta .wo sab to chhootte hi chale jaate hain.. bahut sunder bhavabhivyakti bachpan ki..
regards
mudita

डाॅ रामजी गिरि 8/31/2008 1:23 PM  

तो ये तुम्हारा
एक निरर्थक प्रयास है
कब बाँध पाई है
कोई नदी ?

यथाथ्परक रचना है..
आपने सही कहा है संगीता जी...
कौन थाम सका है नदी के उन्मुक्त मन को..
दरिया जब किनारों को तोड़ता है तो बिहार की वर्त्तमान त्रासदी जैसा हाल होता है ...

taanya 9/09/2008 1:48 PM  

aaaaaaah sangeeta ji...bahut bahut ander tak ek ek shabd apna sthaan is dil me banata chala gaya...bahut acchhha bahut sunder bachpan likha aapne..mujhe bhi apna bachpan yaad aa gaya...isi ko padh kar maine abhi orkut me VO BACHPAN YAAD AATA HAI..k naam se ek post dali hai..use padhiyega..

aur ant ki lines..man ko rishto ki duriyo ka..is badalte waqt ki aapa-dhaapi se bhari mazboor zindgi ki tees de gayi..ki ham kitne mazboor maa k aanchal se chhoot jate hai..naye rishte nibhate hai..aaaaaah..

Yashwant R. B. Mathur 10/14/2011 11:24 AM  

कल 15/10/2011 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्वागत है .
धन्यवाद!

मेरा मन पंछी सा 10/15/2011 6:06 AM  

bachpan ki yado ka bahut hi khubsurti se varnan kiya hai apne
bahut hi sundar

सदा 10/15/2011 1:08 PM  

बचपन की यादों को दर्शाती

बहुत ही अच्‍छी प्रस्‍तुति ।

Anamikaghatak 10/15/2011 2:42 PM  

bachpan ko sakar roop diya....bahut umda prastuti

S.M.HABIB (Sanjay Mishra 'Habib') 10/15/2011 4:47 PM  

बचपन चिनता मुक्त है, बचपन सुख कै धाम
बचपन, अम्बर बादल जस, घुमडत रहि दिन-शाम
*
बाल काल की का कहें, भइया निश्छल बाट
बाल काल ही सुमिर सुमिर, जीवन सारा काट

बढ़िया रचना दी...
सादर बधाइयां...

अनुपमा पाठक 10/15/2011 7:26 PM  

ये यादें सदा जीवित रहती हैं हमारे भीतर!

रेणु 4/19/2022 11:10 PM  

बहुत ही हृदयस्पर्शी रचना प्रिय दीदी।भावुक कर गये आपके शब्द!
बचपन के संगी साथी और भाई बहनों की यादों से मन का रिश्ता अटूट होता है।इनसे मिलना खुद से ही मिलना है।समय बहुत शीघ्र बीत जाता है और कभी वापिस नहीं आ पाता! भीतर एक बच्चा है जो कभी बड़ा नही होना चाह्ता!।आखिर बीते लम्हों के साथ खेलने वाला भी तो कोई चाहिये।सादर 🙏🙏

Sudha Devrani 4/20/2022 8:32 PM  

काश बीता वक्त एक बार
फिर ज़िन्दगी में आ जाए
माँ - पापा के साथ फिर से
हर रिश्ते में गरमाहट भर जाए.
काश...
शबद शब्द पाठक को ले गया उसके बचपन में..
प्रभावी लेखन
वाह!!!

संगीता स्वरुप ( गीत ) 4/24/2022 2:23 PM  

प्रिय रेणु और सुधा जी ,
बचपन की बातें कभी भूलती कहाँ हैं । आपने भी इन शब्दों के साथ अपना बचपन जी लिया ,मेरा लिखा सार्थक हो गया ।

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